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26/11 के जख्मों को याद करता भारत

२५ नवम्बर २०११

भारत में हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले की आज तीसरी बरसी है. तीन साल पहले आज ही के दिन 10 आतंकवादियों ने भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई को खून से रंग दिया. हमलों के तीन साल बाद क्या महसूस करता है भारत.

तस्वीर: AP

मुंबई हमलों को याद कर आज भी हर भारतीय के जेहन में ताज होटल की एक खिड़की ने निकलती आग कौंध जाती है, रात में सड़क पर गोलियां बरसाते हुए दौड़ती एक कार आती है और फिर आता है अजमल कसाब का वो फोटो जिसमें उसके हाथ में बदूंक और कंधे पर बैग लटका हुआ है.

26 नवंबर की रात 10 हमलावर कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे. इस नाव पर चार भारतीय सवार थे जिनकी किनारे तक पहुंचते पहुंचते हत्या कर दी गई. रात के तकरीबन आठ बजे थे, जब ये हमलावर कोलाबा के पास कफ परेड के मछली बाजार पर उतरे. वहां से वे चार ग्रुपों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी मंजिलों का रूख किया. कहते हैं कि इन लोगों की आपाधापी को देखकर कुछ मछुवारों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी. लेकिन इलाके की पुलिस ने इस पर कोई खास तवज्जो नहीं दी और न ही आगे बड़े अधिकारियों या खुफिया बलों को जानकारी दी.

इसके बाद खबर आई कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड के दो गुटों के बीच फायरिंग हो रही है. रात के तकरीबन साढ़े नौ बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर गोलीबारी की खबर मिली. मुंबई के इस ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन के मेन हॉल में दो हमलावर घुसे और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इनमें एक मुहम्मद अजमल कसाब था जो हमलों के दौरान गिरफ्तार इकलौता हमलावर है. दोनों के हाथ में एके47 राइफलें थीं और पंद्रह मिनट में ही उन्होंने 52 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और 109 को जख्मी कर दिया.

सीएसटी पर आतंक का मंजरतस्वीर: AP

लेकिन आतंक का यह खेल सिर्फ शिवाजी टर्मिनस तक सीमित न था. दक्षिणी मुंबई का लियोपोल्ड कैफे भी उन चंद जगहों में था जो तीन दिन तक चले इस हमले के शुरुआती निशाने थे. यह मुंबई के नामचीन रेस्त्रांओं में से एक है, इसलिए वहां हुई गोलीबारी में मारे गए 10 लोगों में कई विदेशी भी शामिल थे जबकि बहुत से घायल भी हुए. 1871 से मेहमानों की खातिरदारी कर रहे लियोपोल्ड कैफे की दीवारों में धंसी गोलियां हमले के निशान छोड़ गईं. 10:40 बजे विले पारले इलाक़े में एक टैक्सी को बम से उड़ाने की खबर मिली जिसमें ड्राइवर और एक यात्री मारा गया, तो इससे पंद्रह बीस मिनट पहले बोरीबंदर में इसी तरह के धमाके में एक टैक्सी ड्राइवर और दो यात्रियों की जानें जा चुकी थीं. तकरीबन 15 घायल भी हुए.

जब तक यह साफ हुआ कि यह बड़ा आतंकवादी हमला है तब तक मुंबई पुलिस के कई बडे़ अधिकारी और सिपाही आतंकवादियों को गोलियों का शिकार बन चुके थे. इनमें आतंकवाद निरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, एसीपी अशोक काम्ते और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर जैसे बड़े नाम थे. इन पुलिस अधिकारियों की मौत के बाद यह साफ हो गया कि लाठी के सहारे चलने वाली भारतीय पुलिस मुंबई में घुसे आतंकवादियों से नहीं निपट सकेगी और सेना और विशेष दस्ते बुलाए गए.

लेकिन आतंक की कहानी यही खत्म हो जाती तो शायद दुनिया मुंबई हमलों से उतना न दहलती. 26/11 के तीन बड़े मोर्चे थे मुंबई का ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट होटल और नरीमन हाउस. जब हमला हुआ तो ताज में 450 और ओबेरॉय में 380 मेहमान मौजूद थे. खासतौर से ताज होटल की इमारत से निकलता धुंआ तो बाद में हमलों की पहचान बन गया.

हमलों की अगली सुबह यानी 27 नवंबर को खबर आई कि ताज से सभी बंधकों को छुड़ा लिया गया है, लेकिन जैसे जैसे दिन चढ़ा तो पता चला हमलावरों ने कुछ और लोगों को अभी बंधक बना रखा है जिनमें कई विदेशी भी शामिल हैं. हमलों के दौरान दोनों ही होटल रैपिड एक्शन फोर्ड (आरपीएफ), मरीन कमांडो और नैशनल सिक्युरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो से घिरे रहे. एक तो एनएसजी कमांडो के देर से पहुंचने के लिए सुरक्षा तंत्र की खिंचाई हुई तो हमलों की लाइव मीडिया कवरेज ने भी आतंकवादियों की खासी मदद की. कहां क्या हो रहा है, सब उन्हें अंदर टीवी पर दिख रहा था.

तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे. इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड़ती रही और न सिर्फ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नजरें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी रहीं.

हमले के दौरान अजमल कसाबतस्वीर: AP

हमले के वक्त ताज में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर यूरोपीय संघ की संसदीय समिति के कई सदस्य भी ठहरे हुए थे, हालांकि इनमें से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. हमलों की जब शुरुआत हुई तो यूरोपीय संसद के ब्रिटिश सदस्य सज्जाद करीम ताज की लॉबी में थे, तो जर्मन सांसद एरिका मान को अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर छिपना पड़ा. ओबेरॉय में मौजूद लोगों में भी कई जाने माने लोग थे. इनमें भारतीय सांसद एनएन कृष्णादास भी शामिल थे जो ब्रिटेन के जाने माने कारोबारी सर गुलाम नून के साथ डिनर कर रहे थे.

उधर, दो हमलावरों ने मुंबई में यहूदियों के मुख्य केंद्र नरीमन पॉइंट को भी कब्जे में ले रखा था. कई लोगों को बंधक बनाया गया. फिर एनएसजी के कमांडोज ने नरीमन हाउस पर धावा बोला और घंटों चली लड़ाई के बाद हमलावरों का सफाया किया गया लेकिन एक एनएसजी कमांडो की भी जान गई. हमलावरों ने इससे पहले ही रब्बी गैव्रिएल होल्ट्जबर्ग और छह महीने की उनकी गर्भवती पत्नी रिवकाह होल्ट्जबर्ग समेत कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया. बाद में सुरक्षा बलों को वहां से कुल छह बंधकों की लाशें मिली.

28 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावरों का सफाया हो चुका था और अजमल कसाब के तौर पर एक हमलावर पुलिस की गिरफ्त में था. स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में आ चुकी थी लेकिन 166 की बलि लेकर. जिंदगी कभी नहीं रुकती वाली बात की खातिर मुंबई 26/11 के बाद भी चल रही है, लेकिन इस हमले के जख्मों को भूल तो कतई नहीं सकती.

कार्रवाई में मारे गए भारतीय सुरक्षाकर्मीतस्वीर: AP

26/11 के हमलों का असर भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर भी पड़ा. हमलों से भारत की जनता इतनी नाराज हो गई थी कि सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने का दबाव पड़ने लगा. दोनों देशों के बीच बातचीत बंद हो गई. मई 2010 में मुंबई हमलों को लेकर विशेष अदालत का फैसला आया. अदालत ने भारत में कैद आतंकवादी अजमल कसाब को फांसी की सजा सुनाई. भारत का आरोप है कि हमलों के मुख्य आरोपी अब भी पाकिस्तान में हैं. हाल के दिनों में दोनों देशों के संबंध बेहतर हुए हैं लेकिन मुंबई का घाव ऐसा है जिसे भरने में कई पीढ़ियां लगेंगी.

मुंबई हमले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि पर गहरा धब्बा लगाया. कश्मीर की हिंसा को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत और पाकिस्तान के बीच तटस्थ रुख अपनाता रहा, लेकिन मुंबई हमले ने दिखा दिया कि पाकिस्तान के चरमपंथी कश्मीर की लड़ाई नहीं लड़ रहे बल्कि भारत के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं.

रिपोर्ट: अशोक कुमार, ओ सिंह

संपादन: महेश झा

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