अफगानिस्तान: 11 लाख बच्चों के ऊपर गंभीर कुपोषण का संकट
२६ मई २०२२
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस साल अफगानिस्तान में पांच साल से कम उम्र के 11 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हो सकते हैं. अस्पतालों में भूख और कुपोषण से पीड़ित बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है.
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पिछले साल अगस्त में तालिबान के सत्ता में आने के बाद संयुक्त राष्ट्र और सहायता समूहों द्वारा लाखों लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए आपातकालीन कार्यक्रम चलाए गए. लेकिन अब ये समूह बिगड़ते हालात से चिंतित हैं. उनके पास सीमित संसाधन हैं और आबादी की जरूरतें बहुत अधिक हैं.
इस संकटग्रस्त देश में गरीबी बढ़ती जा रही है. अब पहले से कहीं ज्यादा अफगानों को मदद की जरूरत है. यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण दुनियाभर में खाद्य कीमतों में वृद्धि हुई है और जो अंतरराष्ट्रीय मदद का वादा अफगानिस्तान के लिए किया गया था वह अब तक पूरा होता नहीं दिख रहा है.
इन सब कारणों से बच्चे ही नहीं उनकी माएं भी अपने आपको खाना खिलाने में असमर्थ हैं. नाजिया नाम की एक अफगान महिला का कहना है कि उनके चार बच्चों की मौत कुपोषण से हुई है. 30 साल की नाजिया ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "मेरे चारों बच्चे भूख और गरीबी से मर गए." नाजिया और उनकी सात साल की बेटी का इलाज परवान प्रांत के एक अस्पताल में चल रहा है. दोनों कुपोषण की शिकार हैं. नाजिया का पति दिहाड़ी पर काम करता है. लेकिन नाजिया कहती हैं कि उनके पति को नशे की लत है और वह घर में पैसे लेकर नहीं आता.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनिसेफ के मुताबिक, इस साल अफगानिस्तान में 11 लाख बच्चे भीषण भूख से पीड़ित होंगे. बहुत अधिक दुबलापन कुपोषण का सबसे खराब रूप है. इस रोग में बच्चे को भोजन की इतनी कमी हो जाती है कि उसका प्रतिरक्षा तंत्र काम करना बंद कर देता है. उन्हें अन्य बीमारियों के होने का भी खतरा होता है.
पिछले छह महीने में कंधार के एक अस्पताल में 1100 कुपोषित बच्चों को भर्ती कराया गया, जिनमें से 30 बच्चों की मौत हो गई थी. कंधार के पिछड़े इलाके की जमीला ने कहा कि उनके आठ महीने के बच्चे की पिछले महीने कुपोषण से मौत हो गई थी. वह बताती है, "सरकार ने हमारी मदद नहीं की, किसी ने हमसे नहीं पूछा कि क्या हमारे पास खाने के लिए कुछ है."
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां वर्तमान में देश की 38 फीसदी आबादी को बुनियादी भोजन उपलब्ध कराने में सक्षम हैं. लेकिन पैसे की कमी एक बड़ी समस्या है.
यूएन के मुताबिक पिछले साल के अंत तक देश में लाखों लोग गरीबी में डूबे हुए थे और उनके लिए भोजन का खर्च उठाना मुश्किल है. यूएन का कहना है कि लगभग 3.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था चरमराती जा रही है और कीमतें बढ़ती जा रही हैं 2022 के मध्य तक 97 फीसदी आबादी इस रेखा के नीचे जा सकती है.
एए/सीके (एएफपी, एपी)
तेजी से बिगड़ रहे हैं अफगानिस्तान में हालात
तालिबान के सत्ता हथियाने के बाद से अफगानिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग थलग हो गया है और हालत और खराब होते जा रहे हैं. देश की लगभग आधी आबादी भूख से तड़प रही है और तालिबान महिलाओं के अधिकारों को और सीमित करता जा रहा है.
तस्वीर: Ahmad Sahel Arman/AFP
व्यापक भुखमरी
संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (डब्ल्यूएफपी) के मुताबिक अफगानिस्तान की लगभग आधी आबादी तीव्र भूख का सामना कर रही है और मदद पर निर्भर है. जैसे इस तस्वीर में काबुल में लोगों में चीन से आई रसद बांटी जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक प्रवक्ता ने बताया, "पूरे देश में लोग अभूतपूर्व स्तर पर भूख का सामना कर रहे हैं." उन्होंने बताया कि 1.97 करोड़ लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/IMAGO
सूखा और आर्थिक संकट
इसके अलावा पूरे देश में सूखा पड़ा हुआ है और गंभीर आर्थिक संकट भी जारी है. संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ एंथिया वेब ने कहा कि डब्ल्यूएफपी ने सिर्फ इसी साल 2.2 करोड़ लोगों की मदद कर भी दी है. हालांकि उन्होंने बताया कि अब अफगानिस्तान में अपने कार्यक्रम जारी रखने के लिए संस्था को 1.4 अरब डॉलर चाहिए.
तस्वीर: Javed Tanveer/AFP
सख्त होते नियम
तालिबान ने शुरू में कहा था कि इस बार उनके पहले शासनकाल के मुकाबले ज्यादा संयम बरतेंगे, लेकिन महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों पर अंकुश बढ़ते जा रहे हैं. उन्हें माध्यमिक शिक्षा से दूर कर दिया गया है, अकेले सफर करने नहीं दिया जाता और घर के बाहर खुद को पूरी तरह से ढक कर रखने के लिए कह दिया गया है. काबुल में इस तरह के नाकों की मदद से नियंत्रण रखा जाता है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
नए नियमों का विरोध
देश के आजाद ख्याल इलाकों में इन नए नियमों का विरोध बढ़ रहा है. विरोध प्रदर्शन में शामिल एक महिला ने कहा, "हम जिंदा जीवों की तरह जाने जाना चाहते हैं; इंसानों की तरह जाने जाना चाहते हैं, घर के कोने में बंद गुलामों की तरह नहीं." प्रदर्शनकारियों ने पूरे चेहरे को नकाब से ढकने के नए नियम के खिलाफ नारा भी लगाया, "बुर्का मेरा हिजाब नहीं है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
15 डॉलर का एक बुर्का
काबुल में बुर्के बेचने वाले एक व्यापारी ने बताया कि नए नियमों की घोषणा के बाद बुर्कों के दाम 30 प्रतिशत बढ़ गए थे. हालांकि अब दाम सामान्य हो गए हैं क्योंकि डीलरों को पता चल गया है कि बुर्कों की मांग बढ़ी ही नहीं है. इस व्यापारी ने कहा, "तालिबान के मुताबिक बुर्का अच्छी चीज है, लेकिन ये महिलाओं के लिए आखिरी विकल्प है."
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP
साथ में रेस्तरां नहीं जा सकते
अफगान मानकों के हिसाब से आजाद ख्याल माने जाने वाले हेरात में भी पुरुषों और महिलाओं के साथ खाना खाने पर पाबंदी लगा दी गई है. एक रेस्तरां के मैनेजर सैफुल्ला ने माना कि वो ये दिशा निर्देश लागू करने पर मजबूर हैं, बावजूद इसके कि "इसका व्यापार पर बहुत ही नकारात्मक असर पड़ रहा है." उन्होंने बताया कि अगर यह प्रतिबंध चलता रहा तो उन्हें मजबूरन कर्मचारियों को नौकरी से निकलना पड़ेगा.
तस्वीर: Mohsen Karimi/AFP
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
तालिबान के नए नियमों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. जीसात देशों के विदेश मंत्रियों ने कहा, "हम और ज्यादा प्रतिबंधात्मक हो रहे नियमों की निंदा करते हैं" और "महिलाओं और लड़कियों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने" के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए. इस तस्वीर में तालिबान के कुछ लड़ाके संगठन के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद ओमर की मौत की वर्षगाांठ के एक समारोह में बैठे हैं. (फिलिप बोल)