150 देशों के लिए टीबी की नई दवा को मंजूरी
२९ अक्टूबर २०१९संयुक्त राष्ट्र समर्थित स्टॉप टीबी पार्टनरशिप संगठन ने बताया है कि बीपीएल नाम का की यह दवा कम आय वाले देशों को ग्लोबल ड्रग फैसिलिटी यानी जीडीएफ के जरिए मुहैया कराई जाएगी. स्टॉप टीबी पार्टनरशिप का गठन 2001 में टीबी की दवा मुहैया कराने के लिए किया गया था जो कीमतें कम रखने पर भी मोलभाव करता है.
दूसरे इलाजों के लिए वकालत करने वाले गुट इससे आधी कीमत रखने की बात कह रहे थे. बीपीएल एक दवा है जो टीबी के दूसरे इलाजों की तुलना में आसान है. इसमें एंटीबायोटिक दवाओं के एक मिश्रण का इस्तेमाल करीब दो साल की अवधि के लिए करना होता है. दवाओं का नया मिश्रण बीमारी की दवा प्रतिरोधी विकृतियों पर पूरा ध्यान देता है. इसमें टीबी एलायंस की नई स्वीकृत दवा प्रिटोमानिड के साथ लिनेजॉलिड और जॉन्सन एंड जॉन्सन की बेडाक्वीलिन होती है.
प्रिटोमानिड की कीमत एक आदमी के इलाज के लिए करीब 364 डॉलर होती है. प्रिटोमानिड बीते 40 सालों में तीसरी दवा है जिसे दवा प्रतिरोधी टीबी के इलाज के लिए मंजूरी दी गई है. इससे पहले बेडाक्वीलिन और डेलामानिड को ही टीबी के इलाज के लिए मंजूरी मिली थी.
कई संगठन लंबे समय से बेडाक्वीलिन और डेलामानिड की ऊंची कीमतों की आलोचना करते हैं. गैर लाभकारी संस्था मेडिसिन संस फ्रंटियर्स यानी एमएसएफ ने तो जॉन्सन एंड जॉन्सन के खिलाफ बकायदा सार्वजनिक अभियान चला रखा है. जॉन्सन एंड जॉन्सन की बेडाक्वीलिन की छह महीने के लिए खुराक की कीमत 400 डॉलर है. एमएसएफ की दलील है कि बेडाक्वीलिन को 25 सेंट प्रति दिन के मुनाफे पर बनाया और बेचा जा सकता है और इसकी कीमत पूरे इलाज के लिए 500 डॉलर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
हालांकि स्टॉप टीबी पार्टनरशिप का कहना है कि अत्यधिक दवा प्रतिरोधी टीबी के इलाज के लिए नियमानुसार दवाओं पर 2000 से 8000 डॉलर प्रति कोर्स का खर्च है जो कम से कम 20 महीने चलता है.
टीबी अलायंस ने अमेरिकी दवा बनाने वाली कंपनी माइलान एनवी को उच्च आय वाले बाजारों के लिए प्रिटोमानिड बनाने का लाइसेंस दिया था. इसके साथ ही कंपनी को कम और मध्यम आय वाले देशों के लिए भी लाइसेंस मिला था, जहां टीबी के ज्यादा मामले सामने आते हैं लेकिन यह लाइसेंस सिर्फ उसी कंपनी के लिए नहीं है.
स्टॉप टीबी पार्टनरशिप का कहना है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशानुसार दवाओं की सप्लाई शुरू कर देगी हालांकि उसका यह भी कहना है कि वह सीधे उन देशों को भी दवा बेचेगी जिन्हें इसकी जरूरत है. कम आय वाले देशों में जीडीएफ के जरिए यह दवा बेची जाएगी. वहां उनकी कीमत वही होगी जो तय की गई है. लेकिन दूसरे देशों के लिए उनके हिसाब से कीमत बातचीत के जरिये तय होगी. दवा 26 गोली वाली शीशी में होगी और छह महीने के इलाज के लिए सात शीशियों की जरूरत होगी.
भारत में मैक्लियोड्स फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड को भी प्रिटोमानिड बनाने का लाइसेंस मिला है.
एनआर/एके(रॉयटर्स)
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