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2014 तक सैनिकों की वापसी अभी तय नहीं

१२ मार्च २०१२

अमेरिकी सैनिक की गोलीबारी में 16 अफगान नागरिकों की मौत के एक दिन बाद जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल अचानक अफगानिस्तान पहुंची हैं. मैर्केल का कहना है कि 2014 तक सैनिकों की वापसी तय नहीं है.

तस्वीर: dapd

जर्मन चांसलर ने सोमवार को कहा कि अभी वो समय नहीं आया जब जर्मनी यह कह सके, "हम आज निकल सकते हैं. इसलिए मैं नहीं कह सकती कि हम 2013 या 2014 तक ऐसा कर सकेंगे. हमारी इच्छा है. हम चाहते हैं और हम इसके लिए काम कर रहे हैं." मैर्केल ने मजार ए शरीफ में तैनात जर्मन सैनिकों से बात की और अफगानिस्तान से तालिबान जैसे हथियाबंद गुटों से राजनीतिक समझौते की तरफ तेजी से बढ़ने की अपील की. मैर्केल अफगानिस्तान का दौरान बेहद तनावपूर्ण लम्हे में कर रही हैं.

तस्वीर: dapd

आक्रामक प्रतिक्रिया

अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिक की गोली से 16 आम लोगों की मौत के कारण कंधार सुलग रहा है. तालिबान ने गोलीबारी के बाद की घटना पर भी कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. तालिबान ने कहा है, "अमेरिकी आतंकवादी इस अमानवीय हरकत पर यह कह कर माफी चाहते हैं कि वो मानसिक रूप से बीमार था. अगर इस घटना का दोषी मानसिक रूप से बीमार साबित होता है तो यह नैतिक रूप से एक और अपराध है कि उन्होंने इस तरह के मानसिक रोगियों को हथियार दे रखा है." तालिबान ने बाहरी ताकतों से बदला लेने की बात कही है. "मरने वालों में ज्यादातर मासूम बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग हैं जो अमेरिकी क्रूरता का शिकार हुए हैं. उनके हाथ बेगुनाहों के खून से रंगे हैं."

तस्वीर: dapd

करार पर असर

अमेरिकी सैनिक की गोलीबारी में आम अफगान लोगों की मौत का असर अफगानिस्तान के साथ नए अमेरिकी करार की कोशिशों पर पड़ सकता है. अमेरिका इस नए करार के जरिए अफगानिस्तान में लंबे समय के लिए अपनी मौजूदगी बनाए रखना चाहता है. रविवार को हुआ हमला अमेरिकी कूटनीति के लिए बड़ा संकट लेकर आया है. एक अफगान अधिकारी ने कहा है, "हत्याकांड के बाद करार पर दस्तखत में देरी हो सकती है." अफगानिस्तान में अमेरिका विरोधी भावनाओं का ज्वार पिछले महीने नाटो के बेस में गलती से कुरान जलाए जाने के बाद से ही उफान पर है. अफगानिस्तान में ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है जो विदेशी फौजों को तुरंत अपने देश से बाहर देखना चाहते हैं. आम लोगों की मौत से इस भावना को और ज्यादा बल मिलेगा. अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई इस घटना के बाद अपने रुख में सख्ती ला सकते हैं क्योंकि जनता पहले ही सरकार के कामकाज के तरीकों पर सवाल उठा रही है. अफगानिस्तान अमेरिकी करार पर दस्तखत करने से पहले चाहता है कि अमेरिकी जेलों को उसके हवाले करने के अलावा अफगान घरों पर रात को पड़ने वाले छापे बंद कर दिए जाए. 11 साल पुरानी जंग में आम अफगान लोगों की मौत दोनों पक्षों के लिए सबसे बड़ी सिरदर्द बन गई है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

सावधानी की हिदायत

अमेरिकी अधिकारियों ने कंधार की घटना पर दुख जताने के साथ ही अपने नागरिकों को विशेष रूप से सावधान रहने की हिदायत भी दी है. उन्होंने आशंका जताई है कि घटना की प्रतिक्रिया में अमेरिकी नागरिकों पर हमले हो सकते हैं. आने वाले दिनों में विरोध प्रदर्शनों की भी आशंका जताई जा रही है. कंधार तालिबान की जन्मभूमि है. अमेरिका समर्थित अफगान फौजों ने 2001 में उसे सत्ता से तो बाहर कर दिया लेकिन दक्षिणी और पूर्वी प्रांतो कुछ सबसे जबरदस्त लड़ाइयां देखी हैं. कुरान जलाए जाने के बाद भी इन्हीं इलाकों ने प्रतिक्रियाओं का तूफान सबसे ज्यादा देखा.

जर्मनी करीब 5000 सैनिकों के साथ अफगानिस्तान में नाटो की अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग सेना में तीसरा सबसे बड़ा भागीदार है. मैर्केल जर्मन सैनिकों से मिलने कुंदूस भी जाना चाहती थीं लेकिन खराब मौसम के कारण यह योजना रद्द कर दी गई. मैर्केल इससे पहले दिसंबर 2010 में अफगानिस्तान आईं थीं.

रिपोर्टः एएफी, डीपीए/एन रंजन

संपादनः आभा एम

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