सरस्वती नदी और प्राचीन शहर धोलावीरा कैसे गायब हो गए?
प्रभाकर मणि तिवारी
१६ जनवरी २०२०
हिमालय से निकल कर गुजरात के कच्छ रण तक बहने वाली सरस्वती नदी का लुप्त होना ही हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शहर धोलावीरा के नष्ट होने की प्रमुख वजह थी? भारतीय रिसर्चरों ने इस सवाल का जवाब तलाश लेने का दावा किया है.
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लगभग चार हजार साल पहले लुप्त होने वाली सरस्वती नदी के बारे में यह शोध रिपोर्ट विली जर्नल के ताजा अंक में छपी है. पहली बार सरस्वती नदी के विलुप्त होने से हड़प्पाकालीन शहर धोलावीरा के नष्ट होने का प्रामाणिक जानकारी पहली बार सामने आई है.
आईआईटी खड़गपुर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि रिसर्च टीम ने कच्छ के रण में स्थित सबसे बड़े हड़प्पाकालीन शहर धोलावीरा के विकास और पतन की कड़ियों और रण में बहने वाली एक ऐसी नदी के आपसी संबंधों की खोज की है जो पौराणिक काल की हिमालयी नदी सरस्वती से मिलती है. इस शहर की सबसे ज्यादा खुदाई की गई है और यहां हड़प्पाकालीन सभ्यता और संस्कृति के ढेरों अवशेष मिले हैं. रिसर्च टीम में आईआईटी खड़गपुर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), डेक्कन कॉलेज पीजीआरआई पुणे, फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी (पीआरएल) और गुजरात के संस्कृति विभाग के शोधकर्ता शामिल हैं.
आईआईटी के बयान में कहा गया है कि शोध के दौरान मिले आकड़ों से पता चला है कि रण में किसी जमाने में मैंग्रोव पेड़ भी उगे थे और सिंधु की सहायक नदियों की ओर थार मरुस्थल के दक्षिण में स्थित कच्छ में भारी मात्रा में पानी मिलता था. शोध दल की अगुआई करने वाले आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर अनिंद्य सरकार कहते हैं, "पहली बार कच्छ में बहने वाली इस हिमाच्छादित नदी का प्रत्यक्ष प्रमाण मिला है. यह सरस्वती नदी जैसी है और रण के पास बहती थी.”
प्राचीन काल में दजला (टिगरिस) और फरात (यूफ्रेट्स) नदियों के बीच विकसित हुई मेसोपोटामिया की सभ्यता से जुड़ी कई चीजों के साथ हम आज भी जी रहे हैं. इन तस्वीरों के माध्यम से झांकिए उस प्राचीन सभ्यता में.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Scholz
कितनी पुरानी
दो नदियों दजला और फरात के बीच की धरती पर इंसानी सभ्यता के पहले शहर बसे. ईसा पूर्व चौथी सदी से करीब 3,000 सालों तक मेसोपोटामिया की सभ्यता के सबूत मिलते हैं. ईसा पूर्व पहली सदी आते आते वहां बेबीलोन और निनवे जैसे कई शहर बस चुके थे.
तस्वीर: Imago/UIG
पहला साम्राज्य
आज जहां इराक और सीरिया जैसे देश स्थित हैं उसी धरती पर कभी मेसोपोटामिया सभ्यता हुआ करती थी. वह प्राचीन सभ्यता उत्तरी असीरिया और दक्षिणी बेबीलोनिया में विभाजित थी. फिर इसे निचले स्तर पर भी कई प्रांतों में बांटा गया था. ईसा पूर्व तीसरी सदी से इन छोटे इलाकों को मिलाकर एक साम्राज्य के रूप में साथ लाया गया.
पहली लिखाई
खूबसूरत तारों और फूलों जैसी ये डिजायन असल में इंसान को मिली आज तक की सबसे पुरानी लिखाई है. यह सबसे पुरानी लिखाई कुनीफॉर्म मेसोपोटामिया की सभ्यता के शुरुआत के वक्त यानि ईसा पूर्व चौथी सदी के आसपास की मानी गई है. यह पहले अक्षर थे और इसके बाद आने वाले 3,000 सालों में इन्हीं अक्षरों से दर्जनों नई भाषाओं ने आकार लिया.
तस्वीर: Service presse/Musee du Louvre-Lens
पहला राजा
इस सभ्यता में सब कुछ पहला पहला ही था. मेसोपोटामिया के पहले राजा तुकुल्टी-निरूर्ता प्रथम का नाम इस कुर्सी पर खुदा हुआ है. राजा की जिम्मेदारियों में सुरक्षा और शहर की योजनाएं बनाने से लेकर देश में न्याय व्यवस्था बरकरार रखना भी था. पहले लिखित कानून भी यहीं मिले हैं. बर्लिन के सरकारी संग्रहालय में प्रदर्शनी में रखी गई ऐसी ही एक शिला.
तस्वीर: Service presse/Musee du Louvre-Lens
कृषि करने वाले पहले लोग
संग्रहकर्ता से शिकारी और फिर किसान और पशुपालक बनने तक का सफर ऐतिहासिक है. इस सभ्यता में इंसान के खेती करने और पशुओं को पालने के पहले साक्ष्य मिलते हैं. उस समय सिंचाई के लिए व्यवस्था भी विकसित की गई और पशुओं के दूध से कई तरह के उत्पाद भी बनने शुरू हुए.
तस्वीर: Service presse/Musee du Louvre-Lens
पहला चक्का..
..मेसोपोटामिया में ही बना. चक्के का आविष्कार करने के अलावा इस सभ्यता के लोगों ने अपने हाथों से कई नई चीजें बनाईं. इसके अलावा उन्होंने आग से भी कई तरह के प्रयोग किए. इसी कड़ी में आगे चल कर सिरैमिक, धातु और शीशे का निर्माण हुआ.
तस्वीर: Service presse/Musee du Louvre-Lens
दिव्य पदानुक्रम
इस सभ्यता के लोग आस्तिक थे और कई सारे देवताओं को मानते थे. देवों की भी श्रेणियां थीं. सबसे बड़े देवता को उससे छोटे देवता पूजते थे. इस श्रेणी में सबसे अंत में आता था मानव. जिसे सबको पूजना होता और सबकी आज्ञा का पालन करना होता था. जीवन और धर्म गहराई से जुड़े थे.
तस्वीर: Service presse/Musee du Louvre-Lens
अंत
सिकंदर महान ने 331 ईसा पूर्व में मेसोपोटामिया की सभ्यता को नष्ट कर दिया और वहां ग्रीक संस्कृति का प्रचार प्रसार किया. इसी के साथ मेसोपोटामियाई परंपराएं और जीवन दर्शन खो गया. फिर उसे हजार साल बाद फिर से खोद कर निकाला गया और अब इसे लुव्रे म्युजियम में सहेजकर रखा गया है. (लिया अलब्रेष्ट/आरपी)
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
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अहमदाबाद की फिजिकल रिसर्च लेबोरेट्री (पीआरएल) से जुड़े डॉ रवि भूषण और नवीन जुयाल ने हड़प्पा में मिले मानव कंगन के कार्बोनेट्स और 'फिश ओटोलिथ' की जांच के आधार पर कहा है कि यह स्थान साढ़े पांच हजार साल पहले यानी हड़प्पा काल से पहले से लेकर हड़प्पा काल के दौरान तक बसा हुआ था. एएसआई के दो शोधकर्ताओं डॉ वीएस बिष्ट और आरएस रावत के शोध से पता चला है कि धोलावीरा का 4400 साल पहले तक विस्तार हुआ. इसके बाद लगभग चार हजार साल पहले अचानक इसका पतन हो गया.
प्रोफेसर सरकार कहते हैं, "धोलावीरा में रहने वाले लोगों ने बांध, जलाशय और पाइफलाइन बना कर जल संरक्षण की बेहतरीन नीति अपनाई थी. लेकिन नदी के सूख जाने की वजह से इलाके में भयावह सूखे जैसी स्थिति का सामना करने में वह लोग नाकाम रहे.” वह कहते हैं कि धोलावीरा इस बात को समझने के लिए एक बेहतरीन मिसाल है कि इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की भविष्यवाणी के मुताबिक किस तरह जलवायु परिवर्तन से भविष्य में सूखे का खतरा बढ़ सकता है.
हड़प्पा या सिंधुघाटी सभ्यता के अचानक खत्म होने के बारे में कई वजहें गिनाई जाती रही हैं और इस पर अब तक रहस्य कायम है. कुछ इतिहासकारों का दावा है कि सिंधु घाटी के प्रमुख कारोबारी सहयोगी मेसोपोटामिया के साथ व्यापार अचानक ठप होना ही इसकी प्रमुख वजह थी. वहीं दूसरे इतिहासकारों का दावा है कि इस सभ्यता के खत्म होने की वजह युद्ध भी हो सकता है. ऋगवेद में उत्तर से आने वाले हमलावरों के सिंधु घाटी पर कब्जा करने का जिक्र है. बाद में 1940 के दशक में एक पुरातत्वविद् मोर्टाइमर व्हीलर ने मोहनजोदड़ो से 39 नरकंकाल बरामद होने के बाद दावा किया था कि उन हमलावरों ने ही यह हत्याएं की थीं. हालांकि इस दावे पर भी सवाल उठते रहे हैं.
प्राचीन पेरु की एक रेगिस्तानी घाटी पर कभी उसका राज था. उसकी मौत 1700 साल पहले हो गयी थी. लेकिन वैज्ञानिकों ने थ्री डी प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी से उसका चेहरा फिर से तैयार कर दिया है.
तस्वीर: Reuters/G. Pardo
फिर से साकार
वैज्ञानिकों को 2006 में लातिन अमेरिकी देश पेरु में त्रुजिलो शहर के पास चिकामा घाटी में एक ममी के अवशेष मिले. अब थ्री डी प्रिंटिंग की मदद से वैज्ञानिकों ने उसके चेहरे को साकार कर दिया है.
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लेडी ऑफ काओ
इस महिला को लेडी ऑफ काओ का नाम दिया गया क्योंकि उसके अवशेष काओ विएजो नाम की जगह पर मिले थे. इस महिला को हथियारों, मुकुट और सोने से बनी कई चीजों के साथ दफन किया गया था.
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पहली शासक
माना जाता है कि यह पेरु में शासन करने वाली पहली महिला थी और उसका संबंध मोचे सभ्यता से था. इस ममी के मिलने से पहले माना जाता था कि प्राचीन पेरु में नेतृत्व सिर्फ पुरूषों के हाथ में था.
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टैटू के निशान
इस महिला के शरीर पर सांप, मकड़ी और अन्य कई चीजों के टैटू अब भी साफ देखे जा सकते हैं. इनसे उस दौर में प्रचलित सामाजिक मान्यताओं की झलक मिलती है.
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कैसे हुई मौत
माना जाता है कि इस महिला की मृत्य 20 से 25 साल की उम्र के बीच हुई थी. पुरातत्वविदों का अनुमान है कि लेडी ऑफ काओ की मौत गर्भावस्था या बच्चे को जन्म देने के दौरान हुई थी. वरना वह एक स्वस्थ महिला थी.
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लंबी कोशिश का नतीजा
वैज्ञानिकों ने दस महीने तक ममी की खोपड़ी के ढांचे का अध्ययन किया और फिर उसकी तुलना पिरामिड के आसपास रहने वाले महिलाओं की तस्वीरों से की. इसके बाद वे लेडी ऑफ काओ का चेहरा तैयार कर पाये.
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समृद्ध विरासत
पेरु के संस्कृति मंत्रालय का कहना है कि ममी के चेहरे को तैयार करने का मकसद दुनिया को पेरू की अमूल्य पुरातात्विक खोज और देश की समृद्ध विरासत से रूबरू कराना है.
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योगदान
मोचे सभ्यता के दौरान रेगिस्तानों की सिंचाई के लिए नहरें बनायी गयी थीं. पश्चिमी पेरू के पश्चिमी हिस्से में मोचे सभ्यता 100 से 800 ईसवी तक रही. ये लोग सेरेमिक और सोने की बनायी गई चीजों के लिए भी जानते थे.
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सेल्फी भी
ममी के इस चेहरे को पेरू की राजधानी लीमा में संस्कृति मंत्रालय में रखा गया है. इसे लेकर लोगों में खासी दिलचस्पी है.
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इससे पहले आईआईटी खड़गपुर के एक अन्य अध्ययन में कहा गया था कि जलवायु परिवर्तन की वजह से हर जगह लोगों का विस्थापन हुआ था. यह विस्थापन भी सिंधु घाटी सभ्यता के खत्म होने की एक प्रमुख वजह हो सकती है. थार के विगाकोट में मिले सबूतों के आधार पर यह दावा किया गया था. वहां ईसा मसीह के एक हजार साल बाद तक इंसानों के रहने के सबूत मिले थे. लेकिन अब पहली बार धोलावीरा के खत्म होने को हिमालयी नदी से जोड़ा गया है.
ताजा शोध में कहा गया है कि धोलावीरा में रहने वाले लोगों की संस्कृति काफी बेहतर थी. उन लोगों ने विशालकाय शहर बसाया और जल संरक्षण नीतियो की वजह से लगभग 1700 साल तक जीवित रहे.
वैसे, सरस्वती नदी के हिमालय से निकल कर हरियाणा, राजस्थान होते हुए गुजरात के धोलावीरा तक जाने के प्रमाण पहले भी मिले थे. जाने माने भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर केएस वाल्दिया की अध्यक्षता वाले एक विशेषज्ञ दल ने इस बारे में अध्ययन के बाद केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. लेकिन यह पहला मौका है जब हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख शहर धोलावीरा के उत्थान और पतन को इस नदी से जोड़ा गया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इस शोध से सरस्वती नदी, सिंधु घाटी सभ्यता और उस दौरे के जीवन के बारे में नई जानकारियां मिलेंगी. इससे इतिहास के कुछ रहस्यों से भी परदा उठ सकता है.