1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच करने वाली एसआईटी की रिपोर्ट में पुलिस पर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट कहती है कि दंगों से जुड़े बहुत से केस पुलिस ने एक साथ जोड़ दिए गए और कोर्ट में केस चलाए, जिससे सुनवाई में देरी होती रही.
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1984 के सिख विरोधी दंगों के 186 मामलों की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) की सिफारिशें केंद्र सरकार ने मंजूर कर ली हैं. दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एसएन ढींगरा की अध्यक्षता में बनी एसआईटी ने 186 मामलों की जांच की. एसआईटी की सिफारिशें सरकार ने स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अब कानून के मुताबिक दंगाइयों का साथ देने वाले पुलिस अफसरों और अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी.
एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पुलिस, सरकार और अभियोजन पक्ष ने सही समय पर कोर्ट के सामने जांच रिपोर्ट पेश नहीं की. रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस और प्रशासन ने आरोपियों को सजा दिलाने की नीयत से कानूनी कार्रवाई नहीं की. रिपोर्ट के मुताबिक सिख विरोधी दंगों के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए प्रशासन और पुलिस ने जांच में रुचि नहीं दिखाई.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली के सुल्तानपुरी में हुई हत्या, लूट और आगजनी की 498 घटनाओं के लिए एक ही एफआईआर दर्ज की गई और जांच एक अधिकारी को सौंप दी गई थी. रिपोर्ट में सवाल किया गया कि एक अधिकारी कैसे सभी आरोपियों की तलाश सकता है, पीड़ितों के बयान दर्ज कर सकता है और चार्जशीट दाखिल कर सकता है.
दंगा पीड़ितों की शिकायत पर जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच के आदेश के बाद एसआईटी का गठन हुआ था. जस्टिस ढींगरा ने 10 ऐसी एफआईआर चुनी हैं जिनमें उन्हें लगता है कि सरकार को निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर करनी चाहिए. साथ ही कहा गया कि हत्या के कई मामलों में पीड़ितों ने आरोपियों के नाम पुलिस को बताए, लेकिन पुलिस ने अलग-अलग जगह और समय पर हुई हत्याओं के कोर्ट में एक साथ चालान पेश किए और सभी आरोपियों पर एकसाथ केस चलाए गए. कानूनन एक ही तरह के सिर्फ तीन मामलों में पुलिस ऐसा कर सकती थी. रिपोर्ट में कहा गया कि जज भी चाहते तो अलग-अलग चालान दायर करने के लिए पुलिस को आदेश दे सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार ने जस्टिस ढींगरा कमेटी की रिपोर्ट में की गई सिफारिशें स्वीकार कर ली है और कानून के मुताबिक कार्रवाई होगी. जस्टिस ढींगरा कमेटी की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि दंगों के दौरान पुलिस और प्रशासन ने सख्ती से काम नहीं लिया और दंगा रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई नहीं हुई.
31 अक्टूबर 1984 की सुबह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख अंगरक्षकों ने कर दी थी. इसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए थे, जिनमें 2,733 हजार लोगों की मौत केवल दिल्ली में हुई थी. दंगों के दौरान कई कांग्रेस नेता पर भीड़ को उकसाने के आरोप लगे लेकिन किसी भी बड़े नेता को सजा नहीं हो पाई है.
1984 के दंगे, तीन दिन में तीन हजार हत्याएं
1984 के सिख विरोधी दंगे आजाद भारत के कुछ सबसे बदनुमा दागों में से एक हैं. तीन दिन में तीन हजारों लोगों की बलि लेने वाली इस हिंसा के बहुत से पीड़ित आज भी इंसाफ की बाट जोह रहे हैं.
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दंगों की शुरुआत
31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी. इसके तुरंत बाद सारे देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे.
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तीन हजार हत्याएं
तीन दिन तक चले हिंसा के इस तांडव में लगभग तीन हजार सिख मारे गए. इन दंगों में सबसे ज्यादा खून खराबा देश की राजधानी दिल्ली में हुआ.
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हत्या की वजह
अपनी हत्या से चार महीने पहले इंदिरा गांधी ने सिखों के पवित्र तीर्थ स्थल अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सुरक्षा बलों को भेजा था ताकि वहां से खालिस्तानी चरमपंथियों को निकाला जा सके.
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ऑपरेशन ब्लू स्टार
इस अभियान में लगभग एक हजार सिख श्रद्धालु मारे गए जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. इस दौरान 157 सैनिकों की जानें भी गईं.
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अपमान का बदला
स्वर्ण मंदिर में टैंक घुसाने के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कदम से सिखों में भारी नाराजगी थी. यही नाराजगी उनकी हत्या का कारण बनी.
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हिंसा ही हिंसा
जैसे ही इंदिरा गांधी की हत्या की खबर फैली तो हिंदू दंगाई सड़कों पर निकल गए और जो भी सिख उनके सामने पड़ा, वह उनका निशाना बना.
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सरकार 'प्रायोजित दंगे'
1984 के दंगों ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया, क्योंकि इन दंगों के पीछे सीधे सीधे सरकार का हाथ माना गया और इस हिंसा को उचित ठहराने की कोशिश भी की गई.
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जब हिली जमीन...
अपनी मां की हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद संभालने वाले राजीव गांधी ने दिल्ली में एक रैली में कहा, "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो उसके आसपास की जमीन तो हिलती है."
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त्रिलोकपुरी नरसंहार
दिल्ली का त्रिलोकपुरी इलाका इन दंगों के दौरान एक बड़े नरसंहार का गवाह बना जहां 72 घंटों के दौरान 350 सिखों को मौत के घाट उतार दिया जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
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इंसाफ की मांग
दो जांच आयोग बने और सात जांच समितियां, लेकिन त्रिलोकपुरी में हुई हत्याओं के लिए किसी को भी दोषी करार नहीं दिया गया. पीड़ित परिवार आज तक इंसाफ मांग रहे हैं.
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दागी नेता
कांग्रेस के कई नेताओं पर दंगे भड़काने और खून खराबा फैलाने के आरोप लगे जिनमें सज्जन कुमार, एचकेएल भगत और जगदीश टाइटलर जैसे नेताओं के नाम शामिल हैं.
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दोषी सज्जन
दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्व सांसद सज्जन कुमार को 17 दिसंबर 2018 को दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई. उन्हें पांच अन्य लोगों के साथ दिल्ली कैंट एरिया में पांच लोगों की हत्या के मामले में दोषी करार दिया गया.
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दंगों के दाग
कांग्रेस पार्टी आज तक 1984 के दंगों का दाग अपने दामन से नहीं धो पाई है. खासकर चुनावों से समय उसके विरोधी जरूर उसे इन दंगों की याद दिलाते हैं.