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20 साल पहले हुआ था इंटरनेट क्रांति का सूत्रपात

१५ मार्च २००९

बीस साल पहले कंप्युटर और इंटरनेट की दुनिया में एक हंगामी क्रांति हुई थी. कुछ अलग करने का जुनून रखने वाले टिम बर्नर्स ली ने डब्लू डब्लू डब्लू यानी वर्ल्ड वाइड वेब की खोज की थी.

ये है पहला वेब सर्वर: टिम बर्नर्स ली ने 1990 में इसी मशीन से पहला WWW सर्वर तैयार किया था.तस्वीर: CERN

29 साल का कंप्युटर प्रोग्रामर उलझा हुआ था कंप्युटर के संजाल में और कुछ ऐसी खोज करना चाह रहा था कि दुनिया इस जाल में एक हो जाए. एक ऐसा विश्वव्यापी नेटवर्क जिसमें कोई कहीं से भी किसी से संवाद कर सके. चिट्ठी भेज सके कंप्युटर पर जानकारी डाल सके और वो सबको मिल जाए यानी कुल मिलाकर संचार और संवाद का नक्शा चेहरा मोहरा सब बदल डालने की ठानी थी इस नौजवान ने.

कुछ अलग करने का जुनून रखने वाले इस नौजवान का नाम था टिम बर्नर्स ली- जिन्हें आज सारी दुनिया डब्लू डब्लू डब्लू यानी वर्ल्ड वाइड वेब के पितामह के रूप में जानती है. जेनेवा के पास सर्न स्थित पार्टिकल फिजीक्स की युरोपियन लेबोरेटरी में सलाहकार के रूप में काम करने वाले टिम ली को इस जगह से बेहद लगाव था. कई सारी वैज्ञानिक और खोजी उत्तेजनाओं और रचनात्मक माहौल के बीच रहना टिम ली जैसे प्रयोगधर्मी को भला क्यों अच्छा न लगता.

लेकिन इस अन्वेषी माहौल में भी संस्थागत ज्ञान को बांटने के तरीके उपलब्ध न थे. और ये टिम ली और उनके दूसरे साथियों की मुश्किलें थीं. तब टिम ली ने सर्न नेटवर्क को एक हाइपर टेक्सट जोड़ने का सुझाव दिया. इसका मतलब ये था कि दस्तावेज़ों में एक सॉफ्टवेयर भर दिया जाए ताकि वे आपस में जुड़ जाएं. और उनके एक दूसरे तक जाने के लिंक उपलब्ध हो जाएं. और लीजिये ये तकनीक और सूचना की नयी क्रांति का आगाज़ हो गया. वेब प्रकट हो गया और इस तरह इस भूमंडलीय संचार नेटवर्क से सहसा सारी दुनिया में उद्योग से लेकर बैंकों और सरकारी दफ्तरों के कामकाज का हुलिया ही बदल गया. अपार संपदा इससे सृजित हुई और लोगों की ज़िंदगियां बदल गयीं.

ये हैं करामाती वेब दुनिया के सूत्रधार टिम बर्नर्स ली.तस्वीर: AP

बात धीरे धीरे आगे बढ़ी. ली ने अपने सोफ्टवेयर की रूपरेखा 1990 में कागज़ पर उतारी. और 1991 में दुनिया की पहली वेबसाइट पेश कर दी. जनवरी 1993 में इलीनॉयस युनिवर्सिटी के दो छात्रों मार्क आंद्रेएसन और एरिक बीना ने वेब के लिए पहला ग्राफिक ब्राउज़र जारी किया. ली ने उनके सोफ्टवेयर को कुछ और नए संगठनों तक पहुंचाने के लिए एक संदेश जारी किया और जल्द ही दुनिया भर में फैले तकनीकी रूझान वाले लोग ब्राउज़र को डाउनलोड करने लगे.

साठ के दशक के आखिरी दिनों में इंटरनेट का निर्माण करने वाली कंपनी बीबीएन टेक्नोलोज़ीस के मुख्य वैज्ञानिक क्रेग पैट्रिज बताते हैं कि किस तरह उनके कुलीग ने उन्हें 1993 में वेब की इस दुनिया की पहली सैर करायी थी. उस समय महज़ 200 वेबसाइटें ही थीं. लेकिन ये साफ़ था कि सूचना सेवाओं की प्रतिस्पर्धा इस वेब विस्फोट में बिखर जाएगी.

फिर सभी वेब पेजों का नाम दिए गए. यूनीफॉर्म रिसोर्स लोकेटर यानी यूआरएल. ये इस तरह था जैसे लाइब्रेरी में रखी किताबों को उनके शेल्फ के हिसाब से नाम देना. कि फलां किताब फलां शेल्फ पर मिलेगी. 1970 के दशक से इंटरनेट के विकास से जुड़े विशेषज्ञ डेविड क्लार्क कहते हैं कि आप किताबों को इधर से उधर नहीं कर सकते, आप नए शेल्फ भी नहीं जोड़ सकते हैं.

और एक बात और, इंटरनेट के निर्माण और फिर इसमें ली के जोड़े गए प्रोटोकॉल के गठन के समय सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा गया था. वैज्ञानिक कहते हैं हमने सब पर यकीन किया, इसे सहज उपलब्ध बनाया और इसे अज्ञात रखा.

नेटस्केप का होम पेज: अब तो इंटरनेट के कई महारथी हैं.तस्वीर: AP

अब तो इंटरनेट के अभूतपूर्व और अविश्वसनीय से जान पड़ते संसार में ऐसी तरतीबें आ गयी हैं कि आप उसके ज़रिए अपना घर गली और नुक्कड़ ढूंढ लें, अपनों को देख सुन और बात कर लें और किसी भी ऐसी अंतहीन और रोचक यात्रा पर निकल पड़े जो सिर्फ सपनों में ही संभव हो सकती थी. इंटरनेट ने इस तरह एक सपना कंप्युटर स्क्रीन पर फैला दिया. फेसबुक युट्युब और भी कई सोशल नेटवर्क और ब्लॉगों की विराट जमात इंटरनेट पर धमाल मचा रही है.

और इसी क्रांति के छूटे हुए अंजान कोनों से बदमाशियां भी आ रही हैं. इंटरनेट में अपराध और चोरी के किस्से बढ़ने लगे हैं. तकनीकी रूप से चालाक सेंधमारों का एक माफिया गिरोह सक्रिय है. और सरकारों कंपनियों और खुफिया एजेंसियों के सामने नयी चुनौतिया आयी हैं.

आगे क्या संभव है. इसका जवाब देते हुए कंप्युटर साइंस के प्रोफेसर लेन क्लाइनरोक कहते हैं कि इंटरनेट के बारे में आप सिर्फ इतना ही अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसके साथ हैरान करने वाले एप्लीकेशन आते चले जा रहे हैं जिनका आपको कोई अंदाज़ा ही न था. लेन क्लाइनरोक वही शख्स हैं जिन्होंने 1960 के दशक के शुरू में इंटरनेट को ड्राइव करने यानी चलाने या सक्रिय करने वाली तकनीक का सिद्धांत विकसित किया था. ये पैकेट स्विचिंग की गणितीय थ्योरी थी.

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