साल 2018 के मुकाबले 2019 में भारत में ज्यादा बाघों की जान चली गई. विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए उनके बफर जोन और गलियारों को भी बढ़ाना होगा.
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साल 2018 में 104 बाघों की मौत हुई जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 110 हो गई है. गैर सरकारी संगठन वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के मुताबिक इसमें से 38 बाघों की मौत अवैध शिकार के चलते हुई है.
डब्ल्यूपीएसआई का कहना है कि 2019 में 491 तेंदुओं की भी मौत हुई जिसमें 128 तेंदुए शिकार के कारण मारे गए. साल 2018 में 500 तेंदुओं की मौत हुई थी जिसकी संख्या 2019 में थोड़ी कम है. डब्ल्यूपीएसआई का उद्देश्य भारत में बढ़ते वन्यजीव संकट से निपटने के लिए इस क्षेत्र में ध्यान केंद्रित करना है. डब्ल्यूपीएसआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2019 में 83 तेंदुओं की मौत हादसों के कारण से हुई, 73 तेंदुओं की मौत सड़क हादसों में और 10 तेंदुओं की मौत ट्रेन से कटने के कारण हुई.
नेचर, एनवायरमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसायटी की अजंता डे का कहना है कि कई बार हम विकास के लिए बड़े जानवरों की अनदेखी कर देते हैं लेकिन यह उनके जीवन के लिए खतरा पैदा करता है. अजंता डे के मुताबिक, "खासतौर पर हमें बाघों के लिए बफर जोन बनाने होंगे और उनके साथ कॉरिडोर भी बनाना होगा ताकि बाघ बड़े ही आराम से अपने इलाके में घूम सके और उनका टकराव इंसानों के साथ ना हो पाए."
डब्ल्यूपीएसआई का मानना है कि हर जगह की अपनी-अपनी परिस्थिति और समस्याएं हैं लेकिन हर जगह जानवर किसी ना किसी तरह मारे जा रहे हैं. डब्ल्यूपीएसआई का कहना है कि बढ़ता ट्रैफिक और सड़कों का चौड़ा होना भी एक कारण है.
डब्ल्यूपीएसआई के मुताबिक साल 2019 में सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश में मारे गए, जिसकी संख्या करीब 29 है. वहीं महाराष्ट्र 22 मृत बाघों के साथ दूसरे नंबर पर है. साल 2018 में भी सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में ही मारे गए थे. वहीं तेंदुओं की बात करें तो साल 2019 में सबसे अधिक 22 तेंदुओं की मौत महाराष्ट्र में हुई है.
हालांकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़ों डब्ल्यूपीएसआई के आंकड़ों से मेल नहीं खाते हैं. एनटीसीए के मुताबिक साल 2019 में 92 बाघों की मौत हुई थी. अजंता डे के मुताबिक मौत के आंकड़ों में फर्क का कारण वन विभाग द्वारा मौतों की रिपोर्ट है. उनके मुताबिक एनटीसीए उन आंकड़ों को मानता है जिसे वन विभाग के कर्मचारी रिपोर्ट करते हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि हमें संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जहां ऐसे मुद्दों से वन्यजीवों के संरक्षण को अधिक खतरा है.
जानवरों के साथ क्या क्या करते हैं लोग
जानवरों से मिलने वाली तमाम चीजों का इस्तेमाल करना इंसान ने बहुत पहले ही सीख लिया था. लेकिन जब कुछ अजीब से शौक और धारणाओं के चलते जानवरों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगे, तो ठहर के सोचना होगा.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Gacad
'स्टेट्स सिंबल'
हाथी दांत, गैंडे के सींग तो थे ही, भालू के पंजे भी कई एशियाई देशों में खाने की खास चीज के तौर पर पेश किए जाते हैं. बहुत दर्दनाक तरीके से भालू का पित्त निकाला जाता रहा है जिसका इंसान के लिए दवाएं बनाने में इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: picture-alliance/ChinaFotoPress
बालों में कछुए का खोल?
कछुए के खोल का सदियों से इस्तेमाल होता आया है. कभी गहनों में तो कभी बालों की एक्सेसरी के रूप में. लेकिन एक खास किस्म के कछुए डॉकसबिल टर्टिल के खोल के पीछे पड़ जाने के कारण इस किस्म को "गंभीर खतरे" वाली सूची में शामिल करना पड़ा है. 1973 से ही इसके खोल के व्यापार पर प्रतिबंध है लेकिन इन्हें मारा जाना जारी है.
तस्वीर: Robert Harding
बाघ की हड्डी से वाइन
बाघों की खाल को पुराने जमाने से रसूखदार लोग दिखावे के लिए इस्तेमाल करते आए हैं. लेकिन इनकी हड्डियों से बनने वाली वाइन को जब से गठिये और नपुंसकता के इलाज के तौर पर पेश किया गया, इनकी मांग बढ़ती ही चली गई.
तस्वीर: EIA
शार्क फिन
एशिया के कई हिस्सों में शार्क के पंखों यानि फिन के सूप बड़े उम्दा माने जाते हैं. जब शार्क के फिन काट के निकाल लिए जाते हैं तो वे उसके बिना तैर नहीं पातीं. लेकिन चूंकि उनके मांस की उतनी मांग नहीं है उन्हें इस तरह अपंग बनाकर वापस पानी में ही फेंक दिया जाता है. जाहिर है वे डूब जाती हैं और धीमी कष्टदायक मौत मरती हैं.
तस्वीर: Gerhard Wegner/Sharkproject
असली चीते की छाप
बाघों की तरह ही हिम तेंदुए का भी उनकी खाल के लिए शिकार होता है. सेंट्रल एशिया. पूर्वी यूरोप और रूस में तो इनकी खूब मांग है. इनकी हड्डियों से भी कुछ पार्ंपरिक दवाएं बनाते हैं. अब तो दुनिया में केवल 4,000 स्नो लेपर्ड ही बचे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गोरिल्ला ट्रॉफी
इन्हें इनके मांस के लिए मारा जाता है. ये काफी ऊंची कीमत पर बिकता है. तो कई लोग इस बात में गर्व महसूस करते हैं कि उन्होंने पहले ही खतरे में पड़े इस विशाल जानवर का शिकार किया.
तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE/G.Lacz
महक ने ली जान
कस्तूरी मृग की काफी मांग है. उसकी सुगंधित ग्रंथियों से कई तरह के इत्र बनाए जाते हैं. हालांकि मृग को बिना जान से मारे भी उसका मस्क पॉड निकाला जा सकता है लेकिन शिकारी कई बार उन्हें मार ही डालते हैं. ये जीव भी खतरे में पड़े जानवरों की सूची में रखे गए हैं लेकिन अब भी इनका व्यापार जारी है.
इस पक्षी का नाम है राइनोसिरस हॉर्नबिल. ऐसी चिड़िया जिसके सिर पर गैंडे की तरह एक सींग होती है. शिकारी इस पक्षी के पंखों और सींग के लिए इसे पकड़ते हैं. इसकी बड़ी कीमत है और इसके गहने बनाए जाते हैं. लोग बिना इस बात की परवाह किए इन्हें खरीदते हैं कि उस गहने के लिए कितने जानवरों को मारा गया होगा.