भारत: पांच साल में पत्रकारों पर 198 हमले, 40 की मौत
२६ दिसम्बर २०१९पत्रकार गीता सेशू और उर्वशी सरकार ने बीते पांच साल के दौरान पत्रकारों पर हुए हमलों पर एक रिपोर्ट तैयार की है. 'गेटिंग अवे विद मर्डर' नाम की इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोगों के लिए अपना काम करना बीते पांच सालों में मुश्किल हुआ है. 2014 से 2019 के बीच पत्रकारों पर हुए हमलों के 198 गंभीर मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें 36 मामले तो सिर्फ 2019 में ही दर्ज किए गए हैं. छह मामले तो बिलकुल ताजा हैं जो संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए.
रिपोर्ट तैयार करने वाली स्वतंत्र पत्रकार उर्वशी सरकार ने डीडब्ल्यू से कहा,"हमारी रिपोर्ट का एक उद्देश्य यह भी था कि हम जानना चाहते थे कि क्या जिन पत्रकारों पर हमले हुए हैं, उन्हें न्याय मिला या नहीं. साथ ही हम यह भी जानना चाहते थे कि आखिर पत्रकारों पर हमले के कारण क्या होते हैं, क्योंकि पत्रकार ग्राउंड पर रहकर सिर्फ घटना को रिपोर्ट करता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्रकार विस्तार से रिपोर्ट कर रहे हैं जिससे एक खास शक्ति को चोट पहुंच रही हो."
उर्वशी बताती हैं कि किसी घटनाक्रम को रिपोर्ट करने के दौरान भी पत्रकार पर हमले के मामले सामने आए हैं. साथ ही पत्रकार कई बार अवैध खनन करने वाले माफिया और आपराधिक छवि वाले नेताओं के भी निशाने पर आ जाते हैं.
इस रिपोर्ट को ठाकुर फाउंडेशन की मदद से तैयार किया गया है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य, सूचना का अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता के क्षेत्र में काम करता है. रिपोर्ट का दावा है कि 40 मौतों में से 21 मौत पेशे से जुड़े होने के कारण हुई. रिपोर्ट में पत्रकारों पर हुए हमलों के लिए सरकारी एजेंसियों, राजनीतिक दलों के सदस्यों, धार्मिक संप्रदाय के अनुयायियों, छात्र समूहों, आपराधिक गिरोहों और लोकल माफिया जिम्मेदार माना गया है.
उर्वशी कहती हैं, "हमने पाया कि कई तरह के माफिया पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं, जैसे रेत माफिया, अवैध कारोबार के माफिया. कई बार बिजनेसमैन भी भ्रष्टाचार पर की जानी वाली रिपोर्टिंग से नाराज हो जाते हैं और हमला करवा देते हैं."
रिपोर्ट में महिला पत्रकारों पर हुए हमले का भी उल्लेख है. रिपोर्ट बताती है कि कैसे महिला पत्रकारों का ऑनलाइन उत्पीड़न किया जाता है और फील्ड में काम करने के दौरान उन्हें "क्रूरता" से निशाना बनाया जाता है. शोधकर्ताओं ने अपने रिसर्च में यह भी पता लगाया कि कौन से राज्य में पत्रकारों पर सबसे अधिक हमले की घटनाएं दर्ज की गई.
उर्वशी का कहना है कि वह इस रिपोर्ट के जरिए दुनिया के सामने यह तथ्य लाना चाहती हैं कि बीते 4 से 5 साल के बीच पत्रकारों के साथ भारत में कैसा व्यवहार हुआ है. वह कहती हैं कि देश में पत्रकारों पर उनके पेशे के कारण लगातार हमले बढ़ रहे हैं.
पिछले दिनों नागरिकता कानून के खिलाफ लखनऊ में विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' के पत्रकार उमर राशिद को दो घंटे थाने में बिठा लिया था. हालांकि उमर अपना परिचय शुरुआत से ही दे रहे थे लेकिन पुलिस ने उनकी एक नहीं सुनी. उमर अपने दोस्तों के साथ एक ढाबे में बैठे हुए थे, तभी पुलिस उन्हें पूछताछ के लिए थाने ले गई. हालांकि बाद में पुलिस ने उन्हें यह कहते हुए छोड़ दिया कि गलतफहमी की वजह से उन्हें थाने लाया गया.
वहीं दक्षिण के राज्य कर्नाटक में 20 दिसंबर को केरल से आए सात टीवी पत्रकारों को पुलिस ने सात घंटे के लिए हिरासत में ले लिए गए थे. सभी पत्रकार नागरिकता कानून के खिलाफ मंगलुरु में हो रहे विरोध प्रदर्शन की कवरेज के लिए गए थे. पत्रकारों ने पुलिस पर उनके साथ "अपराधियों की तरह व्यवहार" का आरोप लगाया. केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन के दखल के बाद ही पत्रकारों की टीम को रिहा किया गया. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कर्नाटक और यूपी में प्रदर्शनों के दौरान पत्रकारों के खिलाफ की गई हिंसा की निंदा करते हुए कहा है कि इस तरह के कदम लोकतंत्र की आवाज का 'गला घोंटते' हैं.
दूसरी ओर रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति देखें तो वह बहुत अच्छी नहीं है. पत्रकारों की सुरक्षा के लिहाज से 2019 के सूचकांक में भारत को180 देशों की सूची में 140वें नंबर पर रेड जोन में रखा गया है.
_______________
हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore