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वर्ल्ड बैंक के महत्वाकांक्षी लक्ष्य

२ जून २०१३

दुनिया भर में 1.2 अरब लोग ऐसे हैं जिन्हें बिजली का मतलब भी नहीं पता. ऐसे में गरीबी हटाना और तरक्की करना सपना सा लगता है. विश्व बैंक 2030 तक इसे बदलना चाहता है.

तस्वीर: DW/W. Suhail

भारत में 30 करोड़ लोग आज भी बिजली से वंचित हैं. ऐसा तब है जब पिछले एक दशक में देश में ऊर्जा को ले कर कई सुधार हुए हैं. यही हाल दुनिया के और भी कई देशों का है. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान और नाइजीरिया में आधी आबादी के पास बिजली की सुविधा नहीं है.

संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक मिल कर अब इसे बदलना चाहते हैं. हाल ही में विएना में प्रस्तुत की गयी वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक दुनिया में हर व्यक्ति तक बिजली पहुंचनी चाहिए. वर्ल्ड बैंक ने एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है जिसका पूरा होना नामुमकिन सा लगता है. यदि काम उसी गति से होता रहा जैसा कि अब तक चलता आ रहा है, तब तो यह लक्ष्य हरगिज पूरा नहीं किया जा सकता. इसी के लिए वर्ल्ड बैंक ने ऊर्जा का उत्पादन दोगुना करने की भी बात रखी है.

बढ़ती जा रही है आबादी

अगर पिछले दो दशकों पर नजर डाली जाए, तो पता चलेगा कि इस क्षेत्र में काम तो खूब हुआ है. 20 सालों में 1.7 अरब लोगों को पहली बार बिजली मिल सकी है. लेकिन इसी समय में दुनिया की आबादी भी 1.6 अरब बढ़ गयी. तो आखिर किया क्या जाए? यही सवाल विशेषज्ञों को सता रहा है.

बिजली की चोरी भी एक मुश्किलतस्वीर: DW/W. Suhail

ऑस्ट्रिया में जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे केंद्र के श्टेफान श्लाइषर ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि इस समस्या का यही हल है कि ऊर्जा के उत्पादन का विकेंद्रीकरण कर दिया जाए, "गांवों में जगह जगह बिजली की तारें लगाने का कोई तुक नहीं बनता." उनका कहना है कि अधिकतर विकासशील देशों में लोग लैंडलाइन छोड़ मोबाइल फोन की तरफ बढ़ गए हैं, ऊर्जा के क्षेत्र में भी ऐसा ही होना चाहिए.

बर्लिन की आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ क्लाउडिया केम्फेर्ट का भी यही मानना है. उनका कहना है कि जरूरी नहीं कि बिजली बड़े बिजली घरों में ही बने, बल्कि छोटी छोटी पहल से भी ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है. सरकारें तो बड़ी मात्रा में कोयले या फिर प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल कर बिजली बनाती है, लेकिन कई देशों में देखा गया है कि किस तरह निजी स्तर पर भी बिजली बनाई जा रही है और ऐसा करने के लिए पानी, जैव ईंधन या फिर अन्य प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पर्यावरण को साफ सुथरा रखने में भी मददगार साबित हो रहे हैं. ऊर्जा के उत्पादन के लिए इन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है.

कोई रोडमैप नहीं

विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल कुल खपत का केवल 18 फीसदी ही है. 2030 तक इसे बढ़ा कर 36 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन श्टेफान श्लाइषर को ये लक्ष्य अवास्तविक लग रहे हैं. उनका कहना है, "उद्देश्यों के साथ उन्हें पूरा करने का एक तरीका भी होता है, जिसे आप रोडमैप कहते हैं, और उस बारे में इस रिपोर्ट में कुछ खास नहीं कहा गया है".

अक्षत ऊर्जा का हिस्सा अभी भी कमतस्वीर: Isabel Sáez

क्लाउडिया केम्फेर्ट भी इस बात से इनकार नहीं करती, लेकिन उनका कहना है कि रिपोर्ट अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की ओर जो रास्ता दिखा रही है उस से वह संतुष्ट हैं. आने वाले सालों में और कई रिपोर्टें आएंगी. केम्फेर्ट को उम्मीद है कि इन रिपोर्टों में अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे और इनसे देशों पर दबाव बन सकेगा. हालांकि विश्व बैंक भी यह बात जानता है कि इस सब में अरबों डॉलर का खर्च आएगा. ऐसे में इन लक्ष्यों को पूरा करना टेढ़ी खीर साबित होगा.

रिपोर्ट: क्लाउस यानसेन / ईशा भाटिया

संपादन: आभा मोंढे

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