ऑस्ट्रेलिया सरकार इस बात के लिए राजी हो गयी है कि देश के संप्रभु बॉन्ड खरीदने वालों को बताएगी कि उनके निवेश के लिए जलवायु परिवर्तन एक व्यवस्थागत खतरा है. यह सब 23 साल की एक छात्रा डी द्वारा दायर किये मुकदमा की बदौलत हुआ.
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ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रहने वालीं काटा ओ डॉनल ने ऑस्ट्रेलिया की सरकार के खिलाफ अपने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया था. उनका आरोप था कि सरकारी बॉन्ड्स खरीदने वालों को यह नहीं बताया जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन भी उनके निवेश के लिए खतरा है.
2020 में दायर इस जनहित याचिका में मांग की गयी थी कि सरकार को यह सूचना भी बॉन्ड्स बेचते वक्त देनी चाहिए. ऑस्ट्रेलिया सरकार ने काटा और अन्य वादियों के साथ समझौता कर लिया है.
समझौते के तहत केंद्र सरकार यह बयान जारी करने पर सहमत हो गयी है कि जलवायु परिवर्तन एक व्यवस्थागत खतरा है जो बॉन्ड्स की कीमत को प्रभावित कर सकता है. बदले में काटा ने यह शर्त छोड़ दी है कि सरकार घोषणा करे कि उसने निवेशकों को भ्रमित करने वाली जानकारी दी.
पहला अहम कदम
समझौते के बाद मीडिया से बातचीत में काटा ओ डॉनल ने कहा, "जलवायु परिवर्तन के खतरों को मानने की दिशा में यह समझौता एक अहम पहला कदम है. सरकार को अब चाहिए कि जलवायु परिवर्तन के उन खतरों को कम करने के लिए जरूरी कदमों को प्राथमिकता दे."
इतनी गर्मी कि फोटोसिंथेसिस बिना मर सकते हैं पेड़
फोटोसिंथेसिस, पृथ्वी पर मौजूदा ज्यादातर जीवन के लिए बेहद अहम है. क्या हो अगर पत्तियां ये कर ही ना पाएं? धरती के एक बड़े हिस्से में इतनी गर्मी पड़ रही है कि कुछ पौधों की पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस कर ही नहीं सकेंगी.
तस्वीर: Carlos Fabal/AFP/Getty Images
क्या है फोटोसिंथेसिस
सूरज की रोशनी में पौधे, हवा और मिट्टी से सीओटू और पानी लेते हैं. पौधों की कोशिकाओं में जाकर पानी ऑक्सीडाइज होता है और सीओटू कम हो जाता है. इस क्रिया में पानी, ऑक्सीजन में बदल जाता है और सीओटू बदलता है ग्लूकोज में. फिर पौधा ऑक्सीजन वातावरण में छोड़ देता है और ऊर्जा को ग्लूकोज मॉलिक्यूल्स में जमा कर लेता है.
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पौधों को कहां से मिलता है हरा रंग
पौधों की कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट होता है, जो सूरज की रोशनी से मिलने वाली ऊर्जा जमा करता है. इसके थाइलाक्लॉइड मेंमब्रेन्स में रोशनी को सोखने वाला क्लोरोफिल नाम का एक पिगमेंट होता है. इसी की वजह से पौधों को मिलता है हरा रंग.
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पेड़ों की भी गर्मी सहने की सीमा है
फोटोसिंथेसिस करने की पत्तियों की क्षमता, तापमान के एक सीमा से पार होने पर नाकाम होने लगती है. यानी जब पेड़ बहुत गरम हो जाते हैं, तो पत्तियों में ऊर्जा उत्पादन की मशीनरी तपकर खत्म होने लगती है. ऊष्णकटिबंधीय इलाकों के पेड़ों में तापमान की यह सहनशक्ति तकरीबन 46.7 डिग्री सेल्सियस है.
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क्या कहता है नया शोध
नेचर पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण अमेरिका से लेकर दक्षिणपूर्व एशिया के ऊष्णकटिबंधीय जंगलों में इतनी गर्मी हो रही है कि वहां कई पत्तियां शायद फोटोसिंथेसिस करने की हालत में ना रहें.
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40 डिग्री सेल्सियस के भी पार
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर स्थित अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लगे थर्मल सैटेलाइट सेंसरों से लिए गए तापमान के आंकड़े इस्तेमाल किए. उन्होंने इसे लीफ-वॉर्मिंग प्रयोगों से जमा किए आंकड़ों से मिलाया. वैज्ञानिकों ने एक्सट्रीम तापमान पर गौर किया. पाया गया कि फॉरेस्ट कैनपी का औसत तापमान, 34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा. लेकिन कुछ मामलों में यह 40 डिग्री सेल्सियस के पार भी चला गया.
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मर सकते हैं पेड़
रिपोर्ट के मुताबिक, अभी 0.01 फीसदी पत्ते तापमान की सीमा रेखा पार कर रहे हैं. इस सीमा के बाहर फोटोसिंथेसिस करने की उनकी क्षमता दम तोड़ देती है. यानी, पत्ते और पेड़ की मौत हो सकती है.
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ग्लोबल वॉर्मिंग
0.01 फीसदी पत्तों का आंकड़ा अभी कम मालूम होगा. लेकिन तापमान तो लगातार बढ़ रहा है. सबसे गर्म जुलाई! अब तक का सबसे गर्म जून! ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के ऊष्णकटिबंधीय खतरों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है.
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ऊष्णकटिबंधीय जंगलों की अहमियत
पृथ्वी के करीब 12 फीसदी इलाके में ऊष्णकटिबंधीय जंगल हैं. इतने से इलाके में पौधों और जानवरों की तीन करोड़ से ज्यादा प्रजातियां हैं. यानी, पृथ्वी पर मौजूद वन्यजीवन का आधा हिस्सा और पेड़-पौधों की कम-से-कम दो तिहाई विविधता. माना जाता है कि वर्षावनों में तो अब भी सैकड़ों प्रजातियां हैं, जिनका हमें पता नहीं.
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जल चक्र: पानी-भाप-बादल-बारिश
ये जंगल पृथ्वी के पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अहम हैं. ये हमें ऑक्सीजन देते हैं. सीओटू सोखते हैं. ये पानी का चक्र भी बनाए रखते हैं. ये वाष्पन क्रिया से वातावरण को पानी और नमी मुहैया करते हैं, जिससे बादल बनते हैं, बारिश होती है और इस तरह पानी का एक चक्र घूमता रहता है. ऐसा नहीं कि एक जगह के जंगल से उसी जगह बारिश होती हो. इस बारिश से नदियों, झीलों और सिंचाई व्यवस्थाओं को खुराक मिलती है.
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काटा के वकीलों ने कहा कि यह पहली बार होगा जबकि ट्रिपल ए रेटिंग हासिल कोई देश जलवायु परिवर्तन को सरकारी बॉन्ड्स में निवेश के संभावित खतरों के रूप में मान्यता देगा.
इक्विटी जेनरेशन लॉयर्स नामक संस्था के साथ काम करने वालीं वकील क्लेयर शुस्टर ने कहा कि जुलाई 2020 में इस मुकदमे के शुरू होने के बाद से जलवायु परिवर्तन के प्रति ऑस्ट्रेलिया के रूख में काफी बदलाव आया है लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है.
स्थानीय समाचार चैनल एबीसी से बातचीत में शुस्टर ने कहा, "यह (मुकदमा) ऐसे समय में दायर किया गया था जब जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों की बात तो छोड़िए, संघीय बजट में उसका कोई जिक्र ही नहीं था. तब से ऑस्ट्रेलिया ने कानून, नीति और बजट में जलवायु परिवर्तन को बेहतर तरीके से जगह दी है.”
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पहली बार निवेशकों से संवाद
किसी भी देश में सरकारी बॉन्ड्स को सबसे सुरक्षित निवेश विकल्पों में गिना जाता है. ऑस्ट्रेलिया में अपने पेंशन फंड के जरिये अधिकतर लोग सरकारी बॉन्ड्स में हिस्सेदारी रखते हैं.
जो लोग निजी कंपनियों की जगह सरकारी बॉन्ड्स में निवेश करते हैं, वे अपना धन सरकार को कर्ज पर देते हैं और बदले में उन्हें नियमित ब्याज मिलता है. इन बॉन्ड्स को निवेशक बाजार भाव पर बेच भी सकते हैं और मैच्योर होने तक इंतजार भी कर सकते हैं.
जलवायु को बचाने का एक अनूठा तरीका
जर्मनी के कील शहर में जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के एक अनूठे तरीके पर शोध हो रहा है. बाल्टिक सागर में समुद्री घास का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, इस उम्मीद में की इससे जलवायु संरक्षण में मदद मिलेगी.
तस्वीर: LISI NIESNER/REUTERS
समुद्री घास के अंकुर
जर्मनी के उत्तरी शहर कील के पास ही समुद्री डाइवर खुर्पियों का इस्तेमाल कर समुद्री घास के एमेराल्ड ग्रीन रंग के अंकुर जड़ों के साथ निकाल रहे हैं और सावधानी से उसे झाड़ रहे हैं. जमीन पर इन अंकुरों को बड़े बड़े कूलरों में रखा जाता है. एक दिन बाद उन्हें और उत्तर की तरफ एक बंजर इलाके में ले जा कर फिर से रोप दिया जाता है.
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सामुदायिक भागीदारी पर भरोसा
डाइवर खिलती हुई समुद्री घास को इकठ्ठा कर उसमें से बीज निकालते हैं. जिओमार हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर ओशन रिसर्च के नेतृत्व में कील में सीस्टोर नाम के शोध प्रोजेक्ट में पहली बार स्थानीय निवासियों को बाल्टिक सागर में समुद्री घास का जीर्णोद्धार करने के लिए ट्रेन किया जा रहा है.
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महत्वपूर्ण कार्बन कुंड
समुद्री घास एक विशालकाय प्राकृतिक कुंड की तरह काम करती है जिसमें लाखों टन कार्बन का भंडारण किया जा सकता है. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि बीते 100 सालों में पानी की गिरती गुणवत्ता की वजह से समुद्री घास बहुत कम हो गई है.
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बाल्टिक सागर को फिर से हरा बनाना
जिओमार में पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्ता एंगेला स्टीवेंसन इस पहल का नेतृत्व कर रही हैं. उन्होंने हाल के सालों में तीन टेस्ट फील्डों की स्थापना की और यह पाया कि शाखें बीजों से ज्यादा मजबूत है. स्टीवेंसन ने कहा, "हमारा लक्ष्य है इस पायलट पीरियड के बाद इसका स्केल बढ़ाना. अंतिम लक्ष्य है बाल्टिक सागर को फिर से हरा करना."
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जमीन के नीचे बागवानी की ट्रेनिंग
21 साल की वेटरनरी असिस्टेंट ली वरफौनडर्न जुलाई के शुरुआत में हुई ट्रेनिंग लेने वाले स्थानीय निवासियों के पहले बैच में थीं. वो कहती हैं, "यह पानी के नीचे बागवानी के जैसा है. पर्यावरण को बचाने के लिए सबको मिल कर योगदान देना चाहिए क्योंकि इसका हम सब पर असर पड़ता है." वीकेंड के कोर्स में छह दूसरे डाइवरों और जमीन पर कुछ वालंटियरों के साथ मिल कर उन्होंने करीब 2,500 पौधे लगाए हैं.
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समुद्री घास की अहमियत
एक कर्मी बीज के साथ समुद्री घास की एक डंठल और एक मादा फूल की पुष्प-योनि दिखा रहा है. 2019 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, अकेले यूरोप में 1860 के दशक और 2016 के बीच में समुद्री घास के एक-तिहाई इलाके खत्म हो गए. इन इलाकों के खोने की वजह से पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड गई और जलवायु परिवर्तन और तेज हुआ.
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बड़ा काम
समुद्री घास लगाना कितना बड़ा काम है यह एक चौंकाने वाले आंकड़े से पता चलता है. स्टीवेंसन का अनुमान है कि जर्मनी के तट के करीब बाल्टिक सागर में जितनी समुद्री घास खो गई उसे फिर से जीवित करने के लिए पांच लाख डाइवरों को एक साल तक रोजाना 12 घंटों तक घास रोपनी पड़ेगी.
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लैब में शोध
थॉर्स्टन रौश जिओमार सेंटर में मरीन वैज्ञानिक हैं. अपनी प्रयोगशाला में वो समुद्री घास की तापमान में बढ़ोतरी का सामना करने की क्षमता पर शोध कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि हीट-रेसिस्टेंट नस्लों को उगाया जा सके, क्योंकि महासागरों के गर्म होने पर मछलियों की तरह समुद्री घास ठंडी जगहों पर माइग्रेट नहीं कर सकती है.
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नई तकनीक
बीजों के लिए इकठ्ठा की गई खिलती हुई घास एक कैच बेसिन में तैर रही है. स्टीवेंसन कहते हैं, "हमें नई तकनीकों के बारे में सोचना होगा जो कार्बन को हटाने में भी हमारी मदद कर सकें. लेकिन अगर हमारे पास कार्बन के भंडारण के लिए प्राकृतिक समाधान मौजूद हैं, तो हमें उनका इस्तेमाल करना चाहिए." (यूली हुएनकेन)
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शुस्टर कहती हैं कि यह पहली बार था जब किसी बॉन्ड निवेशक ने जलवायु परिवर्तन के खतरे को लेकर सरकार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की थी. उन्होंने कहा, "इस मुकदमे के जरिये इस बात के बारे में जागरूकता बढ़ी है कि कैसे जलवायु परिवर्तन का असर विस्तृत बॉन्ड बाजार पर हो सकता है.”
समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया की सरकार जो बयान जारी करेगी, उसमें कहा जाएगा कि जलवायु परिवर्तन देश की "अर्थव्यवस्था, क्षेत्र, उद्योगों व समुदायों” के लिए खतरा पैदा करता है और वैश्विक स्तर पर नेट जीरो उत्सर्जन की ओर बढ़ने को लेकर अनिश्चितता की स्थिति है.
नतीजतन, "इस बारे में भी अनिश्चितता की स्थिति है कि जलवायु परिवर्तन के वित्तीय प्रभावों से बाजार में खरीदे-बेचे जाने वाले बॉन्ड प्रभावित होंगे या नहीं.”
आर्थिक अनिश्चितता
सरकार को अपने बयान में यह भी बताना होगा कि वह क्या कदम उठा रही हैं. इनमें पर्यावरण के अनुकूल वित्तीय सुधारों का एक पैकेज तैयार करना, सालाना जलवायु परिवर्तन वक्तव्य जारी करना और ग्रीन बॉन्ड्स प्रोग्राम तैयार करना भी शामिल है.
सरकार ने कहा, "सरकार की मंशा है कि इन सुधारों से निवेशकों को नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य हासिल करने मुताबिक अपने निवेश निर्णय करने में मदद मिलेगी.”
हाल के सालों में जलवायु परिवर्तन के आर्थिक और वित्तीय प्रभावों को लेकर चिंता दुनियाभर में बढ़ी है. ऑस्ट्रेलिया के केंद्रीय बैंक की गवर्नर मिशेल बुलक ने इसी हफ्ते एक बयान में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती अनिश्चितता के चलते केंद्रीय बैंकों के लिए मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है और भविष्य में इस नीति में बदलाव भी करने पड़ सकते हैं.