भारतीय संविधान निर्माता और दलितों, उपेक्षितों के मसीहा कहे जाने वाले बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर आपस में धुर विरोधी राजनीतिक गुट अपनी-अपनी तरह से अंबेडकर को याद कर रहे हैं.
विज्ञापन
125वीं जयंती पर डॉ. भीमराव अंबेडकर के राजनीतिक व्यक्तित्व की स्वीकार्यता और अधिक बढ़ती नजर आ रही है. राजधानी दिल्ली के अलावा देश भर के अलग-अलग शहरों में कई तरह से अंबेडकर जयंती मनाने के लिए लोग जुटे.
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश में डॉ. अंबेडकर के जन्म स्थान महू में एक कार्यक्रम में भागीदारी की. यहां उन्होंने अंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बाबासाहेब ने समाज के अंतिम छोर पर बैठे लोगों को लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने कहा, ''यह मेरा सौभाग्य है कि मैं आज यहां हूं. मैं इस धरती को नमन करता हूं.''
इस मौके पर प्रधानमंत्री की ओर से 'ग्राम उदय से भारत उदय अभियान' नाम से एक कार्यक्रम की भी शुरूआत की गई है. सरकार का कहना है कि इसके जरिए पंचायती राज, किसानों और ग्रामीण इलाकों के विकास संबंधी योजनाओं को बढ़ावा दिया जाएगा.
उधर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी डॉ. अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी. इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और अन्य राजनीतिक दल भी अंबेडकर जयंती के मौके पर आयोजन कर रहे हैं.
वहीं पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने भी अंबेडकर जयंती मनाई है. संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से इस अवसर पर आयोजित एक खास कार्यक्रम में बोलते हुए संयुक्त राष्ट्र डेवलेपमेंट प्रोग्राम की प्रबंधक हेलेन क्लार्क ने कहा, ''संयुक्त राष्ट्र में अंबेडकर जयंती के इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए मैं यूएनडीपी की ओर से भारत को बधाई देती हूं.'' उन्होंने आगे कहा, ''हम भारत के साथ नजदीकी से सहयोग बनाते हुए 2030 के लक्ष्यों को पाने के लिए काम करेंगे, जिससे दुनिया भर में गरीबों और उपेक्षित तबकों के उद्धार का अंबेडकर का सपना भी साकार होगा.''
पिछले कुछ सालों में भारतीय राजनीति में डॉ. अंबेडकर की स्वीकार्यता काफी बढ़ी है. हर एक राजनीतिक दल अंबेडकर की विरासत से खुद को जोड़ता दिखाई दिया है. ऐसे में अंबेडकर की 125वीं जयंती बेहद खास हो गई है. देश भर में अलग अलग राजनीतिक धड़ों के लोग अंबेडकर को उनकी जयंती के मौके पर पूजते नजर आ रहे हैं.
इसी बीच हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद अंबेडकर जयंती के मौके पर उनकी मां और भाई ने हिंदू धर्म छोड़ कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है. रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से देश भर के विश्वविद्यालयों में दलित छात्रों के उत्पीड़न और उनके प्रतिनिधित्व के सवाल पर बहस छिड़ी हुई है.
आरजे/आईबी (पीटीआई)
क्या उच्च शिक्षा केवल अमीरों के लिए?
दुनिया भर में 10 से 24 साल की उम्र के सबसे अधिक युवाओं वाले देश भारत में उच्च शिक्षा अब भी गरीबों की पहुंच से दूर लगती है. फिलहाल विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा व्यवस्था में सबकी हिस्सेदारी नहीं है.
तस्वीर: imago/imagebroker
भारत में नरेंद्र मोदी सरकार ने मेडिकल और इंजीनियरिंग के और भी ज्यादा उत्कृष्ट संस्थान शुरू करने की घोषणा की है. आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थानों के केन्द्र जम्मू कश्मीर, बिहार, हिमाचल प्रदेश और असम में भी खुलने हैं. लेकिन बुनियादी ढांचे और फैकल्टी की कमी की चुनौतियां हैं. यहां सीट मिल भी जाए तो फीस काफी ऊंची है.
तस्वीर: AP
देश के कई उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों और केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में भी फिलहाल 30 से 40 फीसदी शिक्षकों की सीटें खाली पड़ी हैं. नासकॉम की रिपोर्ट दिखाती है कि डिग्री ले लेने के बाद भी केवल 25 फीसदी टेक्निकल ग्रेजुएट और लगभग 15 प्रतिशत अन्य स्नातक आईटी और संबंधित क्षेत्र में काम करने लायक होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोटा, राजस्थान में कई मध्यमवर्गीय परिवारों के लोग अपने बच्चों को आईआईटी और मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए भेजते हैं. महंगे कोचिंग सेंटरों में बड़ी बड़ी फीसें देकर वे बच्चों को आधुनिक युग के प्रतियोगी रोजगार बाजार के लिए तैयार करना चाहते हैं. इस तरह से गरीब बच्चे पहले ही इस प्रतियोगिता में बाहर निकल जाते हैं.
तस्वीर: Reuters
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने फ्रांस दौरे पर युवा भारतीय छात्रों के साथ सेल्फी लेते हुए. सक्षम छात्र अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा पाने के लिए अमेरिका, ब्रिटेन और तमाम दूसरे देशों का रूख कर रहे हैं. लेकिन गरीब परिवारों के बच्चे ये सपना नहीं देख सकते. भारत में अब भी कुछ ही संस्थानों को विश्वस्तरीय क्वालिटी की मान्यता प्राप्त है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Blumberg
मार्च 2015 में पूरी दुनिया में भारत के बिहार राज्य की यह तस्वीर दिखाई गई और नकल कराते दिखते लोगों की भारी आलोचना भी हुई. यह नजारा हाजीपुर के एक स्कूल में 10वीं की बोर्ड परीक्षा का था. जाहिर है कि पूरे देश में शिक्षा के स्तर को इस एक तस्वीर से आंकना सही नहीं होगा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
राजस्थान के एक गांव की कक्षा में पढ़ते बच्चे. 2030 तक करीब 14 करोड़ लोग कॉलेज जाने की उम्र में होने का अनुमान है, जिसका अर्थ हुआ कि विश्व के हर चार में से एक ग्रेजुएट भारत के शिक्षा तंत्र से ही निकला होगा. कई विशेषज्ञ शिक्षा में एक जेनेरिक मॉडल के बजाए सीखने के रुझान और क्षमताओं पर आधारित शिक्षा दिए जाने का सुझाव देते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Robert Hardin
उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी जैसे दल खुद को दलित समुदाय का प्रतिनिधि और कल्याणकर्ता बताते रहे हैं. चुनावी रैलियों में दलित समुदाय की ओर से पार्टी के समर्थन में नारे लगवाना एक बात है, लेकिन सत्ता में आने पर उनके उत्थान और विकास के लिए जरूरी शिक्षा और रोजगार के मौके दिलाना बिल्कुल दूसरी बात.
तस्वीर: DW/S. Waheed
भारत के "मिसाइल मैन" कहे जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम देश में उच्च शिक्षा के पूरे ढांचे में "संपूर्ण" बदलाव लाने की वकालत करते थे. उनका मानना था कि युवाओं में ऐसे कौशल विकसित किए जाएं जो भविष्य की चुनौतियों से निपटने में मददगार हों. इसमें एक और पहलू इसे सस्ता बनाना और देश की गरीब आबादी की पहुंच में लाना भी होगा.