जबरन गर्भनिरोधक लगाने पर 143 महिलाओं ने किया डेनमार्क पर केस
५ मार्च २०२४ग्रीनलैंड की 140 से अधिक महिलाओं ने डेनमार्क सरकार पर एक मुकदमा दायर किया है. 4 मार्च को दायर किया गया यह मुकदमा उन्हें इंट्रायूटेराइन डिवाइस (आईयूडी) नाम की एक गर्भनिरोधक कॉइल लगाने से जुड़ा है. याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि 1960-70 के दशक के बीच जब वे किशोरवय के पड़ाव पर थीं, उन्हें आईयूडी लगाने के लिए मजबूर किया गया. कुछ तो घटना के समय महज 12 साल की थीं.
क्या मामला है
डेनमार्क ने यह अभियान बड़ी खामोशी से चलाया था. कई मामलों में तो महिलाओं से रजामंदी भी नहीं ली गई थी. इस मुहिम के पीछे की मंशा इस आर्कटिक क्षेत्र में आबादी पर नियंत्रण करना था. हालांकि यह मामला जिस समय का है तब ग्रीनलैंड, डैनिश उपनिवेश तो नहीं रह गया था, लेकिन उस पर डेनमार्क का नियंत्रण बना हुआ था.
याचिकाकर्ताओं के वकील मैड्स प्रैमिंग ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "याचिका 4 मार्च की सुबह दायर की गई. मेरी मुवक्किलों को इस कारण यह कदम उठाना पड़ा कि अक्टूबर में मुआवजे को लेकर उन्होंने जो अनुरोध किया था, उसका कोई जवाब नहीं मिला." प्रैमिंग ने कहा, "उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ और वे खुद इसकी जिंदा सबूत हैं."
कोई सहमति नहीं, मजबूर किया गया
डेनमार्क के पब्लिक ब्रॉडकास्टर डीआर ने साल 2022 में एक पॉडकास्ट सीरीज प्रसारित की, जिसमें इस अभियान के विस्तार का ब्योरा दिया गया. राष्ट्रीय अभिलेखों से मिले आंकड़ों से पता चला कि इस अभियान में 4,500 से ज्यादा महिलाओं को गर्भनिरोधक लगाने के लिए मजबूर किया गया था. इसके लिए उनकी या उनके परिवार की कोई सहमति भी नहीं ली गई.
इनमें से ज्यादातर महिलाएं यह भी नहीं जानती थीं कि उनके भीतर आईयूडी लगाया गया है. ग्रीनलैंड की कई गायनेकॉलिजस्ट्स को हाल तक महिलाओं में आईयूडी मिलता रहा, जबकि उन महिलाओं को यह तक नहीं पता था कि उनके भीतर ऐसा कुछ फिट है.
अक्टूबर 2023 में 67 महिलाओं ने सरकार से मांग की थी उनमें से हर एक को 44,000 डॉलर का वित्तीय मुआवजा दिया जाए. प्रैमिंग ने बताया, "इसके बाद से और महिलाएं इस मुहिम से जुड़ती गईं. इनमें सबसे उम्रदराज 85 वर्ष की महिला हैं." अब कुल मिलाकर 143 महिलाएं सरकार पर मुकदमा कर रही हैं.
साल 2020 में डेनमार्क के प्रधानमंत्री ने ग्रीनलैंड के 22 बच्चों से माफी मांगी थी. इन बच्चों को साल 1951 में एक कथित सामाजिक प्रयोग के लिए जबरन उनके परिवार से अलग कर दिया गया था. पिछले साल भी सरकार ने छह इनुइट्स से इस प्रकरण पर माफी मांगी और मुआवजा दिया. डेनमाक्र की ग्रीनलैंड से जुड़ी समग्र नीतियों पर 2023 में एक जांच शुरू हुई है. इसके नतीजे 2025 में सामने आने की उम्मीद है.
प्रैमिंग कहते हैं, "बात जब इन महिलाओं के मामले की हो, तो जांच और उसके नतीजे ही काफी नहीं होंगे. इससे यह निर्धारित नहीं होगा कि उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ या नहीं, लेकिन अदालत यह फैसला कर सकती है." ग्रीनलैंड 1953 तक डेनमार्क का उपनिवेश था. 1979 में एक जनमत संग्रह के बाद ग्रीनलैंड को स्वशासन का अधिकार मिला. इसके तीन दशक बाद ग्रीनलैंड को स्वायत्त शासन का अधिकार मिला, लेकिन विदेश और रक्षा प्रभाग डेनमार्क के पास रहा. ग्रीनलैंड में एक स्थानीय सरकार है और डेनमार्क की संसद में भी उसका प्रतिनिधित्व है.
आरएम/एसएम (एएफपी)