तिब्बत के ग्लेशियर में मिला 15,000 साल पुराना वायरस
श्रेया बहुगुणा
२७ जनवरी २०२०
कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबॉरेटरी से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में वैज्ञानिकों को ग्लेशियर से प्राचीन वायरस मिला है. शोधकर्ताओं के मुताबिक यह वायरस हजारों साल पहले की बीमारियों को वापस ला सकते हैं.
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सन 2015 में वैज्ञानिकों की टीम अमेरिका से तिब्बत यह पता लगाने पहुंची थी कि वहां ग्लेशियर के अंदर क्या है. उनके अध्ययन में चीन के उत्तर-पश्चिम तिब्बती पठार पर विशाल ग्लेशियर में 15 हजार साल से फंसे ऐसे वायरस को खोजा गया है जिनको पहले कभी नहीं देखा गया है. कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबॉरेटरी से संचालित बायो आर्काइव डाटाबेस में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि कैसे शोधकर्ताओं ने 28 ऐसे वायरस समूहों की खोज की है जिनको पहले कभी नहीं देखा गया. शोधकर्ताओं के मुताबिक बर्फ में दबे होने की वजह से यह वायरस अलग अलग तरह की जलवायु में भी जीवित रहे हैं.
शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर के पिघलते ग्लेशियरों के कारण इस तरह के वायरसों का दुनिया में फैलने का खतरा पैदा हो गया है. बर्फ में दबे होने की वजह से यह वायरस हजारों साल से जिंदा हैं, लेकिन बाहर नहीं आ पाए. वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे वायरस का दुनिया के संपर्क में आना खतरनाक साबित हो सकता है.
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्लेशियर के दो नमूनों का अध्ययन किया. एक ग्लेशियर का टुकड़ा 1992 में लिया गया था और दूसरा 2015 में. दोनों नमूनों को ठंडे कमरे में रखा गया था. एक की बाहरी परत को हटाने के लिए इथेनॉल का इस्तेमाल किया गया, जबकि दूसरे को साफ पानी से धोया गया. दोनों ही नमूनों में 15 हजार साल पुराने वायरस पाए गए.
दुनिया के कई शोधकर्ता पहले से जलवायु परिवर्तन पर चिंता जता चुके हैं. जिनके मुताबिक ग्लेशियरों में कई ऐसे वायरस दबे हो सकते हैं जो बीमारियां पैदा कर सकते हैं. यह ऐसे वायरस हैं जिनसे निपटने के लिए आधुनिक दुनिया तैयार नहीं है. अगर यह वायरस बाहरी दुनिया में संपर्क में आते हैं तो वे फिर से सक्रिय हो सकते हैं. शोधकर्ताओं की टीम ने ग्लेशियर के कोर तक जाने के तिब्बत के ग्लेशियर पठारों को 50 मीटर (164 फीट) गहराई तक ड्रिल किया. शोधकर्ताओं ने नमूनों में रोगाणुओं की पहचान के लिए माइक्रोबायोलॉजी तकनीकों का इस्तेमाल किया. प्रयोग में 33 वायरस समूहों का पता चला, जिनमें 28 प्राचीन किस्म के वायरस थे.
कोल्ड स्प्रिंग लैब के जर्नल 'बायोआर्काइव' में शोधकर्ताओं ने लिखा, "ग्लेशियर की बर्फ के अध्ययन के लिए अल्ट्रा क्लीन माइक्रोबियल और वायरल सैंपलिंग प्रक्रियाओं को स्थापित किया गया. वायरस की पहचान करने के लिए साफ प्रक्रिया है."
अंटार्कटिका में ग्लेशियर असामान्य रूप से तेजी से पिघल रहे हैं. जनवरी 2019 में शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि इस क्षेत्र में बर्फ 1980 के दशक की तुलना में छह गुना अधिक तेजी से पिघल रही है. जिसमें ऐसे क्षेत्र भी शामिल हैं जिन्हें अपेक्षाकृत स्थिर और परिवर्तन के लिए प्रतिरोधी माना जाता रहा है.
शोधकर्ताओं ने लिखा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अब हमें खतरनाक वायरस का खतरा पैदा हो गया है. एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि आर्कटिक में समुद्री बर्फ प्रत्येक गर्मियों में सितंबर में पूरी तरह से गायब हो सकती है. अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, पर्यावरण की स्थिति और खराब होती तो ग्लेशियरों में दबे ये वायरस बर्फ से निकल कर दुनिया में आतंक मचा सकते हैं.
आइसलैंड ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका एक ग्लेशियर पिघल चुका है. दुनिया के अन्य हिस्सों में मौजूद ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं. एक नजर डालते हैं कि दुनिया में मौजूद प्रमुख ग्लेशियरों की स्थिति पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/NASA
मर गया एक ग्लेशियर
आइसलैंड ने अपनी 'ओक्जोकुल' बर्फ की चादर को श्रद्धांजलि अर्पित की है. जलवायु परिवर्तन की वजह से आइसलैंड ने अपने एक ग्लेशियर को खो दिया. ओक्जोकुल को लोग 'ओके' भी कहते हैं. वर्ष 2014 में इसने ग्लेशियर का दर्जा खो दिया. ओक्जोकुल के खत्म होने पर दुख जताने पहुंचे लोगों ने एक पट्टिका का अनावरण किया जिसमें कहा गया था कि देश के मुख्य ग्लेशियरों का हाल अगले 200 वर्षों में ओक्जोकुल की तरह होने की उम्मीद है.
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अंटार्कटिका: विशाल ग्लेशियर, बड़ा जोखिम
माना जा रहा है कि पश्चिमी अंटार्कटिक का हिस्सा थ्वेट्स ग्लेशियर भविष्य में समुद्र के बढ़ते जल स्तर के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है. इस साल के शुरुआत में नासा के एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि अगर यह टूट कर समुद्र में बहता है तो समुद्री जलस्तर में 50 सेंटीमीटर का इजाफा हो सकता है. अंटार्कटिका में दुनिया के पहाड़ों पर मौजूद सभी ग्लेशियरों की तुलना में 50 गुना अधिक बर्फ है.
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पटागोनियन भी पिघल रहा
चिली का ग्रे ग्लेशियर पैटागोनियन आइसफील्ड्स में है जो अंटार्कटिका के बाहर दक्षिणी गोलार्ध के सबसे बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. शोधकर्ता इस क्षेत्र में बर्फ पिघलने का नजदीक से अध्ययन कर रहे हैं. इससे वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे दूसरे ग्लेशियर के बारे में समझने में सहायता मिलेगी.
स्विट्जरलैंड में रोन ग्लेशियर रोन नदी का स्रोत है. कई सालों से वैज्ञानिक यूवी रेसिस्टेंट वाले सफेद कंबल से गर्मियों के समय में इसे ढंक रहे हैं ताकि यह कम पिघले. शोधकर्ता कहते हैं कि गर्म होती जलवायु की वजह से इस सदी के अंत तक अल्पाइन ग्लेशियरों का दो तिहाई हिस्सा पिघल सकता है.
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तेजी से सिकुड़ रहा फ्रांज जोसेफ ग्लेशियर
न्यूजीलैंड के दक्षिण द्वीप में फ्रांज जोसेफ ग्लेशियर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. ग्लेशियर की खासियत यह है कि यह कभी आगे बढ़ता है, कभी पीछे होता है. लेकिन वर्ष 2008 के बाद से यह तेजी से सिकुड़ रहा है. पहले गाइड पर्यटकों को सीधे ग्लेशियर पर पैदल ले जाते थे लेकिन अब वहां जाने का एकमात्र साधन हेलिकॉप्टर बचा है.
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गायब हो रहे अफ्रीकन बर्फ
किलिमंजारो पर्वत के ग्लेशियर पर भी खतरा मंडरा रहा है. वर्ष 2012 में नासा के सहयोग के शोध करने वाले शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि 2020 तक अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत किलिमंजारो से बर्फ गायब हो सकता है. किलिमंजारो तंजानिया में पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है. साथ ही यह आय का भी एक बड़ा स्त्रोत है.
तस्वीर: Imago Images/robertharding/C. Kober
100 गुना तेजी से पिघल रही बर्फ
अमेरिकी राज्य अलास्का में हजारों की संख्या में ग्लेशियर हैं. 2019 में एक अध्ययन में पाया गया कि वैज्ञानिकों ने जैसा अनुमान लगाया था, उससे 100 गुना तेजी से यहां के बर्फ पिघल रहे हैं. इस महीने की शुरुआत में वाल्देज ग्लेशियर झील पर कयाकिंग के बाद दो जर्मन और एक ऑस्ट्रियाई नागरिक मृत पाए गए थे. अधिकारियों का कहना है कि ग्लेशियर के बर्फ गिरने से पर्यटकों के मारे जाने की आशंका है.
तस्वीर: imago/Westend61
ग्लेशियर का क्षेत्र बढ़ने के बावजूद चिंता
जैकब्शेवन ग्रीनलैंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. इस साल नासा द्वारा किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि यह बढ़ रहा है. 2016 के बाद ग्लेशियर का एक हिस्सा जहां थोड़ा मोटा हो गया है, वहीं दूसरा हिस्सा तेजी से पिघल रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर में वृद्धि उत्तरी अटलांटिक से असामान्य रूप से ठंडे पानी के बहाव के कारण है. (रिपोर्टः लवडे राइट)