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2050 तक एक अरब लोग तरसेंगे पानी को

२९ मार्च २०११

एक शोध के अनुसार 2050 तक विश्व भर में एक अरब लोगों को गंभीर रूप से पानी की कमी का सामना करना होगा. भारत के महानगरों में सबसे बुरी हालत होगी.

तस्वीर: dpa

अमेरिकी शोध संस्था नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज के मुताबिक अगर शहर इसी तेजी से बढ़ते रहे तो लगभग 99 करोड़ लोगों को रोजमर्रा के काम के लिए केवल 100 लीटर पानी मिलेगा, यानी लगभग तीन बाल्टी. इनके अलावा लगभग 10 करोड़ लोगों के पास पीने, खाना पकाने, सफाई और नहाने जैसे कामों के लिए उनकी जरूरतों से कम पानी मिलेगा.

फूटी किस्मत या चुनौती?

हालांकि प्रमुख शोधकर्ता रॉब मैकडॉनल्ड ने कहा कि इन आकड़ों को फूटी किस्मत मानकर नहीं चलना चाहिए, बल्कि यह एक चुनौती है. मैकडॉनल्ड का कहना है कि इन लगभग एक अरब लोगों को पानी दिलाने का तरीका है. पानी की कमी का मतलब बस यही है कि और निवेश करना होगा, चाहे पानी को ठीक तरह से इस्तेमाल करने में या फिर मूल संसाधनों को बेहतर करने में. इस वक्त विश्व में 15 करोड़ लोगों को दिन में 100 लीटर से कम पानी नसीब होता है. एक अमेरिकी नागरिक औसतन 376 लीटर पानी रोज खर्च करता है. लेकिन मैकडॉनल्ड का कहना है कि पानी का इस्तेमाल हर इलाके में अलग तरीके से होता है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

भारत की हालत खराब

जैसे जैसे लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे वैसे पानी की समस्या बढ़ रही है. मैकडॉनल्ड के मुताबिक भारत और चीन में परेशानी सबसे ज्यादा है. भारत के छह सबसे बड़े शहरों, चेन्नई, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और बैंगलोर में पानी की कमी सबसे ज्यादा खलेगी. हालांकि मैकडॉनल्ड का कहना है कि भारत में मानसून की वजह से पानी की कमी नहीं है. समस्या है इस पानी को सूखे महीनों के लिए बचाने में. भारत और चीन के अलावा पश्चिम अफ्रीकी देश जैसे नाइजीरिया और बेनिन भी पानी के लिए तरसेंगे. सोचने वाली बात है कि पूरे विश्व में पश्चिम अफ्रीकी देशों में सबसे ज्यादा वर्षा होती है.

मैकडॉनल्ड कहते हैं कि शहरों की वजह से नदियां सूख रही हैं जिससे नदियों में प्राणियों के भी लुप्त होने का डर है. शोध में इस समस्या के हल के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं. मिसाल के तौर पर खेती बाड़ी में सुधार किया जा सकता है और पानी को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है. मैकडॉनल्ड कहते हैं कि घरों में भी अगर पानी का इस्तेमाल कुछ ध्यान से किया जाए तो पानी की समस्या ही नहीं होगी.

गरीब देशों में लोगों की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भी बात की गई है ताकि लोगों से 'पानी का मूल अधिकार' नहीं छीना जाए.

रिपोर्टः एएफपी/एमजी

संपादनःएन रंजन

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