सरकारें आंकड़े जुटाती हैं ताकि लोगों के लिए बेहतर सुविधाएं मुहैया करा सकें. लेकिन भारत सरकार आंकड़े नहीं जुटाती ताकि उस पर कुछ न करने का आरोप न लग सके. भारत सरकार के पास न तो रोजगार के आंकड़े हैं और न ही बेरोजगारी के.
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यह काम निजी संस्थानों का है. मसलन सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी प्राइवेट लिमिटेड का. उसका कहना है कि भारत में बेरोजगारी दर पिछले 27 महीनों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. अब वह 7.38 प्रतिशत है. 130 करोड़ की आबादी वाले देश में यह संख्या बहुत ज्यादा नहीं लगती, यदि यह आंकड़ा सामने न आए कि पिछले 12 महीनों में 1.09 करोड़ नौकरियां खत्म हो गई हैं.
रोजगार के अवसर पैदा करने में सरकारों की बड़ी भूमिका होती है. विकास कार्यों पर खर्च कर ऐसे रोजगार बनाए जा सकते हैं जो सरकारी खजाने में करों के रूप में नई आमदनी लाएं और बाजार में खर्च कर नए रोजगार पैदा कर सकें. खासकर विकासशील देशों में यदि अर्थव्यवस्था पर ज्यादा नियंत्रण न हो तो ऐसा संभव है लेकिन आम तौर पर सरकारें सख्त नियंत्रण को ही अपना काम और मकसद समझती हैं.
तेजी से धनी बनने के तरीके जानिए
तेजी से धनी बनने के तरीके
खुशी पर शोध करने वालों का कहना है कि धन असामाजिक और स्वार्थी बनाता है. लेकिन दूसरी ओर लंबे समय तक बेरोजगारी और गरीबी भी संतोष को पूरी तरह नष्ट कर देती है. कौन ऐसा हो जो डेविड वाइलरबर्ग से सीखना नहीं चाहता.
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बेशकीमती खुदाई
अगर आप सोने की चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए तो खुद ही खुदाई करनी होगी. स्वाभाविक रूप से सोने या हीरे की नहीं, बल्कि किसी नए कीमती पत्थर की.
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तेल निकालें
काला सोना अमीरी की बड़ी वजह रहा है. खासकर उन विशेषज्ञों के लिए जिनके लिए दूर दराज के इलाकों में तेल निकालना बुरा नहीं. इस बीच हवा नया तेल है.
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खजाना खोजें
एक तरीका जंगलों, खेतों, खलिहानों और गुफाओं में खाजाना खोजने का भी है. जरूरी है आपको मिल भी जाए. हालांकि बहुत से देशों में खुदाई करना गैरकानूनी है.
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लॉटरी खेलें
जीतने की सबसे कम संभावना. जब तक लॉटरी न खेलें दूसरों के जीतने की खबर परेशान करती है. खुद खेलें तो लॉटरी नहीं मिलने की खबर परेशान करती है.
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क्विज शो में हिस्सा लें
लखपति या करोड़पति बनने का एक साधन क्विज शो भी है. अमिताभ बच्चन का क्विज शो हो या कोई और, औसत से बेहतर ज्ञान आपको करोड़पति बना सकता है.
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शेयर पर बाजी
बैंक हमेशा जीतते हैं. शेयर बाजार का व्यापारी बनने के लिए समय और धन चाहिए. वहां बाजी मारने के लिए शेयर के चढ़ने घटने का व्यापक ज्ञान भी चाहिए.
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मकान खरीदें
मकान की खरीद बिक्री से भी अच्छा धन कमाया जा सकता है. भले ही तुरंत न हो लेकिन बड़े शहरों में मकान का ब्रोकर होना अच्छी कमाई दे सकता है.
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यू ट्यूब स्टार बनें
ले फ्लॉयड हों, वाई टिटी या ग्रोंख, इन नामों ने अपनी अजीबोगरीब टिप्पणियों, वीडियो या कॉमेडी से कामयाबी हासिल की है. यू ट्यूब पर विज्ञापन से होती है कमाई.
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हिजरत करें
काम न मिल रहा हो तो कामयाबी का एक नुस्खा है किसी और शहर, किसी और देश जाना. लेकिन अगर मेहनत और लगन हो तो घर पर भी कामयाबी मिल सकती है.
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पश्चिमी देश उदार अर्थव्यवस्था का अच्छा उदाहरण हैं जहां नौकरियां सिर्फ सरकारी दफ्तरों में नहीं बल्कि नागरिक सुविधाओं में मिलती हैं, अब वो चाहे स्पोर्ट के सेंटर हों, थियेटर और कंसर्ट हॉल हों या रेस्तरां हों या फिर पर्यटन से जुड़े कारोबार हों. लोग खर्च करेंगे तो नौकरियां भी बनेंगी. जो समाज अपने सस्ते कामगारों पर गर्व करेगा, वह नई नौकरियां पैदा कर पाएगा, इसमें संदेह ही है.
करीब 8.1 करोड़ की आबादी वाले जर्मनी में 2017 में 4.4 करोड़ लोग रोजगार में थे. इनमें से 1.8 करोड़ महिलाएं थीं, हालांकि ज्यादातर महिलाएं पार्ट टाइम नौकरी करती हैं. जर्मनी के सरकारी दफ्तरों में करीब 47 लाख लोग काम करते हैं. इनमें केंद्र और राज्य सरकारों के अलावा नगरपालिकाओं के कर्मचारी भी शामिल हैं. जर्मनी उन्नत औद्योगिक देश है लेकिन मैन्युफैक्चरिंग में सिर्फ 24 प्रतिशत लोग काम करते हैं. देश की कामकाजी आबादी का तीन चौथाई हिस्सा सर्विस सेक्टर में नौकरी करता है. सेवा क्षेत्र में कुशल कामगार अहम भूमिका निभाते हैं. करीब 55 लाख लोग 10 लाख छोटे उद्यमों में काम करते हैं. कृषि में सिर्फ 1 प्रतिशत लोग काम करते हैं.
चाहे धनी देश हों या गरीब, सबसे बड़ी समस्या है अच्छे वेतन वाले रोजगारों का निर्माण ताकि लोग उससे अपने परिवारों का खर्च चला सकें. हालांकि सर्विस सेक्टर में बड़े पैमाने पर रोजगार बने हैं लेकिन वे निम्नस्तरीय और कम आमदनी वाली नौकरियां हैं.
जर्मनी में विदेशियों को नौकरी पाना आसान होगा
जर्मनी में विदेशियों के लिए नौकरी पाना होगा आसान
जर्मन सरकार एक नए इमिग्रेशन कानून पर काम कर रही है ताकि देश में काम करने वाले लोगों की किल्लत से निपटा जा सके. नए कानून का मकसद यूरोपीय संघ के बाहर के देशों से दक्ष कामगारों को आकर्षित करना है.
कामगारों की कमी
जर्मनी की अर्थव्यवस्था मजबूत है. बेरोजगारी दर 3.5 प्रतिशत से भी कम है. लेकिन देश में कई उद्योग कामगारों की कमी से जूझ रहे हैं. कारखानों में काम करने के लिए लोग नहीं है. ऐसे में विदेशों से कामगार बुलाने की मांग उठ रही है.
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नया कानून
कामगारों की किल्लत को देखते हुए सरकार ऐसा कानून बनाना चाहती है जिसमें कंपनियों से यह नहीं कहा जाएगा कि वे नियुक्तियां करते वक्त जर्मन नागरिकों को प्राथमिकता दें. यानी जर्मन कंपनी यूरोप के बाहर के देशों के लोगों को आराम से नौकरी पर रख पाएंगी.
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गठबंधन में सहमति
जर्मनी के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पार्टियों सीडीयू, सीएसयू और एसपीडी के बीच नए कानून को लेकर एक दस्तावेज पर सहमति हुई है. इसके लिए जर्मनी के श्रम, अर्थव्यवस्था और गृह मंत्रालयों से भी हरी झंडी ले ली गई है.
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योग्यताएं
जिन विदेशी स्नातकों और कामगारों के पास पेशेवर ट्रेनिंग होगी, उन्हें कुछ समय के लिए जर्मनी आने की अनुमति दी जाएगी ताकि वे अपने लिए काम तलाश सकें. लेकिन इसके लिए कुछ योग्यताओं और भाषा संबंधी जरूरतों को पूरा करना होगा.
दस्तावेज के अनुसार इन लोगों को इस अवधि के दौरान सामाजिक कल्याण भत्ता नहीं मिलेगा, लेकिन उन्हें ऐसी नौकरियां करने की भी इजाजत दी जाएगी, जिनके लिए वे ओवर क्लालिफाइड हैं, ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें.
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आसान और तेज
जर्मनी में क्वालिफिकेशन के मूल्यांकन की प्रक्रिया को तेज और आसान बनाया जाएगा. सहमति पत्र कहता है कि कुछ चुनिंदा देशों में खास तौर से मुहिम चलाए जाने की योजना है ताकि वहां से युवा और दक्ष कामगारों को जर्मनी की तरफ आकर्षित किया जा सके.
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उदार जर्मनी
वैसे जर्मनी में मौजूदा इमिग्रेशन सिस्टम भी सबसे उदार सिस्टमों में से एक माना जाता है. ओईसीडी संगठन के मुताबिक, अमेरिका के बाद जर्मनी विदेशियों के लिए सबसे लोकप्रिय देश है. यूरोपीय संघ के कामगार तो यहां आसानी से रह और काम कर सकते हैं.
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ब्लू कार्ड
जर्मनी में ब्लू कार्ड सिस्टम है जो कम से कम 50,800 यूरो के सालाना वेतन पर विदेशों से अकादमिक और पेशेवर क्षेत्र से जुड़े लोगों को भर्ती की प्रक्रिया को आसान बनाता है. अब वेतन की इस सीमा को और नीचे लाने की कोशिश हो रही है.
विरोध
विदेशी कामगरों को आकर्षित करने की इस योजना का विरोध भी हो रहा है. कई मजदूर यूनियनों और वामपंथी पार्टी डी लिंके और दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी का कहना है कि बाहर से लोगों को लाकर प्रतियोगिता बढ़ाने की बजाय कंपनियां स्थानीय लोगों के वेतन और काम की परिस्थितियों को बेहतर बनाएं.
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रोजगार विशेषज्ञों का मानना है कि कर्मचारियों के उचित प्रशिक्षण और उनकी प्रतिभाओं के इस्तेमाल से इनका स्तर भी वैसे ही बढ़ाया जा सकता है जैसे कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद मैन्युफैक्चरिंग की नौकरियों के साथ हुआ है. आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से उत्पादकता बढ़ाकर उद्यमों का मुनाफा और कर्मचारियों की तनख्वाहें बढ़ाई जा सकती हैं.
आधुनिक कामगार भी अब पहले जैसे नहीं रहे. अब वे सिर्फ अफसरी आदेश पर काम नहीं करना चाहते, वे जिम्मेदारी लेना चाहते हैं, अपने हिसाब से काम करना चाहते हैं. काम की जगह संतुष्टि बहुत बड़ा कारक बन गया है. दफ्तरों में साफ सुथरा और हरा भरा माहौल, जरूरत पड़ने पर एकाग्रता के लिए शांति वाली जगह पर जाने की संभावना, स्वच्छ हवा और सहयोगियों के साथ बात करने की संभावना लोगों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है. इसलिए बहुत सी कंपनियां लीडरशिप और सहकारी काम के नए तरीकों का परीक्षण कर रहे हैं.
अपनी मर्जी की नौकरी
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पश्चिमी देशों में काम को आकर्षक बनाने के अलावा अन्य सामाजिक विकल्पों पर भी बहस चल रही है. इसमें से एक तो बिना काम के मासिक भत्ता देने की परियोजना है. इस समय कई देशों में अनुभव जुटाने के लिए मॉडल परियोजनाएं चल रही हैं. मकसद ये है कि जिनके पास काम नहीं होगा वे बिना किसी चिंता के कोई और हुनर सीख पाएंगे या कौशल अर्जित कर सकेंगे.
एक और मॉडल डच इतिहासकार रुटगर ब्रेगमन का है. उनका कहना है कि हफ्ते में सिर्फ 15 घंटे काम कर अच्छी जिंदगी बिताई जा सकती है. अगर ऐसा संभव हो सके तो इस समय काम करने वाले हर व्यक्ति पर दो और लोगों को काम मिल सकेगा. बेरोजगारी खत्म हो जाएगी और सभी आराम की जिंदगी जी सकेंगे.