यूरोपीय संघ में रहने या नहीं रहने के सवाल पर ब्रिटिश जनता के फैसले के बाद दुनिया भर में प्रतिक्रिया हो रही है. ब्रेक्जिट फैसले के बाद यूरोप में नए जनमत संग्रहों और सुधारों की मांग हो रही है.
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सबको पता था कि टक्कर कांटे की थी लेकिन सबको उम्मीद थी कि ब्रिटेन की जनता जजबात से काम न लेकर विवेक से काम लेगी. लेकिन जनता ने अपना दोटूक फैसला सुनाया है, देश विबाजित है और मीडिया इस मूड के समेटने की कोशिश कर रहा है.
उधर दुनिया भर में ब्रिटेन के फैसले पर प्रतिक्रिया हो रही है. जर्मनी के उप चांसलर और अर्थनीति मंत्री जिगमार गाब्रिएल ने फैसला आने के तुरंत बाद ट्वीट कर ब्रिटिश मतदाताओं के फैसले के दिन को यूरोप के लिए बुरा दिन करार दिया.
भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि भारत ब्रेक्जिट के लघुकालीन और दीर्धकालीन असर से निबटने के लिए तैयार है.
फ्रांस में उग्र दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल फ्रंट की प्रमुख मारी ले पेन ने ब्रेक्जिट फैसले के बाद यूरोप के दूसरे देशों में भी जनमत संग्रह की मांग की है. फैसले को आजादी की जीत बताते हुए ले पेन ने ट्वीट किया, "जैसा कि मैं सालों से मांग कर रही हूं, हमें फ्रांस और ईयू के दूसरे देशों में ऐसे ही जनमत संग्रह की जरूरत है."
यूरोपीय ग्रीन पार्टी के प्रमुख राइनहार्ड बूटीकोफर ब्रेक्जिट फैसले के बाद यूरोपीय संघ की हालत और खराब होने की आशंका व्यक्त की है. उन्होंने कहा है कि 23 जून की तारीख यूरोप के इतिहास में गहरे काले दिन के रूप में याद किया जाएगा. उन्होंने घरेलू और बाहरी सुरक्षा को यूरोपीय स्तर पर ले जाने और पर्यावरण और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ अर्थव्यवस्था के विकास की मांग की.
जर्मनी की वामपंथी पार्टी डी लिंके ने ब्रिटिश मतदाताओं के फैसले के बाद यूरोपीय संघ में सुधारों की मांग की है. पार्टी के नेता बैर्न्ड रीसिंगर ने ट्वीट किया, "पहले से कहीं ज्यादा अब सामाजिक और लोकतांत्रिक यूरोप की जरूरत है."
पार्टी सह प्रमुख कात्या कीपलिंग ने कहा है कि नव उदारवाद और कटौती की नीति ने राष्ट्रवाद और यूरोप विरोध की जमीन तैयार की है. उन्होंने ब्रेक्जिट को यूरोप में नई शुरुआत की पुकार बताया.
ईयू से अलग होकर क्या मिलेगा ब्रिटेन को
28 मार्च को ब्रिटेन ने 'अनुच्छेद 50' पर हस्ताक्षर के साथ औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है. एक नजर उन बिंदुओं पर जो बेक्जिट की वजह माने जाते हैं.
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सरकारी धन पर बोझ
ब्रिटेन की समस्या यह है कि पूर्वी यूरोप के नए सदस्य देशों के नागरिकों के लिए खुली आवाजाही का सपना तो पूरा हुआ है लेकिन पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों के नागरिकों के आने से वहां राजकोष पर बोझ बढ़ा है.
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बेरोजगारी में बढ़ोत्तरी
एक डर तो सस्ते विदेशी कामगारों के आने से देश में बेरोजगारी बढ़ने का और कामगारों के वेतन पर दबाव बढ़ने का है. इसकी वजह से ब्रिटेन में यूरोप विरोधी ताकतें मजबूत हुई हैं और परंपरागत पार्टियां कमजोर हुई हैं.
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वीटो का अधिकार
वित्तीय संकट के बाद एक ओर यूरोप को और एकताबद्ध करने की मांग हो रही है तो लंदन राष्ट्रीय संसदों की भूमिका बढ़ाना चाहता है. इससे राष्ट्रीय जन प्रतिनिधियों को ब्रसेल्स के मनमाने बर्ताव के खिलाफ लाल कार्ड दिखाने का अधिकार मिलेगा.
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सामाजिक भत्तों में कटौती
ब्रिटेन नहीं चाहता कि गरीब सदस्य देशों के सस्ते कामगार ब्रिटेन में सामाजिक भत्तों का लाभ उठाएं. ब्रिटेन चाहता है कि ईयू देशों से अचानक बहुत से लोगों के आने पर उसे रोक लगाने का हक होना चाहिए. आप्रवासियों को चार साल बाद भत्ता पाने का हक मिलेगा.
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संतान भत्ता
यूरोपीय संघ में वह सरकार संतान भत्ता देती है जहां मां बाप काम करते हैं, चाहे बच्चा कहीं और रह रहा हो. ब्रिटेन पोलैंड और रोमानिया के कामगारों को बच्चों के लिए भत्ता देता है. अब यह बहस हो रही है कि क्या भत्ते को संबंधित देश के जीवन स्तर के अनुरूप होना चाहिए.
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घनिष्ठ होता संघ
यूरोपीय संघ का लक्ष्य समय के साथ घनिष्ठ होना है. लंदन को यह पसंद नहीं है. ब्रिटेन को स्वीकार फॉर्मूला समापन घोषणा में है जिसमें कहा गया है कि ईयू का लक्ष्य खुले और लोकतांत्रिक समाज में रहने वाले साझा विरासत वाले लोगों के बीच भरोसा और समझ बढ़ाना है.
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दक्षिणपंथी ताकतों का असर
प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ईयू में बने रहने के लिए तमाम शर्तें रखी हैं. जाहिर है यूरोपीय संघ से रियायतें पाकर वे इसका पूरा राजनीतिक लाभ उठाएंगे और अति दक्षिणपंथी पार्टियों को कमजोर करना चाहेंगे.