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30 साल बाद अब स्पेस शटल की आखिरी उड़ान

४ जुलाई २०११

बीते तीन दशकों में अंतरिक्ष में 134 बार उड़ान भरने के बाद अब स्पेस शटल इतिहास बनने की दहलीज पर खड़ा है. 8 जुलाई को फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से आखिरी बार उड़ान भरेगा स्पेस शटल. इसके बाद यह कार्यक्रम बंद हो जाएगा.

The U.S. and orbiter flags wave in the breeze as the space shuttle Endeavour sits on Launch Pad 39-A at the Kennedy Space Center in Cape Canaveral, Fla., Sunday, May 15, 2011. Endeavour, and her crew of six astronauts, is scheduled to lift off Monday morning on a 16-day mission to the international space station. (AP Photo/Chris O'Meara)
तस्वीर: AP

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जरूरी सामान पहुंचाने के लिए अटलांटिस 8 जुलाई को 12 दिन लंबे मिशन पर फ्लोरिडा के केनेडी स्पेस सेंटर से रवाना होगा. इसके साथ ही स्पेस शटल कार्यक्रम की विदाई हो जाएगी. चंद्रयान अपोलो की सफल उड़ानों के बाद 1970 में अटलांटिस को बनाया गया और तब पहली बार कोई ऐसा यान बनाया गया था जिसका बार बार इस्तेमाल किया जाना था.

80 करोड़ किलोमीटर का सफर

1981 में जॉन यंग और रॉबर्ट क्रिपेन शटल कोलंबिया पर सवार हो कर अंतरिक्ष में गए थे. 2 दिन छह घंटे के मिशन में पृथ्वी के 36 चक्कर लगाए गए. तब से अब तक स्पेस शटल 80 करोड़ किलोमीटर का सफर तय कर चुके हैं और इनमें सवार हो कर 350 लोग अंतरिक्ष की सैर कर चुके हैं. इनके जरिए कई अहम उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचे. सिर्फ इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण भी इन्हीं की बदौलत हो सका.

शुरुआत में ज्यादातर शटल उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए और कम समय के अंतरिक्ष प्रयोगों के लिए शटल अंतरिक्ष लैब में गए. लेकिन 90 के दशक के बाद से इनकी ज्यादातर उड़ानें अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को बनाने और फिर उनके लिए जरूरी सामान ले जाने के लिए हुईं.

तस्वीर: NASA

अब जबकि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को बने 10 साल से ज्यादा समय हो चुका है तो वैज्ञानिकों का ध्यान इस बात पर है कि स्टेशन का ज्यादा से ज्यादा समय तक कैसे इस्तेमाल किया जाए. इसमें अलग अलग देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम भी शामिल है. जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में स्पेस पॉलिस इंस्टीट्यूट के निदेशक स्कॉट पेस कहते हैं, "आज स्पेस स्टेशन, शटल की विरासत है."

कल्पना चावला की मौत

शटल कार्यक्रम का मकसद था इंसान की अंतरिक्ष में उड़ान को नियमित बनाना और काफी हद तक यह इसमें कामयाब भी रहा. हालांकि दो बड़ी दुर्घटनाओं ने यह अहसास दिला दिया कि अंतरिक्ष की उड़ान रोज रोज की बात नहीं है. इनमें पहला हादसा 28 जनवरी 1986 को हुआ जिसमें कई स्कूली बच्चे अपने टीचर क्रिस्ट मैकऑलिफ और छह दूसरे अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में जाते देखने के लिए जमा हुए थे. चैलेंजर शटल उड़ान भरने के 73 सेकेंड बाद ही हादसे का शिकार हो गया और सारे यात्री मारे गए. इसके करीब दो दशक बाद 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया पृथ्वी की कक्षा में घुसते वक्त हादसे का शिकार हुआ. इसी हादसे में भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भी मारी गईं.

इन हादसों ने शटल उड़ानों पर फिर से विचार करने के लिए वैज्ञानिकों को मजबूर किया और तब यह तय हुआ कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बन जाने के बाद इस कार्यक्रम को बंद कर दिया जाएगा. कुछ लोग इस कार्यक्रम के बंद हो जाने को अमेरिकी मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ानों के दौर का खात्मा मान रहे हैं. हालांकि अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान नासा इससे सहमत नहीं है. वह इसे सिर्फ कार्यक्रमों का बदलाव मान रहा है. नासा एक नया विमान बनाने की तैयारी में है जो लंबी दूरी का सफर तय कर सकेगा. इसके अलावा निजी कंपनियां भी ऐसे विमानों को बनाने में जुटी हैं जो पृथ्वी के आस पास के ग्रहों और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक का सफर तय कर सकेंगी. जब तक यह विमान तैयार नहीं हो जाते अमेरिकी वैज्ञानिकों को रूस के सोयुज अंतरिक्ष यान पर अपनी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए निर्भर रहना होगा.

रिपोर्टः डीपीए/एन रंजन

संपादनः ईशा भाटिया

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