21वीं सदी में युद्ध में सबसे ज्यादा लोग पिछले साल मरे
२८ जून २०२३
साल 2022 युद्ध में मरने वाले लोगों की संख्या के लिहाज से इस सदी में सबसे बुरा साबित हुआ है. 1994 में रवांडा के जनसंहार के बाद संघर्ष में सबसे ज्यादा लोगों की मौत 2022 में हुई है.
यूक्रेन युद्ध में 2022 में 82 हजार लोगों की जान गईतस्वीर: Ronaldo Schemidt/AFP
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दुनिया भर में चल रहे संघर्ष में मरने वाले लोगों की संख्या पिछले साल 238,000 के पार चली गई. इस लिहाज से 2022 संघर्ष में मरने वाले लोगों की संख्या के मद्देनजर बीते लगभग तीन दशकों में सबसे घातक साल रहा.
इस से पहले 1994 में संघर्षों में इतनी संख्या में लोगों की जान गई थी. उस साल रवांडा में जनसंहार हुआ था. 21वीं सदी में एक साल के भीतर इतने लोगों की जान इससे पहले कभी नहीं गई. लंदन के इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने ग्लोबल पीस इंडेक्स जारी किया है. यह इंडेक्स 163 देशों में 23 गुणात्मक और मात्रात्मक संकेतों के आधार पर तैयार की जाती है. इसके जरिये सबसे ज्यादा और सबसे कम शांतिपूर्ण देश का पता लगाया जाता है. इस सूचकांक के मुताबिक दुनिया लगातार 9वें साल कम शांतिपूर्ण होने की तरफ बढ़ रही है.
टिगरे में बड़ी संख्या में लोगों ने भूखमरी की वजह से जान गंवाईतस्वीर: Eduardo Soteras/AFP/Getty Images
कहां हुई ज्यादा मौतें
इथियोपिया के टिगरे में चल रहे संघर्ष ने पिछले साल सबसे ज्यादा लोगों की जान ली. साल 2022 के दौरान इस संघर्ष में एक लाख से ज्यादा लोगों की जान गई है. इसमें इथियोपिया और एरिट्रिया की सेनाओं और विद्रोहियों के बीच चले संघर्ष से ज्यादा लोगों की मौत भूखमरी के वजह से हुई. दोनों वजहों से हुई मौत में दोगुने का फर्क है.
इसके बाद यूक्रेन में रूसी सेना के हमले की वजह से मारे गए लोगों की संख्या है. 2022 में यूक्रेन जंग ने कम से कम 82,000 लोगों की जान ली है.
आईईपी के विशेषज्ञों का आकलन है कि यूक्रेन में 20 से 24 साल की उम्र के 65 फीसदी पुरुष या तो जंग में मारे गए या फिर भाग गए. यूक्रेन के 30 फीसदी से ज्यादा लोग या तो अपने ही देश में या फिर दूसरे देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हुए हैं.
ग्लोबल पीस इंडेक्स के लिए जिन संकेतों को ध्यान में रखा गया है उनमें आंतरिक या बाहरी संघर्ष, हत्या की दर, सैन्यीकरण का अंश, हथियारों का निर्यात, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता और कैदियों की संख्या शामिल हैं. यह किसी सशस्त्र संघर्ष की आर्थिक कीमत का भी आकलन करता है. पिछले साल इनकी कीमत 17.5 हजार अरब अमेरिकी डॉलर थी पूरी दुनिया की जीडीपी का करीब 13 फीसदी है.
अफगानिस्तान अशांत देशों की सूची में सबसे बुरे हाल में हैतस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
दुनिया के सबसे अशांत देश
आईईपी के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष स्टीव किलेलिया का कहना है,"अफगानिस्तान इराक और सीरिया की जंग के बाद अब यूक्रेन युद्ध जाहिर तौर पर ऐसी जंग बन गई है जिसमें दुनिया की सबसे ताकवर सेनाएं भी अच्छे संसाधन वाली स्थानीय आबादी पर जीत नहीं पा सकतीं." आईईपी की तरफ से जारी बयान में किलेलिया ने यह भी कहा है, "युद्ध मोटे तौर ऐसा बन गया है जिसे जीता नहीं जा सकता और इसका आर्थिक बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है."
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, और चीन यानी सिर्फ पांच देश दुनिया भर में एक तिहाई हथियारों का निर्यात करते हैं.
आईसलैंड, डेनमार्क और आयरलैंड दुनिया के सबसे शांतिपूर्ण देश हैं जबकि अफगानिस्तान, यमन और सीरिया सबसे कम शांतिपूर्ण. जर्मनी इस सूची में 15वें नंबर पर है जो पहले से दो ज्यादा है. उधर ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड पांचवें और 10वें नंबर पर है. भारत इस सूची में 126 नंबर पर है और पिछले साल की तुलना में उसकी स्थिति थोड़ी सी बेहतर हुई है. सबसे नीचे यानी 163 वें नंबर पर अफगानिस्तान है इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिणी सूडान, डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, रूस और तब यूक्रेन है. रूस तीन स्थान नीचे आया है जबकि यूक्रेन 14 स्थान.
एनआर/एसबी (डीपीए)
दुनिया भर में बढ़ रहा है तनाव
मध्यपूर्व और अफ्रीकी देशों में फैली हिंसा और तनाव का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है. ग्लोबल पीस इंडेक्स के ताजा आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में दुनिया के किस मुल्क में अशांति रही तो किसे सुकून कायम करने में सफलता मिली.
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शांति बनाम तनाव
ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट एंड पीस (आईईपी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि साल 2017 में यूरोप दुनिया का सबसे शांत क्षेत्र रहा. वहीं मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों में तनाव और हिंसा में वृद्धि देखी गई. कुल मिलाकर अशांति हावी रही.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/K. Hamra
वैश्विक शांति को खतरा
आईईपी के मुताबिक वैश्विक शांति में लगातार गिरावट नजर आ रही है. यह सतत है और पिछले एक दशक से चल रही है. रिपोर्ट में कहा गया है, "मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका के विवादों का असर दुनिया के अन्य हिस्सों में भी दिखा है. जो वैश्विक शांति के लिए खतरा है."
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ग्लोबल पीस इंडेक्स
आईईपी का ग्लोबल पीस इंडेक्स बताता है कि 2017 में 92 देशों ने शांति दर में गिरावट महसूस की. वहीं सिर्फ 71 देशों में स्थितियां सुधरीं. आईईपी प्रमुख स्टीव किलेलिया ने कहा कि यह ट्रेंड दुनिया में पिछले चार सालों से बना हुआ है.
तस्वीर: bdnews24.com
उत्तरी अफ्रीका अशांत
ग्लोबल पीस इंडेक्स के मुताबिक मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देश दुनिया के सबसे अशांत क्षेत्रों में रहे. इंडेक्स में सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिणी सूडान, इराक, सोमालिया जैसे देशों को सबसे निचले पायदानों पर रखा गया है.
तस्वीर: picture-alliance/abaca/C. Tukiri
कुछ सुधार भी
रिपोर्ट मुताबिक सब-सहारा अफ्रीकी देशों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. लाइबेरिया, बुरुंडी, सेनेगल इंडेक्स में शामिल उन देशों में से हैं जिनकी स्थिति बेहतर हुई है. अफ्रीका का मुख्य क्षेत्र आम तौर से सब-सहारा कहलाता है. इसमें मुख्यत: उत्तर अफ्रीका के इस्लामी देश जैसे मिस्र, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, लीबिया शामिल नहीं हैं.
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यूरोप में सुकून
सुकून भरे देशों के टॉप 5 नामों में न्यूजीलैंड को छोड़कर सभी चार नाम यूरोपीय देशों के हैं. इसमें आइसलैंड, ऑस्ट्रिया, पुर्तगाल, डेनमार्क शामिल है. जर्मनी को इंडेक्स में 17वां स्थान मिला है.
तमाम थिंक टैंक, रिसर्च इंस्टीट्यूट, सरकारी कार्यालयों और यूनिवर्सिटियों से जुटाए गए डाटा के आधार पर आईईपी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हिंसा के आर्थिक नुकसान की भी चर्चा की. 2017 में युद्ध और हिंसा के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था पर 14,800 अरब डॉलर का बोझ पड़ा. कुल मिलाकर 2000 डॉलर प्रति व्यक्ति नुकसान.
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अर्थव्यवस्था में इजाफा
स्टडी कहती है कि अगर सीरिया, दक्षिणी सूडान और ईराक जैसे अशांत क्षेत्रों में भी आइसलैंड और न्यूजीलैंड जैसे देशों की तरह शांति स्थापित हो जाए तो यह उन देशों की अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति दो हजार डॉलर का इजाफा करेगी.
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कितना नुकसान
पिछले दस सालों में दुनियाभर में विवाद और तनाव बढ़ा है. पिछले एक दशक के दौरान युद्ध क्षेत्रों में होने वाली मौतों में 246 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं आतंकवाद के मामले में यह बढ़ोतरी तकरीबन 203 फीसदी की रही.
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क्या है पैमाना
ग्लोबल पीस इंडेक्स को 23 पैमानों पर नापा जाता है. इसमें समाज में सुरक्षा, मौजूदा विवाद, सैन्यीकरण आदि प्रमुख है. इसके साथ हत्याओं के आंकड़ें से लेकर किसी देश की जेल में बंद कैदियों, पुलिस अधिकारियों आदि का डाटा भी जुटाया जाता है.