1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

31 अक्टूबर और उसके बाद

३० अक्टूबर २००९

31 अक्टूबर 1984 को जब सुबह के वक़्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनके अंगरक्षकों ने गोलियों से भून डाला उस समय इंदिरा के बड़े बेटे राजीव गांधी पश्चिम बंगाल में थे.

सबसे युवा प्रधानमंत्री बने राजीवतस्वीर: AP

मां की मौत के दुख को वो समझने की कोशिश ही कर रहे थे कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उनके सामने देश की बागडोर संभालने की पेशकश रख दी. राजीव गांधी को आनन फ़ानन में कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया. पार्टी के अध्यक्ष भी वो बना दिए गए और देश के सामने इंदिरा की मौत के सदमे के बीच एक ऐसा निर्विकार भावुक और मासूम चेहरा प्रकट हो गया जिसके बारे में उस वक़्त सिर्फ़ सहानुभूति ही थी.

राजीव गांधी ने लोकसभा भंग की और देश में नए चुनाव कराने का एलान किया. सहानुभूति का ऐसा महा ज्वार पूरे देश में कांग्रेस और राजीव के पक्ष में गया कि रिकॉर्ड वोटों से पार्टी जीत गई. लोकसभा की 542 सीटों में से कांग्रेस को 411 सीटें मिलीं. देश के संसदीय इतिहास में ये सबसे बड़ी जीत थी. देश को राजीव गांधी के रूप में सबसे युवा प्रधानमंत्री मिला. उस समय राजीव की उम्र 40 साल थी. और राजनीति में वो नौसिखिया थे.

दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए जारी हैं आंदोलनतस्वीर: UNI

उन्हीं दिनों देश ने एक बार फिर काले दिन देखे. जगह जगह सिख विरोधी हिंसा भड़क उठी. दिल्ली में कांग्रेस नेताओं पर आरोप लगे कि उन्होंने सिखों के ख़िलाफ़ हिंसा को उकसाया. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उस समय जो कहा उससे सारा देश और दुनिया दहल गई. उनका कहना था कि जब कोई विशाल पेड़ गिरता है तो धरती कांपती ही है. उनका इशारा अपनी मां की मौत की ओर था. राजीव गांधी के मासूम चेहरे के पीछे उनके विरोधियों को एक कुटिल नेता नज़र आने लगा.

सिख विरोधी हिंसा विभाजन के दौर की हिंसा और इमरजेंसी के क्रूर दौर की याद दिला गई. अभी तक कई पीड़ितों के मसले जस के तस बताए जाते हैं. राजीव और कांग्रेस पर ये जो दाग़ लगा उसे छुड़ाने की कोशिशें अब तक जारी हैं. राजीव ने दंगों से झुलसे देश में एक नई उम्मीद का नारा दिया. उनके चाहने वालों ने उन्हें मिस्टर क्लीन कहा.

1984 में मां की मौत के बाद अनायास ही राजनीति में आ गए राजीव आने वाले वर्षों में एक धुरंधर और स्मार्ट पीएम बनते दिखाई देने लगे. अपने साथ उन्होंने जो मित्र मंडली बनाई और नए चेहरे पेश किए उनमें उनके बाल सखा अमिताभ बच्चन भी थे जो इलाहाबाद से उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को रिकॉर्ड वोटों से हराकर पहली बार लोकसभा में पहुंचे थे. 31 अक्टबूर ने भारतीय राजनीति में एक नए दौर का सूत्रपात किया.

रिपोर्ट- एजेंसियां एस जोशी

संपादन- आभा मोंढे

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें