25 सालों से भारत में काम कर रही हैं जर्मनी की यह गौरक्षक
२७ मई २०१९
मथुरा में 1800 गायों की देखभाल करने वाली जर्मन महिला कहती हैं कि बूढ़ी और बीमार गायों को बूचड़खानों को बेचना सही नहीं है. हिंदू धर्म अपना चुकी फ्रिडेरीके ब्रुइनिंग मानती हैं कि गायों को मारना सबसे बेकार काम है.
तस्वीर: AFP
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25 साल पहले जर्मनी से भारत पहुंची जर्मन महिला फ्रिडेरीके ईरीना ब्रुइनिंग का पूरा वक्त गायों के बीच बीतता है. ब्रुइनिंग उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में रहती हैं और बीमार और आवारा गायों की देखभाल करती हैं. आज उनके पास करीब 1800 गायें हैं. कुछ वक्त पहले उनकी वीजा बढ़ाने की अपील खारिज कर दी गई थी जिसके चलते उन्हें डर था कि कहीं उन्हें वापस जर्मनी ना जाने पड़े. हालांकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के वीजा मामले में दखल के बाद उन्हें कुछ राहत जरूर मिली है.
ब्रुइनिंग को अपने कामों के लिए पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. ऐसे में अगर वे वापस लौटतीं, तो उन्हें अपना नागरिक सम्मान भी वापस लौटाना पड़ता. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में 61 वर्षीय ब्रुइनिंग ने बताया कि फिलहाल उनके पास 1800 गायें हैं और उनके देखभाल केंद्र में रोजाना पांच से 15 गायें तक रोज आती हैं.
फ्रिडेरीके ईरीना ब्रुइनिंगतस्वीर: DW/S.Mishra
पिछले 25 सालों से अब तक ब्रुइनिंग गायों की देखभाल में अपने करीब दो लाख यूरो तक खर्च कर चुकी हैं. उन्होंने बताया कि गौशालाओं को चलाने में हर महीने करीब 45 हजार यूरो का खर्चा होता है. ब्रुइनिंग की गौशालाओं में आने वाली अधिकतर गायें सड़क दुर्घटनाओं में घायल होती हैं या कई अंधी भी होती हैं. कुछ गायें बीमार होती हैं तो कुछ प्लास्टिक गटकने की वजह से बीमार हो जाती हैं.
साल 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से गायों का मुद्दा राजनीतिक गलियारों से लेकर सड़कों तक उठता रहा है. गौहत्या और गौमांस को लेकर कानून काफी सख्त कर दिए गए हैं. कुछ जगह स्वघोषित गौरक्षकों पर मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा के भी आरोप लगे.
इसके चलते कई पशु मालिक अपनी बूढ़ी और बीमार गायों को बूचड़खानों को बेचने की जगह खुले में छोड़ने लगे. इस वजह से सड़कों पर बड़ी संख्या में गायें आवारा घूमती नजर आने लगीं. इस मुद्दे पर हिंदू बन चुकी ब्रुइनिंग उर्फ सुदेवी दासी कहती हैं कि बूढ़ी और बीमार गायों को बूचड़खानों को बेचना इस समस्या का समाधान नहीं है, "गायों को मारना सबसे घटिया काम है."
बनारस एयरपोर्ट से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर बसा रामेश्वर गांव आजकल चर्चा में है. वैसे तो गाय की वजह से भारत में तमाम विवाद हो रहे हैं लेकिन रामेश्वर गांव "काउ टूरिज्म" के लिए मशहूर हो रहा है.
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गाय और गौशालाएं
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र दिव्यांशु उपाध्याय और कुछ दूसरे छात्र साथियों की मेहनत ने इस गांव को देश के पहले "काउ विलेज" की तरह विकसित किया है. गांव में सौ साल से अधिक पुरानी चार गौशालाएं हैं जिनकी स्थापना बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी ने की थी. दिव्यांशु और उनके दोस्तों ने इन्हीं गौशालाओं का रूपरंग बदल दिया है.
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गौशालाओं की बदली तस्वीर
गौशालाओं में एक हजार से ज्यादा गाय हैं. दिव्यांशु को इस काम की प्रेरणा एक विदेशी जोड़े ने दी जिसने एक भारतीय गांव में घूमने की इच्छा जाहिर की थी. दिव्यांशु खुद एलएलबी के छात्र हैं. उन्होंन मेहनत कर के इस गांव की सफाई की, गौशाला को खूबसूरत बनाया.
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विदेशी सैलानी
आज इस गांव में विदेशी पर्यटक भी आते हैं. वो गाय के साथ समय बिताते हैं, सेल्फी लेते हैं. इस गांव में करीब 11 धर्मशालाएं हैं जहां रुक कर छुट्टियां मनाई जा सकती है और साथ ही साथ होम स्टे की व्यवस्था भी है. आमतौर पर इस गांव में आने वाले एक रात यहां जरूर बिताते हैं. काशी में विख्यात पंचकोशी यात्रा का तीसरा पड़ाव भी इसी गांव में पड़ता है.
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गांव की दीवारों पर गाय ही गाय
छात्रों ने सफाई के बाद दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग की है. बीएचयू के फाइन आर्ट्स के छात्रों ने अपनी कला इन दीवारों पर बिखेरी है. गांव में लगभग दो किलोमीटर लंबी दीवारों पर गाय के कई चित्र बनाए गए हैं. जिसमें गाय के शरीर में देवताओं का वास और गाय को कामधेनु की तरह प्रदर्शित किया गया है. हर तरफ इस गांव में आपको मंदिर, गाय और उसके चित्र ही दिखेंगे.
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गाय का दूध
इस गांव में अतिथियों का स्वागत दूध से बनी चीजें परोस कर किया जाता है. गांव की गौशाला के अलावा भी यहां लगभग सभी के घर गाय हैं और लोग बहुत खुशी से इनकी सेवा करते हैं. गाय का दूध इनके लिए कमाई का जरिया भी है.
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सेल्फी विद काउ
अब इस "काउ विलेज" में आपको कई आकर्षण मिल जाएंगे, सेल्फी विद काउ, वॉक विद काउ जिसमें आप गाय के साथ घूमेंगे, फीड द काउ, जिसमें आप गाय को चारा खिलाएंगे. आपको खाने में दूध, पेड़ा जो ठेठ गवईं तरीके से गाय के दूध से बना होगा, दिया जाएगा. गांव को पर्यटन विभाग अपने स्तर पर प्रमोट करे इसके लिए दिव्यांशु ने पत्र लिखा है.