पृथ्वी को एक नया चांद मिलने वाला है. 2024 पीटी5 नाम का यह मिनी-मून कुछ दिन के लिए पृथ्वी के चक्कर लगाएगा.
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वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी को जल्दी ही एक नया छोटा सा चांद मिलने वाला है. हालांकि यह बस कुछ दिन के लिए ही रहेगा. दरअसल, यह एक क्षुद्र ग्रह है जो कुछ दिन के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में आ जाएगा और उसके चक्कर लगाएगा.
हाल ही में खोजे गए इस क्षुद्रग्रह का नाम 2024 पीटी5 रखा गया है. खगोलविदों के अनुसार, 29 सितंबर से 25 नवंबर तक पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अस्थायी रूप से इसे अपने क्षेत्र में ले लेगा. उसके बाद यह चांद की तरह पृथ्वी का चक्कर लगाएगा और फिर सूर्य की कक्षा में लौट जाएगा, जिसे हेलियोसेंट्रिक ऑर्बिट कहा जाता है.
इस अस्थायी मिनी-मून और इसकी घोड़े की नाल के आकार की कक्षा के बारे में जानकारी इस महीने अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की पत्रिका ‘रिसर्च नोट्स' में प्रकाशित हुई है.
खगोलविदों ने पहली बार इस क्षुद्रग्रह को 7 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका में स्थित टेलीस्कोप ‘एस्टेरॉइड टेरिस्ट्रियल-इम्पैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम' (एटलैस) के जरिए देखा था.
मिनी-मून: 2024 पीटी5 क्या है?
‘रिसर्च नोट्स' में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक 2024 पीटी5 एक नियर-अर्थ एस्टेरॉइड (एनईए) है, जिसका व्यास 11 मीटर है. यानी एक सिरे से दूसरे सिरे तक यह लगभग दो जिराफों के बराबर है. इसे "अर्जुन क्षुद्रग्रह" के रूप में जाना जाता है.
नील आर्मस्ट्रॉन्ग के तीसरे साथी क्यों नहीं उतरे थे चांद पर?
विज्ञान और चमत्कार, आमतौर पर ये दोनों एक-दूसरे से कोसों दूर माने जाते हैं. लेकिन ठीक 55 साल पहले विज्ञान की पीठ पर सवार हम इंसानों ने एक अद्भुत चमत्कार किया था. कभी ना भूल पाने वाली यह तारीख थी, अपोलो 11 की मून लैंडिंग.
तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance
इंसानी इतिहास के सबसे यादगार हासिलों में से एक
55 साल पहले की यही तारीख थी... 20 जुलाई 1969 का दिन जब इंसान ने वह कमाल कर दिखाया जो पहले कभी नहीं हुआ था. इंसान पहली बार अपनी दुनिया से परे एक जीवनविहीन निरे वीरान पिंड पर पहुंचा. सफेद सूट में पैक, पीठ पर ऑक्सीजन सिलिंडर लादे दो लोगों ने वहां पांव धरे, जहां पहले कभी कोई इंसान नहीं पहुंच सका था.
उन दो लोगों ने जिस मिट्टी पर कदमों के निशान छोड़े, वो हमारी इस पृथ्वी से बहुत दूर किस्से-कहानियों और गीतों की जमीन थी. उन दो लोगों के नाम थे: नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन बज आल्ड्रिन. 16 जुलाई, 1969 को जब एक सैटर्न वी रॉकेट अपोलो 11 मिशन को लेकर केप कैनेडी से रवाना हुआ, तो इसकी तैयारी करते अमेरिका को कई साल हो चुके थे.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
अंतरिक्ष की होड़
इस तारीख के आठ साल पहले 25 मई 1961 को तब राष्ट्रपति रहे जॉन एफ. कैनेडी ने अपोलो 11 के लिए एक असीम महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया कि इंसानों को चांद की धरती पर उतारेंगे और उन्हें सुरक्षित पृथ्वी पर वापस भी लाएंगे. उन दिनों सोवियत संघ और अमेरिका में एक होड़ मची थी. पहली-पहली बार अंतरिक्ष में ये और वो करने की.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
मानव ने तय किया एक अकल्पनीय लक्ष्य
अप्रैल 1961 में सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अंतरिक्ष पहुंचाया. यह कारनामा पहली बार हुआ था. इससे अमेरिका ने खुद पर बहुत दबाव बढ़ा लिया. उसे अंतरिक्ष में ऐसी कामयाबी की तलाश थी, जो नाटकीय और अकल्पनीय हो. आखिरकार इस लक्ष्य की शिनाख्त हुई और 25 मई 1961 को कैनेडी ने कांग्रेस के साझा सत्र में कहा कि चांद पर मानव अभियान भेजेंगे.
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तीन अंतरिक्षयात्रियों की रवानगी
16 जुलाई 1969 को एक सैटर्न वी रॉकेट ने अपोलो 11 मिशन को लेकर चांद के लिए कूच किया. इसमें तीन अंतरिक्षयात्री थे. मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग. लूनर मॉड्यूल पायलट एडविन बज आल्ड्रिन. और, कमांड मॉड्यूल पायलट माइकल कॉलिन्स. टीवी पर प्रसारित इस लॉन्चिंग को देख रहे लाखों लोग इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने.
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शांति का समंदर
चांद का व्यास तो 3,476 किलोमीटर है. इतने बड़े चांद पर अपोलो 11 मिशन को कहां उतारा जाए, यह तय करने में नासा को दो साल लगे. उसने पांच संभावित जगहों की शिनाख्त की. लेकिन जब लैंडिंग का मौका आया, तो लूनर मॉड्यूल ईगल बहुत रफ्तार में था. ऐसे में जहां उतरने की योजना बनी थी, ईगल उसके पश्चिम में उतरा. इस पॉइंट को "मारे ट्रेंक्विलिटाटिस" कहा जाता है. हिन्दी में कहें, तो शांति का समंदर.
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"दी ईगल हैज लैंडेड"
20 जुलाई 1969 को जब अपोलो 11 मिशन चांद पर उतरा, तब उसके लूनर मॉड्यूल ईगल में बस 25 सेकेंड का ईंधन बचा था. लैंडिंग होने पर आर्मस्ट्रॉन्ग ने मिशन कंट्रोल से कहा, "दी ईगल हैज लैंडेड." इसके कुछ घंटों बाद हैच खुला और बतौर मिशन कमांडर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने पैर बढ़ाए और चांद पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने.
तस्वीर: Neil Armstrong/NASA/dpa/picture alliance
"इंसान का एक छोटा कदम, इंसानियत के लिए महान छलांग"
करीब 20 मिनट बाद बज आल्ड्रिन सीढ़ियों से उतरे और चांद की जमीन पर उनके पांव पड़े. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने मिलकर चांद की सतह पर अमेरिकी झंडा गाड़ दिया. दोनों ने चांद से पत्थर और धूल के नमूने जमा किए. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ने चांद पर कुल 21 घंटे, 36 मिनट बिताए. इसमें चांद की सतह पर बिताई गई अवधि थी करीब ढाई घंटा. 21 जुलाई को वापसी का सफर शुरू हुआ, जो 24 जुलाई को हवाई पहुंचने पर पूरा हुआ.
तस्वीर: NASA
तीसरे अंतरिक्षयात्री कॉलिन्स कहां रह गए?
इस ऐतिहासिक सफर में आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन की उपलब्धि के आगे अक्सर कमांड मॉड्यूल पायलट माइकल कॉलिन्स का नाम भुला दिया जाता है. वो भी तो थे अपोलो 11 मिशन का हिस्सा, फिर वो चांद की जमीन पर क्यों नहीं उतरे? दरअसल अपोलो 11 मिशन में दो उपकरणों को सैटर्न वी रॉकेट से लॉन्च किया गया था. एक, लूनर लैंडर ईगल. दूसरा कोलंबिया, जो ऑर्बिट करने वाली एक मदरशिप थी. कॉलिन्स इसी मदरशिप में थे.
तस्वीर: AP/dpa
क्या कर रहे थे माइकल कॉलिन्स
16 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद कॉलिन्स, आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन तीन दिन साथ थे. 20 जुलाई को कोलंबिया के पिछले हिस्से से निकलकर ईगल लैंडिंग के लिए बढ़ता, इसमें कॉलिन्स की अहम भूमिका थी. आर्मस्ट्रॉन्ग और आल्ड्रिन ईगल लैंडर में बैठकर चांद की सतह के लिए रवाना हो गए. कोलंबिया को पायलट कर रहे कॉलिन्स 21 घंटे से ज्यादा वक्त तक अकेले चांद का चक्कर लगाते रहे. दुनिया से दूर, हर एक इंसान से दूर, निरे अकेले.
तस्वीर: NASA
"मैं एकदम अकेला हूं"
कहते हैं कि ये इतना एकांत था, जितना शायद कभी किसी इंसान ने महसूस नहीं किया था. दी गार्डियन अखबार के मुताबिक, उन्होंने अपने कैप्सूल में लिखा था, "मैं अब सच में बिल्कुल अकेला हूं, किसी भी ज्ञात जीवन से एकदम अकेला." बताते हैं कि मिशन की तैयारी के समय से ही कॉलिन्स को डर था कि कहीं उनके दोनों साथियों के साथ हादसा ना हो जाए.
तस्वीर: Abaca/CNP/picture alliance
बहुत मुमकिन था कि कोई हादसा हो जाता
कॉलिन्स को इस बात का हद से ज्यादा खौफ था कि कहीं उन्हें अकेले पृथ्वी पर ना लौटना पड़े. ऐसे किसी हादसे की आशंका बहुत मजबूत थी. तीनों अंतरिक्षयात्रियों को हादसे का पुरजोर अंदेशा था. आर्मस्ट्रॉन्ग ने भी पृथ्वी पर जिंदा लौटने की संभावना 50-50 आंकी थी. कई तरह के खतरे थे. मसलन कहीं लैंडर क्रैश हो गया, तो? इंजन फेल हो गया, तो? वापसी के वक्त इंजन चालू ही ना हुआ, तो?
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यह डर नासा को भी था
यहां तक कि ईगल के फेल होने की आशंका के मद्देनजर राष्ट्रपति निक्सन का एक भाषण तैयार रखा गया था, जिसमें वह श्रद्धांजलि देते हुए कहते, "नियति का आदेश था कि जो मानव शांति से खोजबीन करने चांद गए, वे अब चिर शांति में हमेशा चांद पर रहेंगे." क्या यह विज्ञान और इंसानी जज्बे से हासिल चमत्कार नहीं था कि यह शोक संदेश पढ़ने की कभी नौबत ही नहीं आई! कि सच में इंसान चांद पर चढ़ा और वापस अपनी दुनिया में लौट आया!
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यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी के पास बहुत धीरे से आएगा और 29 सितंबर को पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करेगा. फिर यह 25 नवंबर को पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर सूर्य की कक्षा में लौट जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार, यह 9 जनवरी 2025 को एक बार फिर पृथ्वी के बहुत करीब आएगा.
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अक्सर छोटे क्षुद्रग्रहों को उसकी कक्षा में खींच लेता है. इससे वे अस्थायी रूप से "छोटे-चंद्रमा" बन जाते हैं. शोधकर्ताओं ने इस मिनी-मून को "अस्थायी रूप से पकड़ी गई मक्खी" कहा है.
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कहां है 2024 पीटी5?
अंतरिक्ष से जुड़े शोध और समाचार प्रकाशित करने वाली वेबसाइट ‘द स्काईलाइव' के अनुसार, 2024 पीटी5 फिलहाल उत्तरी गोलार्ध के उत्तरी आकाश में स्थित ड्रेको नक्षत्र में है. यह पृथ्वी से लगभग 30 लाख किलोमीटर दूर है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि हम इस मिनी-मून को देख नहीं सकते क्योंकि इसकी चमक मैग्निट्यूड 22 है, जो इसे नंगी आंखों से या यहां तक कि बाजार में उपलब्ध शक्तिशाली टेलीस्कोप से देखना भी असंभव बनाती है. इसे केवल बड़े 30-इंच वाले पेशेवर टेलीस्कोप से ही देखा जा सकता है.
मंगल के चांद पर क्या पता लगाएगा जापान?
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2024 पीटी5 जैसे क्षुद्र ग्रह आम तौर पर मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच स्थित मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट से आते हैं. 2024 पीटी5 अर्जुन क्षुद्रग्रह बेल्ट से आया है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी जैसी कक्षा में घूमता है.
पृथ्वी के अन्य चंद्रमा
यूं तो पृथ्वी का एकमात्र वास्तविक प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है, फिर भी हमारे ग्रह के पास कुछ "क्वॉसी-सैटेलाइट्स" या आभासी उपग्रह भी हैं. उनमें से एक है ‘कामो'ओलेवा', जो पृथ्वी के साथ-साथ चलता है. इससे ऐसा लगता है कि यह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है, जबकि असल में यह सूर्य की परिक्रमा कर रहा होता है.
कामो'ओलेवा, जिसे 2016 एचओ3 भी कहा जाता है, 2016 में खोजा गया था. इसका व्यास लगभग 130 से 330 फुट है, जो अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी के आकार के बराबर है.