इस बार का बजट अलग है. ना केवल पहली बार एक महिला वित्त मंत्री इसे पेश कर रही हैं, बल्कि पहली बार ब्रीफ केस की जगह बहीखाता संसद में पहुंचा है.
विज्ञापन
सीतारमण से पहले इंदिरा गांधी को भी बजट पेश करते हुए देखा जा चुका है लेकिन सीतारमण भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री है, वहीं इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए अतिरिक्त कार्यभार के रूप में यह मंत्रालय संभाला था. शुक्रवार को बजट पेश करने से पहले निर्मला सीतारमण को पारंपरिक ब्रीफकेस की जगह लाल रंग के कपड़े में लिपटे बजट दस्तावेज के साथ देखा गया. कपड़े के ऊपर अशोक स्तंभ भी बना था और यह बहीखाता पीले और लाल धागे से बंधा हुआ था. मुख्य आर्थिक सलाहकार के सुब्रमण्यम ने इसे "पश्चिमी प्रथा की गुलामी से प्रस्थान" बताया. भारतीय व्यापारी पारंपरिक रूप से अपने व्यापार का हिसाब रखने के लिए बहीखाते का ही इस्तेमाल करते रहे हैं.
राष्ट्रपति राजनाथ कोविंद से मिलने के बाद सुबह 11 बजे सीतारमण ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करना शुरु किया. भारी जनादेश के साथ आई मोदी सरकार के सामने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने, किसानों की हालत में सुधार करने, रोजगार सृजन और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौतियां हैं. सीतारमण ने अपने पहले बजट भाषण में सशक्त राष्ट्र, सशक्त नागरिक के सिद्धांत पर जोर दिया.
सीतारमण ने दावा किया कि वित्त वर्ष 2019-20 में भारत की अर्थव्यवस्था 3,000 अरब डॉलर की होगी. ठीक एक दिन पहले पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में देश को 2025 तक 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा गया है. वित्त मंत्री ने कहा कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई संरचनात्मक बदलाव करने की जरूरत है. इसके लिए भारत को प्रतिवर्ष आठ प्रतिशत की दर से विकास करना होगा. फिलहाल यह दर सात प्रतिशत है.
भारतीय रेलवे पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रैक, रेल इंजन, कोच और वैगन निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी पीपीपी मॉडल को अपनाया जाएगा. इसके लिए 2030 तक 50 लाख करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत है. उन्होंने कहा, "यह देखते हुए कि रेलवे का पूंजीगत व्यय 1.5 से 1.6 लाख करोड़ प्रति वर्ष है, सभी स्वीकृत परियोजनाओं को पूरा करने में दशकों लगेंगे."
क्या वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर संकट में घिर सकती है, क्या फिर से दुनिया वैश्विक मंदी की चपेट में आ सकती है. मौजूदा उतार चढ़ाव ऐसा सोचने के लिए दुनिया को मजबूर कर रहे हैं. जानिए क्या हैं जोखिम.
2008 के बाद से अब तक दुनिया में ऋण का स्तर 60 फीसदी तक बढ़ गया है. विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं में "बैड लोन" एक बड़ी समस्या बन कर उभरा है. तकरीबन 1,82,000 करोड़ डॉलर सरकारी और निजी क्षेत्रों में ऋण के तौर पर फंसे हुए हैं. अब सवाल उठने लगा है कि अगर अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है तो क्या हमारे पास कर्ज की भरपाई करने के लिए पूंजी होगी.
ग्लोबल अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन का 40 फीसदी हिस्सा उभरते बाजारों से आता है, लेकिन इनमें जोखिम का खतरा काफी है. अधिकतर ऐसे बाजारों में विदेशी मुद्रा और डॉलर का दबदबा रहता है. ऐसी स्थिति में जब अमेरिका ब्याज दर बढ़ाता है, सिस्टम से पैसा बाहर जाने लगता है और बाजार कमजोर पड़ जाते हैं. हाल में अर्जेंटीना और तुर्की में कुछ ऐसा ही देखने को मिला.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप कर रियायतें और कारोबारी नियमन कर अब भी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी बनाए रखने में सफल रहे हैं. इसके बावजूद बड़ी कंपनियां इस अनिश्चितता भरे माहौल में बड़ा निवेश करने से कतरा रहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएम) का मानना है कि साल 2018 में आर्थिक विकास शिखर को छूने के बाद धीमा धीमा पड़ जाएगा.
तस्वीर: Reuters/K. Lamarque
4. कारोबारी विवाद
अमेरिका और चीन एक दूसरे के उत्पादों पर शुल्क लगा रहे हैं. चीन ने अमेरिकी मांस और सब्जियों पर तो वहीं अमेरिका ने चीन से आने वाले स्टील, टैक्सटाइल्स और तकनीक पर शुल्क बढ़ा दिया है. दोनों देश का यह विवाद करीब 360 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. आईएमएफ के अनुमान मुताबिक ये कारोबारी जंग अमेरिका की जीडीपी को 0.9 फीसदी तो वहीं चीन की जीडीपी को 0.6 फीसदी तक प्रभावित करेगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Li Zhihao
5. चरमराती बैंकिंग व्यवस्था
व्यवस्थित बैंकिग सेक्टर के अलावा अब कई वित्तीय संस्थाएं भी लेनदेन में सक्रिय हो गए हैं. यूरोपियन सेंट्रल बैंक के मुतबिक यूरोपीय संघ में ऐसे शेडो बैंक करीब 40 फीसदी वित्तीय लेनदेन के लिए जिम्मेदार हैं. यही नहीं, बहुत से वित्तीय संस्थाओं के पास भी जोखिमों से निपटने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/epa/D. Hambury
6. ब्रेक्जिट का असर
मार्च 2019 में ब्रिटेन, यूरोपीय संघ से पूरी तरह अलग हो जाएगा. समय तेजी से निकल रहा है लेकिन अब तक यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने की योजना पूरी तरह से तैयार नहीं हो सकी है. अगर मुक्त व्यापार समझौता नहीं हो पाता है तो सिर्फ जर्मन कंपनियों को ही सालाना 3 अरब यूरो का टैरिफ चुकाना होगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Rain
7. इटली की नीतियां
लोकलुभावन नीतियों का वादा करने वाले इटली के राजनीतिक दल देश में समान आय और रिटायरमेंट की उम्र कम करने के पक्ष में हैं. वहीं इटली 240 खरब डॉलर के ऋण के साथ यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा कर्जदार भी है. इसके साथ ही डूबते कर्जों के मामले में इटली का दुनिया में पहला स्थान है. (पाउल क्रिस्टियान ब्रिट्ज/एए)