कॉप16: प्रकृति नहीं, खुद को बचाने के लिए जरूरी जैव विविधता
२२ अक्टूबर २०२४
दुनिया का सबसे बड़ा प्रकृति संरक्षण सम्मेलन कोलंबिया में शुरू हुआ है. जैव विविधता की तबाही रोकने के लिए तत्काल कदम उठाना और इन प्रयासों के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना सम्मेलन के प्रमुख विषयों में है.
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प्रकृति को मानव-जनित नुकसान से बचाने के लक्ष्य के साथ कोलंबिया में 21 अक्टूबर से 1 नवंबर तक जैव विविधता पर 16वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है. इसमें करीब 200 देश हिस्सा ले रहे हैं. करीब 23,000 प्रतिनिधियों में अलग-अलग देशों के लगभग 100 मंत्री और एक दर्जन राष्ट्राध्यक्ष बायोडायवर्सिटी कॉप में भाग लेंगे. यह जैव विविधता पर अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन बताया जा रहा है.
कोलंबिया की पर्यावरण मंत्री और कॉप-16 की अध्यक्ष सुजाना मुहम्मद ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा, "यह हमारे देश के लिए बहुत बड़ा अवसर है. इसके जरिए लैटिन अमेरिका से पूरी दुनिया को जलवायु और जीवन की सुरक्षा को लेकर संदेश दिया जाएगा. यह कोलंबिया और हमारे राष्ट्रपति की प्रतिबद्धता को उजागर करता है." उन्होंने चेतावनी के स्वर में कहा, "हमारे ग्रह के पास अब गंवाने के लिए समय नहीं है."
इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे देशों को यह बताना होगा कि कॉप-15 में तय किए गए दो दर्जन से ज्यादा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वे क्या योजनाएं बना रहे हैं. इसके लिए देशों को राष्ट्रीय जैव विविधता योजनाएं (एनबीएसएपी) प्रस्तुत करनी होंगी. इन लक्ष्यों में अपने इलाके के 30 प्रतिशत क्षेत्रों को संरक्षण के लिए अलग रखना, प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवसायों की सब्सिडी में कटौती और कंपनियों द्वारा पर्यावरण पर होने वाले असर की रिपोर्ट जारी करने जैसी बाध्यताएं शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र जैविक विविधता सम्मेलन (सीबीडी) के 196 सदस्य देशों ने साल 2022 में 23 लक्ष्य सामने रखे थे. इनके माध्यम से 2030 तक प्रकृति को हो रहे नुकसान को रोकने की एक योजना तय की गई थी. हालांकि, कॉप-16 से पहले 15 प्रतिशत से भी कम देशों ने इस दिशा में योजनाएं पेश की हैं. एक ओर जहां संरक्षण रणनीति पर अमल करने की रफ्तार इतनी धीमी है, वहीं जैव विविधता की तबाही का स्तर नाटकीय और अप्रत्याशित है. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की नई 'लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट' के मुताबिक, 1970 से 2020 के बीच वन्यजीवों की आबादी में औसतन 73 फीसदी की कमी आई है. ये वन्यजीवों की ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी हम निगरानी कर पा रहे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए सुजाना मुहम्मद ने कहा, "हमें अभी तक भेजी गई योजनाओं का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है. साथ ही यह भी देखना होगा कई देशों ने इसमें इतनी देर क्यों की." उन्होंने आगे कहा, "मुमकिन है कि योजनाएं बनाने के लिए कई देश फंड की कमी से जूझ रहे हों. यह भी हो सकता है कि जिन देशों में नई सरकारों का गठन हुआ है, वे जल्द ही अपनी योजनाएं दाखिल कर दें." उन्होंने फंड की कमी को गंभीरता से रेखांकित करते हुए प्रतिनिधियों से कहा, "हम सभी सहमत हैं कि इस मिशन के लिए हमारे पास फंड की काफी कमी है."
प्रकृति संरक्षण के लक्ष्य हासिल करने के लिए कितना पैसा चाहिए
विकासशील देशों के प्रकृति से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विकसित देशों ने कॉप-15 में फंड देने का आश्वासन दिया था. इसके तहत 2025 तक सालाना 25 बिलियन डॉलर और साल 2030 तक सालाना 30 बिलियन डॉलर की सहायता जुटाने का वादा किया गया था. हालांकि, हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में पाया गया कि 28 देशों में नॉर्वे और स्वीडन समेत केवल पांच ही देश हैं, जिन्होंने तय लक्ष्य के मुताबिक फंड दिया है. वहीं, 23 देशों ने आधे से भी कम राशि का भुगतान किया है.
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) की इंटरनेशनल एडवोकेसी प्रमुख बर्नाडेट फिशलर हूपर ने कहा कि गरीब और विकासशील देशों को राष्ट्रीय जैव विविधता योजनाएं विकसित करने के लिए आवश्यक धन और विशेषज्ञता हासिल करने में कठिनाई हो रही है. 'कैंपेन फॉर नेचर' द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के लिए अब तक केवल 238 मिलियन डॉलर ही इकट्ठा हुए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, इतनी बड़ी योजना को चलाने के लिए यह फंड पर्याप्त नहीं है और वास्तविक लक्ष्य से काफी पीछे भी है.
शिकारियों का शिकार करने वाले अल्फा-प्रीडेटर को किससे खतरा
हमारी दुनिया का एक अटल सत्य है, आहार शृंखला. 'कौन किसे खाता है' के इस गुंथे हुए मकरजाल में कोई शिकार है, कोई शिकारी. इस शृंखला के सबसे ऊपरी सिरे पर हैं अल्फा प्रीडेटर, जो शिकारी तो हैं लेकिन आमतौर पर किसी के शिकार नहीं.
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जीने के लिए बुनियादी है खाना
हर सजीव को खाना चाहिए, खाना यानी ऊर्जा, ऊर्जा यानी पोषण. ऊर्जा और पौष्टिक तत्व, एक चक्र में ईकोसिस्टम का चक्कर लगाते हैं. इस पिरामिड की बुनियाद देखें, तो वहां आएंगे पेड़-पौधे. सूरज से रोशनी, मिट्टी से पोषण लेकर अपना खाना खुद बनाने वाले आत्मनिर्भर वनस्पति उत्पादक हैं. इनमें घास, शैवाल, कैक्टस सभी शामिल हैं.
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उत्पादक और उपभोक्ता
इसके बाद शुरू होता है भोजन चक्र. इसे समझने के लिए टिड्डे का उदाहरण लेते हैं. टिड्डा पेड़-पौधों से जीवन पाता है. वो पत्तियां, फूल, टहनियां और बीज जैसी चीजें खाता है. पौधे हुए उत्पादक और टिड्डा है उपभोक्ता. वनस्पतियों को खाने वाले ऐसे शुरुआती या प्राथमिक जीव "हर्बीवोर" कहलाते हैं.
टिड्डे को खाती है चिड़िया, जो हुई दूसरे स्तर की उपभोक्ता या कार्निवोर (मांसाहारी) जीव. ओम्नीवोरस जीव, जो मांस और वनस्पति दोनों खाते हैं, वे भी द्वितीयक जीव हैं. इस शृंखला में एक ही स्रोत को खाने वाले कई उपभोक्ता होते हैं और एक ही जीव कई स्रोतों से भी भोजन पाता है. जैसे मकड़ी के जाल में तार आपस में गुत्थम-गुत्था रहते हैं, वैसा ही हाल फूड वेब का भी है.
ऐसे जीव जो दूसरे जीवों का शिकार कर उन्हें खाते हैं, वे शिकारी जानवर (प्रीडेटर) है. जो जानवर इनका शिकार बनते हैं, वे प्रे कहलाते हैं. जैसे, चूहा खाता है कीड़ों और पक्षियों को. सांप, चूहे को खाता है. चील, सांप को खा जाते हैं. इसी तरह छिपकली है, जो कीड़ों को खाते हैं. बाज, सांप, कुत्ते, भेड़िये और यहां तक कि कई बड़ी छिपकलियां भी उन्हें खाती हैं.
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एपेक्स प्रीडेटर क्या हैं?
फूड चेन की कल्पना अगर ईंट-ईंट जोड़कर बने पिरामिड से करें, तो 'एपेक्स प्रीडेटर' इसके टॉप पर हैं. ये ऐसे शिकारी हैं, जिनका आमतौर पर कोई शिकार नहीं करता. दुर्लभ अपवादों को छोड़ दें, तो इनका कोई कुदरती शिकारी नहीं होता. ये भूख, बीमारी, बुढ़ापा जैसी वजहों से मरते हैं. कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है कि बूढ़ा और लाचार हो जाने पर कोई और शिकारी जीव इन्हें शिकार बना ले.
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ईको सिस्टम और जैव विविधता के लिए जरूरी
इन टॉप शिकारियों के लिए दुनिया लगातार ज्यादा-से-ज्यादा खतरनाक होती जा रही है. कुदरती बसेरा खत्म होना, इंसानों के साथ संघर्ष, पोचिंग और तस्करी के लिए शिकार, खाद्य शृंखला में असंतुलन जैसी वजहें भी इनके लिए जानलेवा बन रही है. नतीजतन, इनकी आबादी लगातार घट रही है.
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क्या दुनिया को इन शिकारियों की जरूरत है?
बेशक! आप इन्हें ईकोसिस्टम का तराजू कह सकते हैं. मान लीजिए, सारे चीते खत्म हो जाते हैं. इसके कारण चीते का आहार बनने वाले जीवों की आबादी पर नियंत्रण नहीं रहेगा. वे बेहिसाब बढ़ते जाएंगे. उनके कारण वनस्पतियों पर दबाव बढ़ेगा और जंगल, चरागाह जैसी जगहों के सिमटने का जोखिम बढ़ जाएगा.
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क्या हुआ, जब येलोस्टोन नेशनल पार्क में भेड़िये नहीं रहे
एपेक्स प्रीडेटरों की अहमियत को समझने में अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क के भेड़ियों का उदाहरण चर्चित है. 1920 का दशक आते-आते बेतहाशा शिकार के कारण यहां रहने वाले सलेटी भेड़िये (ग्रे वूल्फ) खत्म हो गए. भेड़िये नहीं रहे, तो उनके मुख्य शिकार एल्क (हिरण परिवार का एक सदस्य) की आबादी काफी बढ़ गई. इतने सारे एल्कों के चरने से समूचे पार्क में ईकोसिस्टम असंतुलित हो गया.
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भेड़ियों के ना रहने से समूचे हैबिटेट पर असर पड़ा
घास और झाड़ियों की कमी से चूहा और खरगोश जैसे जीवों की संख्या घट गई. फूलों की कमी से मधुमक्खियों का खाना घट गया. यहां तक कि पक्षी भी कम हो गए. नैशनल जिओग्रैफिक के मुताबिक, भेड़िये का डर नहीं रहने से एल्क नदी के पास ज्यादा स्वच्छंद समय बिताने लगे. इसके कारण नदी तट खराब हुआ और पानी गंदला गया. साफ पानी की कमी के कारण बीवरों और जलीय जीवों को नुकसान हुआ.
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येलोस्टोन में भेड़ियों की वापसी से संतुलन लौटा
एक भेड़िये के गायब हो जाने से पूरा प्राकृतिक परिवेश और वहां के जाने कितने जीवों का रहन-सहन असंतुलित हो गया. फिर 1995 में करीब 41 भेड़िये येलोस्टोन में छोड़े गए. उनकी वापसी ने समूचे लैंडस्केप पर जादुई असर किया और अभयारण्य व इसके ईकोसिस्टम की सेहत लौटने लगी. आगे की स्लाइडों में देखिए कुछ प्रमुख अल्फा प्रीडेटर.
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शेर
शेर "बिग कैट" परिवार का सदस्य है. बलिष्ठ शरीर और मजबूत जबड़े वाले शेरों की प्रजाति अब केवल अफ्रीका में बची है. भारत का गिर अभयारण्य एशियाई शेरों के एक छोटे से समूह का घर है. बीबीसी वाइल्डलाइफ मैगजीन 'डिस्कवर वाइल्डलाइफ' के मुताबिक, भारत अकेला देश है जहां अभी भी शेर और बाघ, दोनों मौजूद हैं.
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भेड़िया
भेड़िये बेहतरीन शिकारी होते हैं. उनके मुख्य शिकार हैं हिरण जैसे जीव, लेकिन वे चिड़िया, गिलहरी, बीवर, खरगोश और चूहों को भी खाते हैं. हालांकि, भेड़िया उन जानवरों में है जिसे लेकर इंसानी आबादी में कई भ्रांतियां हैं. नतीजतन, ईकोसिस्टम में बेहद अहम भूमिका निभाने वाले भेड़िये सबसे ज्यादा नफरत पाने वाले जीवों में हैं.
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ध्रुवीय भालू
पोलर बीयर को आर्कटिक फूड चेन का राजा कहा जाता है. ये इस ईकोसिस्टम में सबसे ऊपर हैं. इनके जो हाथ लग जाए, खा लेते हैं. छोटी मछलियों से लेकर सील, वॉलरस, रेंडीयर, समुद्री पक्षी. समुद्र पर जमी बर्फ में छोटे से छेद से होकर जब बेलुगा व्हेल सांस लेने ऊपर आती है, तो ये उसका भी शिकार कर लेते हैं. हालांकि, इंसानी गतिविधियों से इसपर भी आफत आ गई है.
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इंसान क्या है?
वैज्ञानिकों के मुताबिक, एक वक्त था जब इंसान भी एपेक्स प्रीडेटर था. होमो सेपियंस और उनके पूर्वज मांस खाते थे. अमेरिकन फिजिकल एंथ्रोपॉलॉजी एसोसिएशन में छपे एक पेपर के मुताबिक, करीब 20 लाख साल तक हमारे पूर्वज एपेक्स प्रीडेटर रहे. फिर पाषाण युग जब ढलान पर था, तब जीवों से मिलने वाले खाद्य स्रोतों में कमी आने लगी.
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इंसान अब एपेक्ट प्रीडेटर तो नहीं, लेकिन...
इसके कारण अब तक मांसभक्षी रहा इंसान धीरे-धीरे वनस्पतियों से मिलने वाले उत्पाद भी खाने लगा. फिर वह जानवर भी पालने लगा और पौधे भी लगाने लगा. धीरे-धीरे यही इंसान खेती भी करने लगा. वह दौर बहुत पीछे छूट गया है. हम आज एपेक्स प्रीडेटर तो नहीं हैं, लेकिन फिर भी हमारे तौर-तरीके अनगिनत जीवों का खात्मा कर रहे हैं. ईकोसिस्टम असंतुलित कर रहे हैं, कुदरती परिवेश को तबाह कर रहे हैं.
फिलहाल, 195 में से केवल 31 देशों ने ही संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सचिवालय को अपनी योजना भेजी है. इनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया और कनाडा शामिल हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी कम भागीदारी के कारण "30 बाय 30" का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा. "30 बाय 30" से आशय इस दशक के अंत तक जमीन और समुद्र, दोनों के 30-30 प्रतिशत हिस्से को संरक्षित करना है.
ग्रीनपीस द्वारा जारी नई रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में अब तक समुद्र का 8.4 प्रतिशत हिस्सा ही है जो संरक्षित किया गया है. ग्रीनपीस में नीतिगत मामलों की सलाहकार मेगन रैंडल्स ने कहा, "यही रफ्तार रही, तो हम अगली सदी तक भी समुद्र के 30 प्रतिशत हिस्से को संरक्षित नहीं कर पाएंगे." उन्होंने कहा कि थोड़ा काम जरूर हुआ है, लेकिन "उतनी तेजी से नहीं, जिसकी हमें जरूरत है."
संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने सम्मेलन की शुरुआत से पहले ही एक वीडियो संदेश में प्रतिनिधियों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि दुनिया 2030 तक के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने से काफी पीछे है. गुटेरेश ने यह अपील भी की कि सम्मेलन खत्म होने तक फ्रेमवर्क फंड के लिए संतोषजनक निवेश पर ठोस सहमति बनाई जानी चाहिए.
गायब होते पेड़ और जानवर इंसानों के लिए बहुत बड़ा खतरा