उत्तर प्रदेश के कानपुर में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में शामिल चार अभियुक्तों को एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया है.
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1984 के सिख दंगों की जांच के लिए बनी विशेष जांच टीम यानी एसआईटी अभी कुछ और अभियुक्तों की गिरफ्तारी की कोशिश में है. दंगों की जांच के लिए साल 2019 में राज्य सरकार ने एसआईटी का गठन किया था. एसआईटी प्रभारी बालेंदु भूषण ने डीडब्ल्यू को बताया, "एसआईटी ने 11 जघन्य अपराध वाले मामलों की जांच शुरू की थी जिनमें अब तक 67 अभियुक्तों के नाम चिह्नित किए गए हैं. लेकिन इनमें सिर्फ 45 लोग ही गिरफ्तारी के लायक हैं क्योंकि बाकी लोगों की उम्र काफी ज्यादा है."
उन्होंने आगे बताया कि अधिक उम्र और गंभीर बीमारियों के कारण कई अभियुक्तों की गिरफ्तारी मुश्किल है लेकिन जो गिरफ्तार करने लायक हैं उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा. आज गिरफ्तार किए गए सभी चार लोग साठ साल से ज्यादा की उम्र के हैं.
एसआईटी प्रभारी ने बताया कि सिख दंगे के दौरान भीड़ ने कानपुर की निराला नगर स्थित एक इमारत पर धावा बोल दिया था जहां दस से ज्यादा सिख परिवार रहते थे. इस इमारत में आग लगा दी गई थी और तीन लोगों को जिंदा जला दिया गया था. कुछ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. बालेंदु भूषण ने बताया कि बुधवार को गिरफ्तार किए गए सफीउल्ला खां, योगेंद्र सिंह बब्बन, विजय नारायण सिंह और अब्दुल रहमान इसी मामले में अभियुक्त हैं.
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कानपुर में हुए सिख विरोधी दंगे में 127 लोगों की हत्या हुई थी. हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों की मानें तो इससे कहीं ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. फरवरी 2019 में शासन ने एसआईटी गठित की थी जिसका कार्यकाल चार महीने बढ़ा दिया गया है. एसआईटी को तीस सितंबर तक अपनी जांच पूरी करनी है.
उसी साल कानपुर के अलावा राजधानी में दिल्ली में भी बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे हुए थे जहां 2,700 लोग मारे गए थे. दिल्ली में भी एसआईटी का गठन किया गया था और गंभीर धाराओं में 323 मुकदमे दर्ज हुए थे लेकिन सात साल में दिल्ली की एसआईटी सिर्फ आठ मामलों में चार्जशीट दाखिल कर पाई. एसआईटी प्रभारी बालेंदु भूषण ने बताया कि कानपुर में ढाई साल में ही 11 मुकदमों में चार्जशीट तैयार कर ली गई है और चार लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया है.
पहले वाली जांच में क्या हुआ
सिख विरोधी दंगों के दौरान कानपुर में हत्या, लूट और डकैती जैसी गंभीर धाराओं में 40 मुकदमे दर्ज हुए थे लेकिन सबूत न मिलने के कारण पुलिस ने इनमें से 29 मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. 27 मई, 2019 को इस मामले में यूपी सरकार ने एसआईटी गठित की. एसआईटी ने विभिन्न राज्यों में रह रहे पीड़ित परिवारों के लोगों से मिलकर बयान दर्ज किए और दस्तावेज जुटाए. बालेंदु भूषण के मुताबिक, जिन मामलों में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी थी, उनमें से भी कई मुकदमों को अग्रिम विवेचना के लायक माना गया और जांच शुरू की गई जिनमें 11 मामलों में विवेचना पूरी हो गई है.
भारत में सांप्रदायिक दंगे 14 फीसदी घटे
भारत में 2019 में सांप्रदायिक दंगों के 440 मामले दर्ज किए गए, 10 मार्च को राज्य सभा में सरकार की ओर से दिए बयान के मुताबिक दंगों में 14 फीसदी की कमी आई है. दंगों में संपत्ति के साथ-साथ लोगों का भविष्य भी उजड़ता है.
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सबसे ज्यादा दंगे
गृह मंत्रालय ने राज्य सभा में बताया कि 2019 में 440 दंगों के मामले दर्ज किए गए जो कि इसके पूर्व के साल से 14 प्रतिशत कम है. 2018 में 512 सांप्रदायिक दंगे हुए थे. गृह मंत्रालय ने नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को पेश करते हुए जानकारी दी. बिहार में सबसे अधिक 135 मामले दर्ज किए गए.
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यूपी में नहीं हुए दंगे
गृह मंत्रालय का कहना है कि उत्तर प्रदेश में 2019 में सांप्रदायिक दंगे के मामले नहीं हुए. लेकिन उत्तर प्रदेश में कथित लव जिहाद जैसे मामलों को लेकर तनाव की खबरें सामने आती रहती हैं.
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झारखंड में भी दंगे
छोटे से राज्य झारखंड में सांप्रदायिक या धार्मिक हिंसा के 54 मामले साल 2019 में दर्ज किए गए.
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हरियाणा में कितने दंगे
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का हवाला देते हुए गृह मंत्रालय ने बताया कि हरियाणा में 50 मामले दंगों के दर्ज किए गए.
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बाकी राज्यों का हाल
गृह मंत्रालय के मुताबिक महाराष्ट्र में 47, मध्य प्रदेश में 32, गुजरात में 22 और केरल में 21 सांप्रदायिक या धार्मिक दंगों के मामले दर्ज किए गए.
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समाज को जख्म देते दंगे
धार्मिक दंगों के कारण समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है. दंगों के दौरान जान और माल का नुकसान तो होता ही है साथ ही राज्य और देश की छवि भी खराब होती है.
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उन्होंने बताया कि इन सभी मामलों में 146 लोगों को दंगों में शामिल होने के लिए चिह्नित किया गया जिनमें से 79 लोगों की मौत हो चुकी है. एसआईटी के मुताबिक 67 जीवित अभियुक्तों में सिर्फ 20-22 लोग ही ऐसे हैं जिनकी गिरफ्तारी की कोशिश हो रही है क्योंकि बाकी लोगों की उम्र 75 साल से ज्यादा है और वो लोग गंभीर बीमारियों से जूझ भी रहे हैं. इन लोगों की गिरफ्तारी के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी गई थी और शासन से अनुमति मिलने के बाद चार लोगों की गिरफ्तारी की गई है.
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कैसे सबूत हाथ लगे
एसआईटी ने पिछले साल अगस्त में एक घर में दंगे के साक्ष्य मिलने का दावा किया था लेकिन वहां रह रहे लोगों का कहना था कि जिस घर में एसआईटी खून के धब्बे और अन्य साक्ष्य मिलने दावा कर रही है, उस घर में पिछले कई साल से पानी साफ करने का प्लांट लगा है.
एसआईटी ने पिछले साल दस अगस्त को दावा किया था कि एक घर के दो बंद पड़े कमरों में उन्हें 36 साल पुरानी घटना के कई साक्ष्य मिले हैं जिनमें मानव रक्त और शरीर के कुछ नमूनों के अलावा शवों को जलाए जाने के साक्ष्य भी शामिल हैं. लेकिन उसी मकान में रह रहे मौजूदा मकान मालिक ने इन सभी दावों को खारिज कर दिया था.
मकान मालिक का कहना है कि उनके पिता ने साल 1990 में यह मकान खरीदा था और तब से उनके घर में न तो कोई कमरा बंद पड़ा है और न ही दस अगस्त को आई एसआईटी टीम ने ऐसे कोई साक्ष्य यहां से जुटाए हैं. एसआईटी ने इससे पहले भी कुछ साक्ष्य मिलने के दावे किए थे लेकिन स्थानीय लोगों ने उस पर भी सवाल उठाए थे.
कानपुर में गुमटी नंबर पांच के पास दर्शनपुरवा में दंगों का सबसे ज्यादा प्रभाव था. वहां के रहने वाले और एक जनरल स्टोर के मालिक विशाखा सिंह 1984 के दंगों के चश्मदीद रहे हैं और अपने कई परिजनों और परिचितों को खो चुके हैं. विशाखा सिंह बताते हैं, "एसआईटी को कहां से और कैसे सबूत मिल रहे हैं, किसी को नहीं मालूम. जिन घरों में लोग तीस-पैंतीस साल से रह रहे हों वहां खून के धब्बे जैसे सबूत कैसे मिल सकते हैं, यह तो एसआईटी ही बता सकती है. दरअसल, इन्हें जांच में कुछ न कुछ तो दिखाना ही है तो कभी बाल, कभी दांत, कभी हड्डी और कभी खून के धब्बे मिलने के दावे करने लगते हैं.”
कानपुर के जिन इलाकों में दंगों का सबसे ज्यादा असर था, वहां रहने वाले तमाम सिख परिवार घरों को छोड़कर चले गए थे जिन्हें बाद में दूसरे लोगों ने खरीद लिया. हालांकि कई परिवार जिन्होंने अपने घरों को नहीं बेचा था, वो दोबारा वहां लौट आए. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इतने समय बाद किसी तरह का साक्ष्य मिलना नामुमकिन है क्योंकि ज्यादातर घर इस्तेमाल हो रहे हैं और कुछ घरों को तो तोड़कर वहां नया घर बना दिया गया है.
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
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दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
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टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
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चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
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माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
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नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
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हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
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बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
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शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/W. Rothermel
शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.