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कॉप16: प्रकृति नहीं, खुद को बचाने के लिए जरूरी जैव विविधता

२२ अक्टूबर २०२४

दुनिया का सबसे बड़ा प्रकृति संरक्षण सम्मेलन कोलंबिया में शुरू हुआ है. जैव विविधता की तबाही रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना और इन प्रयासों के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना सम्मेलन के प्रमुख विषयों में है.

कोलंबिया में आयोजित कॉप16 सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में ब्राजील के मूलनिवासी समुदाय से आए एक प्रतिनिधि
प्रकृति संरक्षण 'ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क फंड' बनाया था, लेकिन तय लक्ष्य से काफी कम राशि जमा हो सकी हैतस्वीर: Fernando Vergara/AP/dpa/picture alliance

प्रकृति को मानव-जनित नुकसान से बचाने के लक्ष्य के साथ कोलंबिया में 21 अक्टूबर से 1 नवंबर तक जैव विविधता पर 16वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. इसमें करीब 200 देश हिस्सा ले रहे हैं. करीब 23,000 प्रतिनिधियों में अलग-अलग देशों के लगभग 100 मंत्री और एक दर्जन राष्ट्राध्यक्ष बायोडायवर्सिटी कॉप में भाग लेंगे. यह जैव विविधता पर अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन बताया जा रहा है.  

कोलंबिया की पर्यावरण मंत्री और कॉप-16 की अध्यक्ष सुजाना मुहम्मद ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, "यह हमारे देश के लिए बहुत बड़ा अवसर है. इसके जरिए लैटिन अमेरिका से पूरी दुनिया को जलवायु और जीवन की सुरक्षा को लेकर संदेश दिया जाएगा. यह कोलंबिया और हमारे राष्ट्रपति की प्रतिबद्धता को उजागर करता है." उन्होंने चेतावनी के स्वर में कहा, "हमारे ग्रह के पास अब गंवाने के लिए समय नहीं है."

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प्रकृति को संरक्षित करना और पहले ही हो चुकी बर्बादी का असर सीमित करना बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, जिसके लिए बड़े फंड की जरूरत हैतस्वीर: Fernando Vergara/AP/dpa/picture alliance

क्या हैं कॉप-16 के प्रमुख लक्ष्य

इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे देशों को यह बताना होगा कि कॉप-15 में तय किए गए दो दर्जन से ज्यादा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वे क्या योजनाएं बना रहे हैं. इसके लिए देशों को राष्ट्रीय जैव विविधता योजनाएं (एनबीएसएपी) प्रस्तुत करनी होंगी. इन लक्ष्यों में अपने इलाके के 30 प्रतिशत क्षेत्रों को संरक्षण के लिए अलग रखना, प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवसायों की सब्सिडी में कटौती और कंपनियों द्वारा पर्यावरण पर होने वाले असर की रिपोर्ट जारी करने जैसी बाध्यताएं शामिल हैं. 

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संयुक्त राष्ट्र जैविक विविधता सम्मेलन (सीबीडी) के 196 सदस्य देशों ने साल 2022 में 23 लक्ष्य सामने रखे थे. इनके माध्यम से 2030 तक प्रकृति को हो रहे नुकसान को रोकने की एक योजना तय की गई थी. हालांकि, कॉप-16 से पहले 15 प्रतिशत से भी कम देशों ने इस दिशा में योजनाएं पेश की हैं. एक ओर जहां संरक्षण रणनीति पर अमल करने की रफ्तार इतनी धीमी है, वहीं जैव विविधता की तबाही का स्तर नाटकीय और अप्रत्याशित है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की नई 'लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट' के मुताबिक, 1970 से 2020 के बीच वन्यजीवों की आबादी में औसतन 73 फीसदी की कमी आई है. ये वन्यजीवों की ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी हम निगरानी कर पा रहे हैं. 

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए सुजाना मुहम्मद ने कहा, "हमें अभी तक भेजी गई योजनाओं का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है. साथ ही यह भी देखना होगा कई देशों ने इसमें इतनी देर क्यों की." उन्होंने आगे कहा, "मुमकिन है कि योजनाएं बनाने के लिए कई देश फंड की कमी से जूझ रहे हों. यह भी हो सकता है कि जिन देशों में नई सरकारों का गठन हुआ है, वे जल्द ही अपनी योजनाएं दाखिल कर दें." उन्होंने फंड की कमी को गंभीरता से रेखांकित करते हुए प्रतिनिधियों से कहा, "हम सभी सहमत हैं कि इस मिशन के लिए हमारे पास फंड की काफी कमी है."

क्या जैव विविधता को खत्म होने से बचाया जा सकता है?

साल 2030 तक 30 प्रतिशत भूभाग और समुद्री इलाके को संरक्षित करने का लक्ष्य हैतस्वीर: Fernando Vergara/AP/dpa/picture alliance

प्रकृति संरक्षण के लक्ष्य हासिल करने के लिए कितना पैसा चाहिए

विकासशील देशों के प्रकृति से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकसित देशों ने कॉप-15 में फंड देने का आश्वासन दिया था. इसके तहत 2025 तक सालाना 25 बिलियन डॉलर और साल 2030 तक सालाना 30 बिलियन डॉलर की सहायता जुटाने का वादा किया गया था. हालांकि, हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में पाया गया कि 28 देशों में नॉर्वे और स्वीडन समेत केवल पांच ही देश हैं, जिन्होंने तय लक्ष्य के मुताबिक फंड दिया है. वहीं, 23 देशों ने आधे से भी कम राशि का भुगतान किया है.

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वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की इंटरनेशनल एडवोकेसी प्रमुख बर्नाडेट फिशलर हूपर ने कहा कि गरीब और विकासशील देशों को राष्ट्रीय जैव विविधता योजनाएं विकसित करने के लिए आवश्यक धन और विशेषज्ञता हासिल करने में कठिनाई हो रही है. 'कैंपेन फॉर नेचर' द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के लिए अब तक केवल 238 मिलियन डॉलर ही इकट्ठा हुए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इतनी बड़ी योजना को चलाने के लिए यह फंड पर्याप्त नहीं है और वास्तविक लक्ष्य से काफी पीछे भी है.

फिलहाल, 195 में से केवल 31 देशों ने ही संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सचिवालय को अपनी योजना भेजी है. इनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया और कनाडा शामिल हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कम भागीदारी के कारण "30 बाय 30" का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा. "30 बाय 30" से आशय इस दशक के अंत तक जमीन और समुद्र, दोनों के 30-30 प्रतिशत हिस्से को संरक्षित करना है.

ग्रीनपीस द्वारा जारी नई रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में अब तक समुद्र का 8.4 प्रतिशत हिस्सा ही है जो संरक्षित किया गया है. ग्रीनपीस में नीतिगत मामलों की सलाहकार मेगन रैंडल्स ने कहा, "यही रफ्तार रही, तो हम अगली सदी तक भी समुद्र के 30 प्रतिशत हिस्से को संरक्षित नहीं कर पाएंगे." उन्होंने कहा कि थोड़ा काम जरूर हुआ है, लेकिन "उतनी तेजी से नहीं, जिसकी हमें जरूरत है."

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संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने सम्मेलन की शुरुआत से पहले ही एक वीडियो संदेश में प्रतिनिधियों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि दुनिया 2030 तक के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने से काफी पीछे है. गुटेरेश ने यह अपील भी की कि सम्मेलन खत्म होने तक फ्रेमवर्क फंड के लिए संतोषजनक निवेश पर ठोस सहमति बनाई जानी चाहिए. 

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एवाई/एसएम (एपी/रॉयटर्स/एएफपी)

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