वास्तविक घटनाओं पर आधारित फिल्में अक्सर विवाद का मुद्दा बन जाती हैं. इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी एक फिल्म पर सेंसर बोर्ड पहले ही रोक लगा चुका है. अब एक और फिल्म रिलीज के लिए तैयार है.
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पिछले साल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 30वीं पुण्यतिथि के मौके पर देश में काफी राजनीतिक उथल पुथल देखी गयी. कुछ ही महीने पहले प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी ने 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि की जगह वल्लभभाई पटेल की जयंती के रूप में मनाने का फैसला किया. ऐसा पहली बार हुआ कि शक्ति स्थल पर सरकार की ओर से कोई भी नहीं गया. प्रधानमंत्री ने पटेल की याद में राष्ट्रीय एकता दिवस का एलान किया और इंदिरा गांधी को ट्विटर पर ही श्रद्धांजलि दे दी.
जहां एक तरफ यह सब हो रहा था वहीं सेंसर बोर्ड इंदिरा गांधी के हत्यारों पर बनी एक फिल्म के साथ जूझ रहा था. "कौम दे हीरे" नाम की पंजाबी फिल्म को 31 अक्टूबर को ही रिलीज करने का इरादा था. लेकिन क्योंकि फिल्म में पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को नायक के रूप में दिखाया गया है, इसलिए इसे रिलीज करने की अनुमति नहीं दी गई. सेंसर बोर्ड ने बयान दिया कि फिल्म नफरत और हिंसा फैलाती है.
फिल्म फेस्टिवल की तलाश
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अक्सर कई लोग एक ही समय पर एक ही विषय पर काम में लग जाते हैं. भगत सिंह पर एक ही साल में तीन तीन फिल्में बन गयीं थी. इंदिरा गांधी की हत्या के मामले पर भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. लेकिन फिल्म बनाने वाले दूसरों की गलतियों से सीख लेते दिख रहे हैं. "31 अक्टूबर" नाम की इस फिल्म के निर्माता और स्क्रिप्ट राइटर हैरी सचदेव का कहना है कि उनकी फिल्म किसी का पक्ष नहीं लेती और ना ही किसी की भी हत्या को सही ठहराती है, भले ही वह इंदिरा गांधी की हो या फिर सिखों की. हालांकि सचदेव को भी इस बात की चिंता है कि उन्हें सेंसर बोर्ड का सामना करना होगा. वह कहते हैं, "जरूरत पड़ने पर हम कुछ सीन हटा लेने के लिए तैयार हैं."
हैरी सचदेव अपनी फिल्म को किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में रिलीज करना चाहते हैं. इसी सिलसिले में वे बर्लिन फिल्म समारोह (बर्लिनाले) में शिरकत कर रहे हैं. फिल्म में सोहा अली खान और वीर दास मुख्य भूमिका में हैं. स्टैंड अप कॉमेडी से इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने वाले वीर दास को इस बार एक बेहद संजीदा किरदार में देखा जाएगा. वीर दास एक ऐसे सिख का किरदार निभा रहे हैं जिनका परिवार 1984 के दंगों से प्रभावित हुआ. सोहा अली खान उनकी पत्नी की भूमिका में हैं.
फिल्म का संदेश
हैरी सचदेव का कहना है कि फिल्म वास्तविक घटनाओं पर आधारित है. वे बताते हैं कि जब 1984 के दंगे हुए उनकी उम्र महज सात साल थी और उनके परिवार को भी इससे जूझना पड़ा था, "हम लोग बहुत खौफनाक दौर से गुजरे थे. वह एक ऐसा हादसा था जो मेरे दिल में बैठ चुका था. मेरे जानने वाले कई लोगों की भी जान गयी. मेरे पिता ने उस वक्त अपने अनुभवों पर कुछ लिखा और मैंने उसी को इस्तेमाल करते हुए अपनी स्क्रिप्ट तैयार की."
सचदेव बताते हैं कि फिल्म की शूटिंग के दौरान दो बार उनके सेट पर तोड़फोड़ की गयी. उनका कहना है कि हमला करने वाले लोगों ने उनकी फिल्म के संदेश को गलत आंका, "हम हिन्दुओं और सिखों के बीच में नफरत नहीं फैला रहे हैं. हम यही दिखा रहे हैं कि राजनीतिक कारणों से जो भी हुआ उसके बावजूद हिन्दुओं ने ही सिखों की मदद की थी. राजनीति इंसानियत पर हावी नहीं हो सकी, यही हमारी फिल्म का संदेश है."
फिल्म का निर्देशन नेशनल अवॉर्ड जीत चुके शिवाजी लोटन पाटिल ने किया है. सचदेव इसी साल फिल्म को रिलीज करने की तैयारी में हैं.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया, बर्लिनाले
बर्लिनाले फिल्म फेस्टिवल की झलक
फिल्म फेस्टिवल की बात आती है, तो दुनिया में ये पांच नाम सबसे ज्यादा मशहूर हैं, वेनिस, कान, टोरंटो, सनडैंस और बर्लिनाले. बर्लिनाले की खास बात यह है कि बाकियों से अलग यहां ग्लैमर पर कम और कला पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Berlinale
65 साल से
बर्लिनाले का आयोजन पिछले 65 साल से हो रहा है. दस दिन तक चलने वाले इस फिल्म महोत्सव में 124 देशों से 20,000 से भी ज्यादा लोग पहुंचते हैं. इनमें से करीब चार हजार देश विदेश के पत्रकार हैं. बर्लिनाले में आपको चारों तरफ भीड़ ही भीड़ देखने को मिलेगी, खास कर शनिवार और रविवार को जब दफ्तरों की छुट्टी होती है.
तस्वीर: Berlinale 2015
बर्लिनाले पालास्ट
बर्लिन के पॉट्सडामर प्लाट्स पर बर्लिनाले का आयोजन होता है. मुख्य फिल्में यहां बर्लिनाले पालास्ट यानि बर्लिनाले पैलेस में दिखाई जाती हैं. इसके अलावा आसपास कई और सिनेमा हॉल और मल्टीप्लेक्स हैं जिनमें दिन रात फिल्में चलती रहती हैं.
तस्वीर: DW/I. Bhatia
1754 सीटों वाला
बर्लिनाले पालास्ट ही वह जगह है जहां सितारे अपनी फिल्मों का प्रीमियर देखते हैं. लाल कालीन ना केवल सिनेमा हॉल के बाहर बिछा है, बल्कि अंदर पूरे हॉल में लगा है. साथ ही ये लाल सीटें एक खास अनुभव देती हैं. 1754 सीटों के साथ यह जर्मनी के सबसे बड़े फिल्म हॉल की सूची में शामिल है.
तस्वीर: Berlinale 2015/Jan Windszus
रेड कार्पेट पर
हांड़ कंपा देने वाली सर्दी में जहां पत्रकार और दर्शक जैकेट, ओवरकोट, मफलर, टोपी और दस्ताने लगा कर खड़े होते हैं, वहीं रेड कार्पेट पर चलने वाली हस्तियां खूबसूरत दिखने के लिए गाउन पहनने से परहेज नहीं करतीं. इस बार रेड कार्पेट पर निकोल किडमैन ने सबका दिल जीता.
तस्वीर: Reuters/ H. Hanschke
टिकट की लाइन
पिछले साल बर्लिनाले में तीन लाख से ज्यादा टिकटें बिकीं. एक टिकट की कीमत औसतन दस यूरो है. अधिकतर लोग ऑनलाइन टिकट खरीदना पसंद करते हैं. कई फिल्में तो ऐसी भी हैं, जिनकी टिकटें आधे घंटे के अंदर ही खत्म हो जाती हैं. नागेश कुकुनूर की नई फिल्म धनक के साथ भी ऐसा ही हुआ.
तस्वीर: DW/I. Bhatia
सड़क के बीचोबीच लॉरिएल
कार निर्माता कंपनी ऑडी और मेकअप ब्रैंड लॉरिएल इस साल बर्लिनाले के मुख्य स्पॉन्सर हैं. सड़क के बीचोबीच लॉरिएल ने यह मेकअप रूम बनाया है. दिन भर किसी ना किसी हस्ती को यहां तैयार होते देखा जा सकता है. लेकिन बर्लिन वाले किसी को भी बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं देते. इसीलिए इस क्यूब के आसपास भीड़ जमा नहीं होती.
तस्वीर: DW/I. Bhatia
बर्लिन का स्ट्रीट फूड
बर्लिन अपनी जिंदादिली और स्ट्रीट फूड के लिए जाना जाता है. कुछ हद तक यह शहर दिल्ली की भी याद दिलाता है. बर्लिनाले पहुंचे लोगों के लिए खास स्ट्रीट फूड का इंतजाम किया गया है. बर्लिन के मशहूर करी वुर्स्ट के अलावा यहां बर्गर, मोमो, पैटी और नूडल भी मिल रहे हैं. सर्दी के मौसम में गर्मागर्म खाने से कुछ राहत तो मिलती ही है.
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दूरदर्शन का निशान?
जी नहीं, यह दूरदर्शन का निशान नहीं है. बर्लिनाले पालास्ट के ठीक बगल में बना यह एक कसीनो है. यहां लोग पोकर खेलने आते हैं. निशान की प्रेरणा है चीन के यिन और यांग. इन्हीं पर दूरदर्शन का लोगो भी आधारित है. अकसर यिन और यांग को सफेद और काले रंगों से दर्शाया जाता है और ये जीवन के अच्छे और बुरे पहलुओं का प्रतीक हैं.
तस्वीर: DW/I. Bhatia
चारों तरफ रोशनी
पॉट्सडामर प्लाट्स पर पहुंचते ही पता चल जाता है कि यहां फिल्मों का मेला लगा है. चारों तरफ बिखरी रोशनी लोगों का मन जीतती है. पेड़ों पर कभी नीली रोशनी चमकती है तो कभी लाल. कभी लगता है जैसे पेड़ों पर तारे टिमटिमा रहे हैं, तो कभी यूं भी लगता है जैसे वे टूट कर जमीन पर गिर रहे हों.
तस्वीर: DW/I. Bhatia
दस दिन
फिल्मों का यह मेला 5 से 15 फरवरी तक राजधानी बर्लिन में चलेगा. भारत की ओर से निर्माता, निर्देशक किरण राव यहां पहुंची हैं और डोर और इकबाल जैसी फिल्मों के लिए मशहूर नागेश कुकुनूर अपनी नयी फिल्म धनक लेकर यहां आए हैं.