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मानवाधिकारहांगकांग

हांगकांग: 14 लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं को मिलेगी सजा

३० मई २०२४

हांगकांग की एक अदालत ने 14 लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं को सत्ता के खिलाफ साजिश का दोषी करार दिया है. यह केस राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हुआ अब तक का सबसे बड़ा मुकदमा था.

फैसला आने से पहले अदालत के बाहर नारे लगातीं एक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता.
फैसला आने से पहले अदालत के बाहर नारे लगातीं एक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता. तस्वीर: Tyrone Siu/REUTERS

जिन कार्यकर्ताओं को दोषी पाया गया है, वे उन 47 लोकतंत्र समर्थकों में थे जिनपर 2021 के प्राइमरी इलेक्शन में भूमिका के लिए मुकदमा हुआ था. अभियोजन पक्ष का आरोप था कि इन ऐक्टिविस्टों ने हांगकांग की सरकार को कमजोर करने की कोशिश की. जिन कार्यकर्ताओं को साजिश रचने का दोषी ठहराया गया है, उन्हें उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

इस मुकदमे का घटनाक्रम 2019-2020 के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन से जुड़ा है. जुलाई 2020 में लोकतंत्र समर्थक धड़े ने एक अनौपचारिक प्राइमरी का आयोजन किया था. इसका मकसद लोकतंत्र का समर्थन करने वाले मजबूत उम्मीदवारों को चुनना था, ताकि आगे लेजिस्लेटिव काउंसिल के चुनाव में इस धड़े के जीतने की संभावना बढ़ सके. ऐसा होने पर हांगकांग में लोकतंत्र कायम करने के पक्षधरों को काउंसिल में बढ़त मिल सकती थी.

अदालत ने कहा कि अनाधिकारिक प्राइमरी चुनाव की मदद से बदलाव लाने की उनकी योजना सरकार के अधिकार को कमजोर करती और संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो जाती. फैसले के मुताबिक, संबंधित प्राइमरी चुनाव में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों ने घोषणा की कि वे अपनी वैधानिक शक्ति का इस्तेमाल बजट पर वीटो लगाने में करेंगे. हांगकांग के संविधान में चीफ एक्जिक्यूटिव के पास यह ताकत होती है कि बजट पास ना होने की स्थिति में वह विधानमंडल को भंग कर सकता है. अगर अगले विधानमंडल में भी बजट को पास ना किया गया, तो लीडर को पद छोड़ना पड़ेगा.

जिन कार्यकर्ताओं को साजिश रचने का दोषी ठहराया गया है, उन्हें उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.तस्वीर: Vernon Yuen/NurPhoto/picture alliance

कोर्ट ने दो आरोपितों को बरी किया

इस मुकदमे की सुनवाई करने वाले जजों की नियुक्ति सरकार ने की थी. 319 पन्नों के अपने फैसले में जजों ने कहा कि वीटो के माध्यम से विधेयक को रोकने की योजना के कारण विधानमंडल को भंग करना पड़ता और इसके कारण नई सरकार द्वारा लाई गई नीतियों को लागू करना बहुत मुश्किल हो जाता. जजों ने टिप्पणी की है कि इस स्थिति में "सरकार और मुख्य प्रशासक, दोनों की शक्ति और प्रभुत्व काफी कमजोर हो जाते. हमारी नजर में इससे हांगकांग के भीतर संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा होती."

अदालत ने दो आरोपितों को बरी भी किया. ये दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट काउंसलर ली यू-शन और लॉरेंस लाऊ हैं. अदालत ने कहा कि इन दोनों ने बजट को वीटो करने की बात कही हो, इसका कोई सबूत नहीं मिला. बरी किए जाने के बाद ली ने जनता के प्रति आभार जताते हुए कहा, "मैं सुकून महसूस कर रहा हूं."

जानकारों और मानवाधिकार समर्थक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह केस बताता है कि किस तरह विपक्ष को कुचलने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को इस्तेमाल किया जा रहा है. पर्यवेक्षकों के मुताबिक, इस केस ने स्पष्ट कर दिया है कि 1997 में हांगकांग को ब्रिटेन से वापस लेते हुए चीन ने नागरिक अधिकारों का वादा किया था, वे बहुत तेजी से तार-तार हो रहे हैं. हालांकि, हांगकांग प्रशासन और चीन का दावा है कि सुरक्षा कानून के कारण यहां स्थिरता कायम करने में मदद मिली है. वे न्यायिक स्वतंत्रता के बरकरार रहने का भी दावा करते हैं.

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ब्रिटेन ने क्यों लौटाया हांगकांग

1839 से 1842 के पहले अफीम युद्ध में ब्रिटेन के आगे चीन हार गया. युद्ध के बाद हुई नानकिंग संधि में कई शर्तें रखी गईं, जिनके तहत ब्रिटेन को हांगकांग का नियंत्रण मिल गया. चीन ने 99 साल के लीज पर 200 से ज्यादा द्वीप ब्रिटेन को दिए. इस लीज की अवधि 1 जुलाई, 1997 को खत्म होनी थी. हांगकांग वापस लौटाने के लिए चीन और ब्रिटेन के बीच लंबी वार्ता चली. 1984 में दोनों पक्षों के बीच एक मसौदा तय हुआ और चीन ने हांगकांग को "विशेष प्रशासनिक क्षेत्र" का दर्जा दिया.

इस व्यवस्था के मुताबिक, हांगकांग को "बेसिक लॉ" नाम की एक संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत अलग सिस्टम और काफी स्वायत्तता मिली. हालांकि, चीन को द्वीप का नियंत्रण वापस मिलने पर हांगकांग में काफी विरोध प्रदर्शन हुए. बाद के सालों में भी बड़े स्तर पर चीन विरोधी प्रदर्शन होते रहे, लेकिन 2014 से स्थितियां बदलने लगीं.

एक लेजिस्लेटिव काउंसिल हांगकांग का प्रशासन देखती है. लोकतंत्र समर्थकों का आरोप था कि इस काउंसिल पर चीन समर्थक समूहों का नियंत्रण है. इसी क्रम में निष्पक्ष चुनाव के समर्थन में 2014 में "अम्ब्रैला मूवमेंट" शुरू हुआ. प्रदर्शनकारी अपने लिए ज्यादा लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग कर रहे थे. आंदोलनकारियों पर काफी सख्ती दिखाई गई. बड़ी तादाद में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया. बाद के सालों में चीन का रुख और सख्त होता गया और स्थानीय प्रशासन को पूरी तरह से प्रो-चाइना बनाने पर जोर बढ़ता गया.

एसएम/आरपी (एपी, एएफपी)

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