संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की एजेंसियों की नई रिपोर्ट के मुताबिक संघर्ष, आर्थिक संकट और कठोर मौसम के कारण दुनियाभर में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या 2021 में और बढ़ गई.
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यूएन और यूरोपीय संघ की एजेंसियों की ओर से 4 मई को जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में भूख की समस्या पहले के मुकाबले अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई. यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक खाद्य उत्पादन को प्रभावित किया है और इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र ने भविष्य में और भी अधिक अंधकारमय तस्वीर की भविष्यवाणी की है. यूएन का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या "भयानक" स्तरों तक पहुंचने वाली है, जिनके पास दैनिक भोजन तक बहुत कम पहुंच होगी.
खाद्य संकट के लिए यूरोपीय संघ के वैश्विक नेटवर्क, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने संयुक्त रूप से कहा साल 2021 में भूख में वृद्धि के लिए तीन जहरीले कारक जिम्मेदार हैं-चरम मौसम, कोरोना वायरस महामारी और आर्थिक संकट.
रिपोर्ट के मुताबिक 52 देशों या क्षेत्रों में करीब 19 करोड़ लोगों को 2021 में संकट या उससे बदतर स्तर पर अचानक खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा. 2020 की तुलना में यह पीड़ितों की संख्या में चार करोड़ की वृद्धि को दर्शाता है.
कांगो गणराज्य, यमन, अफगानिस्तान, इथियोपिया, सूडान, सीरिया और नाइजीरिया जैसे देशों में चल रहे संघर्षों ने वहां खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा और बढ़ा दिया है. खराब मौसम के कारण हुए जलवायु परिवर्तन ने भी स्थिति को और खराब किया है.
दाने-दाने को तरसते अफगान
अफगानिस्तान में अब ऐसे लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है जो खाद्य असुरक्षा की स्थिति में रहने को मजबूर हैं. दो करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश की हालत हर रोज खराब हो रही है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
एक तस्वीर जो नहीं बदलती
समय के साथ अफगानिस्तान की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. देश की लगभग 95 प्रतिशत आबादी को जरूरत से कम भोजन के साथ ही गुजारा करना पड़ रहा है.
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और गरीब हुआ दुनिया का सबसे गरीब देश
हाल ही में विश्व बैंक ने कहा कि तालिबान की वापसी के साथ ही 2021 के अंतिम चार महीनों में प्रति व्यक्ति आय में एक तिहाई से अधिक की गिरावट आई है. विश्व बैंक ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर पूर्वानुमान जताया है.
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भोजन के लिए नहीं पैसे
विश्व बैंक के अपडेट में कहा गया है कि आय में इतनी गिरावट आई है कि लगभग 37 फीसदी अफगान परिवारों के पास भोजन पर खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है, जबकि 33 फीसदी भोजन का खर्च उठा सकते हैं लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं.
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खाने की दुकान के सामने भूखों की भीड़
देश में गरीबी का यह आलम है कि लोग खाना नहीं खरीद सकते हैं. ऐसे लोगों को होटलों के सामने खड़ा होना पड़ता है. कई बार स्थानीय लोग रोटी खरीदकर जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं या फिर सहायता समूह उन तक रोटी पहुंचाते हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
सूखे का असर
सूखे के कारण कृषि उत्पादों की उपज में भी कमी आई है. इस तस्वीर में काबुल नदी सूखी हुई दिख रही है.
तस्वीर: Ton Koene/VWPics/UIG/imago
विदेशी खाद्य सहायता
संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 2.3 करोड़ अफगान या देश की लगभग आधी आबादी, भोजन के लिए विदेशी सहायता पर निर्भर है. इस तस्वीर में तालिबान लड़ाके एक विदेशी सहायता ट्रक में भोजन ले जा रहे हैं.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
चीन की मदद पहुंची
अफगानिस्तान के शरणार्थी मामलों के मंत्रालय ने 23 अप्रैल को 1,500 जरूरतमंद लोगों को चीन द्वारा दान की गई मानवीय सहायता बांटी. चीन ने खाद्य सामग्री के अलावा दवा और कोविड वैक्सीन भी अफगानिस्तान को दी है.
तस्वीर: Ali Khara/REUTERS
मदद की अपील
जनवरी 2022 में यूएन ने संकटग्रस्त देश के लिए जो मानवीय मदद की अपील जारी की थी, वो किसी एक देश के लिए अभी तक की सबसे बड़ी अपील थी. इसमें साल 2022 के दौरान अफगानों की मदद करने के लिए पांच अरब डॉलर की सहायता राशि जुटाने की अपील की गई है.
तस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance
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इन एजेंसियों के एक संयुक्त विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले साल इथियोपिया, दक्षिण सूडान, दक्षिण मेडागास्कर और यमन जैसे देशों में पांच लाख से अधिक लोगों को भुखमरी का खतरा था. रिपोर्ट कहती है चरम मौसम की घटनाओं के कारण आठ देशों या क्षेत्रों में दो करोड़ 30 लाख से अधिक लोगों के लिए हालात गंभीर हुए हैं.
विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दी है कि यूक्रेन में रूस के युद्ध के कारण भुखमरी पैदा हो सकती है. रूस और यूक्रेन आवश्यक कृषि उत्पादों के प्रमुख निर्यातक हैं, जिनमें गेहूं और सूरजमुखी के तेल से लेकर खाद तक शामिल हैं.
एफएओ ने पहले कहा था कि यूक्रेन युद्ध ने मार्च में विश्व खाद्य कीमतों को सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है. एफएओ ने कहा, "युद्ध ने पहले ही वैश्विक खाद्य प्रणालियों की परस्पर प्रकृति और नाजुकता को उजागर कर दिया है."
संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर में भूख के ज्वार को रोकने के लिए अतिरिक्त धन के साथ-साथ एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का आह्वान किया है.
एए/सीके (डीपीए, एएफपी)
सर्वे: भारत में 80 प्रतिशत परिवारों में भोजन तक की समस्या
महामारी के आर्थिक असर पर किए गए एक सर्वे ने पाया है कि 2021 में करीब 80 प्रतिशत परिवार "खाद्य असुरक्षा" से जूझ रहे थे. सर्वे से संकेत मिल रहे हैं कि महामारी के आर्थिक असर दीर्घकालिक हो सकते हैं.
इस सर्वे के लिए 14 राज्यों में जितने लोगों से बात की गई उनमें से 79 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि 2021 में उन्हें किसी न किसी तरह की "खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. 25 प्रतिशत परिवारों को "भीषण खाद्य असुरक्षा" का सामना करना पड़ा. सर्वेक्षण भोजन का अधिकार अभियान समेत कई संगठनों ने मिल कर कराया था.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भोजन तक नहीं मिला
सर्वे में पाया गया कि 60 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को या तो पर्याप्त खाना न हासिल होने की चिंता थी या वो पौष्टिक खाना नहीं खा पाए या वो सिर्फ गिनी चुनी चीजें खा पाए. 45 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घर में सर्वे के पहले के महीने में भोजन खत्म हो गया था. करीब 33 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें या उनके परिवार में किसी न किसी को एक वक्त का भोजन त्यागना पड़ा.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भोजन मिला, लेकिन पोषण नहीं
सर्वेक्षण दिसंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच कराया गया और इसमें 6,697 लोगों को शामिल किया गया. इनमें से 41 प्रतिशत परिवारों ने कहा कि उनके भोजन की पौष्टिक गुणवत्ता महामारी के पहले के समय की तुलना में गिर गई. 67 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि वो रसोई गैस का खर्च नहीं उठा सकते थे.
तस्वीर: DW
आय भी गिरी
65 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनकी आय महामारी के पहले की स्थिति के मुकाबले गिर गई. इनमें से 60 प्रतिशत परिवारों की मौजूदा आय उस समय के मुकाबले आधे से भी कम है. ये नतीजे दिखाते हैं कि महामारी के शुरू होने के दो साल बाद भी भारत में बड़ी संख्या में परिवारों की कमाई और सामान्य आर्थिक स्थिति संभल नहीं पाई है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
नौकरी चली गई
32 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उनके कम से कम एक सदस्य की या तो नौकरी चली गई या उन्हें वेतन का नुकसान हुआ.
तस्वीर: Pradeep Gaur/Zumapress/picture alliance
इलाज पर खर्च
23 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन्हें इलाज पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ी. इन परिवारों में 13 प्रतिशत परिवारों के 50,000 से ज्यादा रुपए खर्च हो गए और 35 प्रतिशत परिवारों के 10,000 से ज्यादा रुपए खर्च हुए.
तस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
कर्ज में डूबे
लगभग 45 प्रतिशत परिवारों ने बताया कि उन पर कर्ज बकाया है. इनमें से 21 प्रतिशत परिवारों के ऊपर 50,000 रुपयों से ज्यादा का कर्ज है.
तस्वीर: DW/M. Raj
खोया बचपन
हर छह परिवारों पर कम से कम एक बच्चे का स्कूल जाना बंद हो गया. हर 16 परिवारों में से एक बच्चे को काम पर भी लगना पड़ा.
तस्वीर: Daniel Berehulak/Getty Images
महिलाओं पर ज्यादा असर
सर्वे में शामिल होने वालों में से 4,881 ग्रामीण इलाकों से थे और 1,816 शहरी इलाकों से. 31 प्रतिशत परिवार अनुसूचित जनजातियों से थे, 25 प्रतिशत अनुसूचित जातियों से, 19% सामान्य श्रेणी से, 15% ओबीसी और छह प्रतिशत विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों से थे. भाग लेने वाले लोगों में कम से कम 71% महिलाएं थीं.