26 जनवरी को समलैंगिक परेड
२४ जनवरी २०१४![](https://static.dw.com/image/17287866_800.webp)
इस रैली में कई सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार संगठन के लोग भी जुड़ने वाले हैं. तय किया गया है कि गणतंत्र दिवस की परेड खत्म होने के बाद ये लोग दिल्ली में अपनी जुलूस निकालेंगे.
परेड आयोजित करने वाले आयोजकों में शामिल मोहनीष मल्होत्रा ने बताया, "हम सरकार से पूछना चाहेंगे कि क्या हम मौजूदा गणतंत्र के विचार में शामिल हैं या नहीं. सरकार संविधान के तौर पर समलैंगिकों के अधिकारों की रक्षा करने में नाकाम हो गई है."
भारत में दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में समलैंगिक रिश्तों को कानूनी दर्जा दे दिया था. इसके बाद करीब चार साल तक इन लोगों को ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. यहां तक कि समाज में भी लोगों की सोच बदलनी शुरू हो गई. पहले जहां भारत में समलैंगिकों को अजीब नजरों से देखा जाता था, उन्हें किराए पर घर भी मिलने लगे. नौकरियों में भी उनके साथ बेहतर बर्ताव होने लगा. लेकिन तभी सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2013 में इसे गैरकानूनी करार दे दिया.
समलैंगिक अधिकार के लिए लड़ने वाली संस्थाओं ने अदालत के इस फैसले को "काला दिन" बताया. उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि ऐसे अहम मुद्दे को लेकर उसने आज तक कोई योजना नहीं बनाई.
यह ऐसा मामला है, जो भारतीय समाज में आम तौर पर वर्जना माना जाता है. लेकिन चार साल कानून के दायरे में रहने के दौरान कई बार भारत में गे मार्च हुए, कई बार लोगों ने खुल कर इसकी पैरवी की और पत्रिकाओं और अखबारों में भी इसे काफी जगह मिली.
मल्होत्रा का कहना है कि गणतंत्र दिवस ऐसा अनोखा दिन है, जिस दिन वे अपने अधिकारों की मांग कर सकते हैं. 26 जनवरी के दिन भारत में गणतंत्र दिवस मनाया जाता है. इस दिन दिल्ली के राजपथ पर निकलने वाली झांकी भव्य होती है, जिसमें पूरे देश के लोगों की भागीदारी होती है. इसमें भारतीय सेना भी अपने युद्धकौशल का अद्भुत प्रदर्शन करती है. इसी दिन 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ था और इस मौके को राष्ट्रीय छुट्टी के तौर पर मनाया जाता है.
मल्होत्रा का कहना है, "हम अगले गणतंत्र दिवस के और करीब आ रहे हैं. हम कहना चाहते हैं कि सिर्फ शक्तिशाली लोगों की परेड हमारा प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती. हम सरकार से मांग करते हैं कि संविधान के अनुसार हमारे अधिकारों की सुरक्षा की जाए."
एजेए/एमजी (एएफपी)