भारत: सिर्फ 18 हजार बच्चों के सड़कों पर होने की जानकारी
चारु कार्तिकेय
२३ फ़रवरी २०२२
एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि राज्यों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक देश में 17,914 बच्चे सड़कों पर हैं. लेकिन अदालत ने इस आंकड़े पर संदेह जताते हुए राज्यों से बेहतर जानकारी देने के लिए कहा है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर किए एक हलफनामा में कहा है कि देश में कुल 17,914 बच्चे सड़कों पर या सड़कों पर रहने जैसे हालात में रह रहे हैं. इनमें से 10,359 लड़के हैं और 7,554 लड़कियां हैं.
आयोग के अनुसार इनमें से 9,530 बच्चे सड़कों पर अपने परिवारों के साथ रहते हैं और 834 बच्चे सड़कों पर अकेले रहते हैं. इनके अलावा 7,550 ऐसे बच्चे भी हैं जो दिन में सड़कों पर रहते हैं और रात में झुग्गी बस्तियों में रहने वाले अपने परिवारों के पास लौट जाते हैं.
इन बच्चों में सबसे ज्यादा (7,522) बच्चे 8-13 साल की उम्र के हैं. इसके बाद 4-7 साल की उम्र के 3,954 बच्चे हैं. राज्यों की बात करें तो सड़कों पर सबसे ज्यादा बच्चे (4,952) महाराष्ट्र में हैं. इसके बाद स्थान है गुजरात (1,990), तमिलनाडु (1,703), दिल्ली (1,653) और मध्य प्रदेश का (1,492) है.
लगभग हर उम्र के लाखों बच्चे सड़कों पर हैं लेकिन सरकारों को उनकी सुध नहीं हैतस्वीर: Deepak Gupta/Hindustan Times/imago images
आयोग ने अदालत को बताया कि बच्चे सड़कों पर सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों, ट्रैफिक सिग्नलों, औद्योगिक इलाकों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टेशनों और पर्यटन स्थलों पर पाए जाते हैं. आयोग ने 17 राज्यों में ऐसे 51 धार्मिक स्थलों की पहचान की है जहां सबसे ज्यादा बाल भिखारी, बाल श्रमिक पाए जाते हैं और बच्चों का शोषण भी होता है.
आयोग ने यह हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश की प्रतिक्रिया के रूप में दायर किया है. आयोग ने अदालत को बताया कि ये आंकड़े राज्यों ने 15 फरवरी तक इकट्ठा किए थे और आयोग के वेब पोर्टल "बाल स्वराज" पर अपलोड किया था.
लेकिन आयोग ने यह भी कहा कि इससे पहले आयोग ने जब सेव द चिल्ड्रन एनजीओ को ऐसे बच्चों का पता लगाने के लिए कहा था तो एनजीओ ने सड़कों पर जीवन बिता रहे बच्चों की संख्या दो लाख बताई थी.
सही तस्वीर मालूम नहीं
हालांकि अदालत ने इन आंकड़ों पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि सड़क पर बच्चों की अनुमानित संख्या 15 से 20 लाख है और यह सीमित आंकड़े इस लिए सामने आ रहे हैं क्योंकि राज्य सरकारें राष्ट्रीय बाल आयोग के पोर्टल पर जानकारी डालने का काम ठीक से नहीं कर रही हैं.
बड़ी संख्या में बच्चों को बाल श्रम में भी झोंक दिया जाता हैतस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
अदालत ने राज्यों को यह कमी दूर करने की सख्त हिदायत दी. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को इन बच्चों के हालात सुधारने के लिए आयोग द्वारा सुझाए गए उपायों को लागू करने के लिए भी कहा. अभी तक इस समस्या से निबटने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कोई दिशा-निर्देश मौजूद नहीं हैं. इसलिए राज्यों द्वारा उठाए जा रहे कदमों में एकरूपता नहीं थी.
इसे देखते हुए अदालत के आदेश पर आयोग ने कुछ कदम सुझाए हैं और अदालत ने राज्यों को इन सुझावों का पालन करने के लिए कहा है. अदालत ने विशेष रूप से पुलिस की भूमिका पर नाराजगी जताते हुए कहा कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का बिलकुल भी पालन नहीं हो रहा है.
अधिनियम के तहत जब भी किसी पुलिस अफसर को कोई बच्चा भीख मांगता हुआ दिखाई दे तो उसे कानूनी मामला दर्ज करना होता है और उस बच्चे की देखभाल सुनिश्चित करनी होती है. अदालत ने कहा कि किसी भी राज्य में यह नहीं हो रहा है और इस स्थिति को बदले जाने की जरूरत है.
कानून से अनाथ बच्चों की भलाई
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में कई अहम संशोधन किए गए हैं. सरकार का कहना है कि इन संशोधनों से बच्चा गोद लेना आसान होगा और उनकी सुरक्षा भी बढ़ेगी. इस विधेयक में बाल संरक्षण को मजबूत करने के उपाय भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/STR
गोद लेने की प्रक्रिया आसान
किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन करने के लिए किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित हो चुका है और यह जल्द ही कानून बन जाएगा. इस कानून के तहत बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है.
सरकार का कहना है कि किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन से कानून मजबूत होगा और बच्चों की सुरक्षा बेहतर ढंग से होगी.
तस्वीर: IANS
अनाथ बच्चों का कल्याण
सरकार का कहना है कि यह एक बेहतर कानून है जिससे अनाथ बच्चों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलना सुनिश्चित किया जा सकता है. कानून के प्रभावी तरीके से लागू होने से अनाथ बच्चों को शोषण से बचाया जा सकता है.
तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir
किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे
संशोधित कानून में एक अहम बदलाव ऐसे अपराध से जुड़ा है जिसमें भारतीय दंड संहिता में न्यूनतम सजा तय नहीं है. 2015 में पहली बार अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया-छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध. तब ऐसे केसों के बारे में कुछ नहीं बताया गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है. संशोधन प्रस्तावों के कानून बन जाने से किशोर अपराध से जुड़े मामले जल्द निपटेंगे.
तस्वीर: DW/M. Kumar
बाल कल्याण समिति
संशोधन प्रस्तावों में बाल कल्याण समितियों (सीडब्ल्यूसी) को ज्यादा ताकत दी गई है. इससे बच्चों का बेहतर संरक्षण करने में मदद मिलेगी. एक्ट में प्रावधान है कि अगर बाल कल्याण समिति यह निष्कर्ष देती है कि कोई बच्चा, देखरेख और संरक्षण की जरूरत वाला बच्चा नहीं है, तो समिति के इस आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं की जा सकती है. बिल इस प्रावधान को हटाता है.
तस्वीर: Manish Swarup/AP Photo/picture-alliance
बढ़ेगी जवाबदेही, तेजी से होगा निस्तारण
संशोधन विधेयक में बच्चों से जुड़े मामलों का तेजी से निस्तारण सुनिश्चित करने और जवाबदेही बढ़ाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट व अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट को ज्यादा शक्तियां देकर सशक्त बनाया गया है. इन संशोधनों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट समेत जिला मजिस्ट्रेट को जेजे अधिनियम की धारा 61 के तहत गोद लेने के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करना शामिल है.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
और भी बदलाव
विधेयक में सीडब्ल्यूसी सदस्यों की नियुक्ति के लिए पात्रता मानकों को फिर से परिभाषित किया गया है. सीडब्ल्यूसी सदस्यों की अयोग्यता के मानदंड भी यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किए गए हैं कि, केवल आवश्यक योग्यता और सत्यनिष्ठा के साथ गुणवत्तापूर्ण सेवा देने वालों को ही सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किया जाए.
तस्वीर: Amarjeet Kumar Singh/SOPA Images via ZUMA Wire/picture alliance
बदलाव की जरूरत क्यों
बाल अधिकार सुरक्षा पर राष्ट्रीय आयोग ने देश भर के बाल संरक्षण गृहों का ऑडिट कर साल 2020 में रिपोर्ट दी थी. 2018-19 के इस ऑडिट में सात हजार के करीब बाल गृहों का सर्वेक्षण किया गया, ऑडिट में पाया गया कि 90 प्रतिशत संस्थानों को एनजीओ चलाते हैं और करीब 1.5 फीसदी कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहे थे.