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2010 रहा आपदाओं का साल

८ फ़रवरी २०११

2010 इतिहास के सबसे खतरनाक सालों में से एक साबित हुआ है. हैती में भूकंप से दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और अब भी वे भूकंप के विनाशकारी असर से जूझ रहे हैं. पाकिस्तान में बाढ़ ने दस लाख से ज्यादा लोगों को बेघर किया

तस्वीर: AP

वैसे तो भूकंप और सुनामी से ज्यादा विनाशकारी आपदाएं तो कम ही हैं, लेकिन इसके बावजूद मनुष्यों की गतिविधियां ही आपदाओं के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं. संयुक्त राष्ट्र के संगठन इसीलिए चाहते हैं कि देश आपदाओं के लिए तैयारी और बेहतर तरीके से करें.

संयुक्त राष्ट्र के नए आंकड़ों के मुताबिक 2010 में 373 प्राकृतिक आपदाएं आईं, जो बीते सालों के मुकाबले सामान्य ही है. सेंटर फॉर रिसर्च ऑफ एपिडेमॉलजी ऑफ डिसास्टर्स, सीआरईडी स्विट्जरलैंड में काम कर रहीं देबारती गुहा सापिर का कहना है, "पिछले सालों में जितनी आपदाएं आईं, उतनी आपदाएं इस साल भी देखने को मिल रही हैं. लेकिन साथ ही 2010 में ज्यादा लोग मारे गए हैं. सबसे ज्यादा लोग हैती के भूकंप में मारे गए. पूरी दुनिया में जितने लोग 2010 में मारे गए थे, उनमें से दो तिहाई तो हैती में ही हादसे का शिकार बने. लेकिन ऐसा कई बार होता है. हर साल एक ऐसा हादसा होता है जो मारे जाने वाले लोगों की संख्या को बढ़ा देता है."

तस्वीर: AP


आपदाओं का कारण मनुष्य ही है

पिछले साल पूरी दुनिया में लगभग तीन लाख लोग प्राकृतिक आपदाओं का शिकार बने. लेकिन हादसों से प्रभावित लोगों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है. विश्व भर में बीस करोड़ लोग बेघर हो गए और उन्हें अपने घरों और जमीन को छोड़ना पड़ा. प्राकृतिक आपदाओं में से भूकंप लगातार सबसे जानलेवा साबित हो रहा है, लेकिन इसके अलावा बाढ़, तूफान और गर्मी की लहरों से भी लोग परेशान हो रहे हैं. क्रेड के मुताबिक पिछले दस साल में जानलेवा प्राकृतिक हादसों में भारी बढ़त हुई है.

तस्वीर: AP

विश्लेषकों का मानना है कि इन सारी आपदाओं का लेना देना कहीं न कहीं जलवायु में परिवर्तन से है. संयुक्त राष्ट्र की आपदा से बचाव के लिए खास आयुक्त मार्गरेटा वालश्ट्रोएम का कहना है, "एक आध साल पहले मैंने जलवायु और मौसम पर काम कर रहे वैज्ञानिकों से पूछा, जलवायु परिवर्तन के क्या आसर पड़ सकते हैं. उन्होंने कहा, आप इस बात को समझ लीजिए कि यह ट्रेंड जारी रहेगा. भयंकर पैमाने पर आपदाएं होंगी और पहले से इनकी जानकारी हासिल करना और मुश्किल हो जाएगा. 2010 में जो हमने देखा है, वह इसी ट्रेंड को दर्शाता है. हम समझ सकते हैं कि हमारा भविष्य भी इसी तरह का होगा."

2010 में अमेरिका रहा हादसों से त्रस्त

हैती में भूकंप की वजह से अमेरिका इस साल प्राकृतिक आपदाओं की सूची में सबसे आगे हैं. एशिया में सबसे ज्यादा आपदाएं होती हैं. रूस में पड़ी भयानक की वजह से यूरोप इस साल दूसरे स्थान पर रहा. और जहां तक प्रभावित लोगों की बात है, उसमें एशिया अब भी सबसे आगे है. 2010 में चीन में भूकंप आए, बाढ़ आई और भूस्खलन भी हुए. देबारती गुहा सापिर का कहना है कि यूरोप में गर्मियों का शिकार ज्यादातर बूढ़े लोग होते हैं और इसलिए लोग अपने को जलवायु परिवर्तन में बदलाव के अनुकूल नहीं कर पाते हैं. बढ़ती गर्मी के लिए यह संकेत अच्छे नहीं हैं: "यूरोप में लोग अपने को गर्मियों के अनुकूल नहीं कर पाते हैं. इसे हम थर्मोरेगुलेशन कहते हैं. गरम देशों वाले लोगों की बढ़ते या घटते तापमान के प्रति प्रतिक्रिया काफी अच्छी रहती है. जब बंगाल के कोलकाता में, जहां से मैं आती हूं, गर्मी होती है तो मैं आराम से अपने को उसके अनुकूल बना लेती हूं. मुझे पसीना आता है, मैं धीरे काम करने लगती हूं, मेरी शारीरिक प्रक्रियाएं धीमी हो जाती हैं. यूरोपीय लोग जाहिर है अब इस हालत में नहीं है कि उनके शरीरों की प्रतिक्रिया सही रहे."

तस्वीर: AP


आगे का रास्ता

पिछले साल की आपदाओं में काफी नुकसान भी हुआ है. 2010 में 110 अरब डॉलर का घाटा हुआ और चिली और चीन में भूंकपों से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. हैती में भूकंप से पैसों और मूलभूत संरचनाओं के घाटे को पैसों से आंका नहीं जा सकता क्योंकि वहां मूलभूत संरचनाएं न के बराबर हैं. संयुक्त राष्ट्र के विश्लेषकों का कहना है कि विकासशील देशों के आगे बढ़ने से भी प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढेगी.

संयुक्त राष्ट्र की वालश्ट्रोएम का कहना है कि पर्यावरण का विनाश एक तरफ प्राकृतिक आपदाओं से हुआ है और दूसरी तरफ मूलभूत संरचनाओं के न होने से लोगों के लिए खतरा बढ़ रहा है. वालश्ट्रोएम सारी देशों की सरकारों को चेतावनी देते हुए कहती हैं, "आपको अपने पूर्वानुमान एक साल से भी ज्यादा के लिए लगाने होंगे. इस बात का ध्यान रहे कि आपके देश में खेती, लोगों के लिए खाना, मूलभूत संरचना, आपके शहरों में विकास, सब खतरा बढ़ाने में योगदान देते हैं."

रिपोर्टः क्लाउडिया विटे, मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः विवेक कुमार

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