संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 'लिंचिंग' पर नई बहस शुरू कर दी है. उनके मुताबिक लिंचिंग जैसा भारत में कुछ नहीं है, बल्कि इसकी आड़ में साजिश चल रही है. फिर उन लोगों की हत्याओं को क्या कहा जाए जिन्हें भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला?
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अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि मई 2015 और दिसंबर 2018 के बीच 100 से भी ज्यादा घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 44 लोगों को भीड़ ने मिल कर मार दिया और करीब 280 लोग घायल हो गए. मरने वालों में से 36, यानी करीब 82 प्रतिशत मुसलमान थे. दिल्ली के पास दादरी में सितंबर 2015 में 52 वर्षीय व्यक्ति मोहम्मद अखलाक की हत्या ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी.
फ्रिज में गोमांस रखने के संदेह में उनके ही पड़ोसियों ने उन्हें इतना पीटा कि मौत हो गई. इसके बाद भारत के कई हिस्सों में इस तरह की घटनाएं देखने को मिलीं. इनमें कई हत्याओं के आरोप तथाकथित गोरक्षकों पर लगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन घटनाओं की निंदा की और कहा कि ऐसे लोग गोरक्षक नहीं हो सकते. लेकिन इस तरह की घटनाएं बराबर होती रहीं. व्हाट्सऐप पर फैली अफवाहों की वजह से भी कई लोगों को भीड़ ने मौत के घाट उतार दिया. ऐसे में व्हाट्सएप ने भी अफवाह न फैलाने की अपील करते हुए अखबारों में पूरे पूरे पेज के विज्ञापन छपवाए. बाद में उसने अपने ऐप में एक नई विशेषता भी जोड़ी जिसके जरिए हर फॉरवर्ड किया हुआ संदेश अब चिन्हित होता है.
लिंचिंग की घटनाओं पर आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं. लेकिन डाटा पत्रकारिता करने वाली वेबसाइट इंडियास्पेंड के अनुसार, सिर्फ जनवरी 2017 और जुलाई 2018 के बीच में इस तरह की कम से कम 69 घटनाएं हुईं, जिनमें कम से कम 33 लोगों की जान चली गई. इस तरह की हत्याओं को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में भी कई याचिकाएं दायर की गईं. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2018 में संसद को एक विशेष कानून लाने के लिए कहा ताकि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके.
अब तक लिंचिंग के खिलाफ कोई केंद्रीय कानून नहीं आया है. राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि सरकार अभी तक ऐसा विधेयक संसद में इसलिए लेकर नहीं आई है क्योंकि सरकार को यह मुद्दा उतना जरूरी नहीं लगता. उनके मुताबिक कई ऐसे विषय हैं जिन पर कम समय में विधेयक लाए गए और पारित भी करवा लिए गए. उन्होंने उदाहरण के तौर पर तीन तलाक से संबंधित विधेयक की याद दिलाई और कहा कि इसी तरह लिंचिंग से लड़ने वाला विधेयक भी लाया जा सकता था.
मोहन भागवत ने भी जिस तरह से इस भीड़ हिंसा का व्याख्यान किया है और अपनी राजनीतिक विचारधारा को इससे अलग करने की कोशिश की है, उससे इसकी रोकथाम की कोई उम्मीद नहीं जगती. मनोज झा कहते हैं, "यह सही है कि लिंचिंग शब्द विदेशी है लेकिन उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि इसे भारत में वैचारिक और राजनीतिक खुराक कहां से मिल रही है?"
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
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राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
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गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
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आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
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उत्तर प्रदेश
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
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असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
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हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
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गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
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दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
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महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख हर साल विजयदशमी पर एक भाषण देते हैं. इस वर्ष भी संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विचार संघ के स्वयंसेवकों और अधिकारियों के समक्ष रखे. इस बार उनके भाषण में कई अन्य विषयों के साथ साथ भीड़ द्वारा लोगों को पीट पीट कर मार दिए जाने की बढ़ती घटनाओं पर विशेष जोर था.
भागवत ने कहा कि एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के व्यक्तियों पर आक्रमण कर उन्हें सामूहिक हिंसा का शिकार बनाने की यह प्रवृत्ति भारत की परंपरा नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को 'लिंचिंग' जैसे शब्द देकर सारे देश को और हिन्दू समाज को बदनाम किया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि यह देश के तथाकथित अल्पसंख्यक वर्गों में भय पैदा करने का एक षड़यंत्र है और विशिष्ट समुदाय के हितों की वकालत करने की आड़ में लोगों को आपस में लड़ाने का उद्योग है जिसके पीछे कुछ नेता हैं.
कई बीजेपी नेताओं के नाम किसी ना किसी तरह लिचिंग के आरोपियों के सिलसिले में सुर्खियों में रहे हैं. अखलाक की हत्या के एक आरोपी के निधन पर हुई शोक सभा में केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा पहुंचे, तो झारखंड में लिचिंग की एक घटना के आरोपियों को जब जमानत मिली तो बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने फूलों के हार से अपने निवास पर इनका स्वागत किया था. यही नहीं, सिन्हा ने बाद में यह भी बताया कि उनमें से कम से कम 6 लोगों को केस लड़ने के लिए बीजेपी ने आर्थिक मदद की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी प्रत्यक्ष रूप से तथाकतित गोरक्षा से जुड़ी हिंसा को प्रोत्साहन नहीं दिया है. लेकिन उन्होंने तुरंत इसकी निंदा भी नहीं की और अपनी पार्टी के उन नेताओं को दण्डित भी नहीं किया जिन्होंने इस हिंसा का समर्थन किया. अखलाक की हत्या के लगभग एक साल बाद उन्होंने दिल्ली में अपने एक भाषण में कहा कि गोरक्षा के नाम पर अपनी अपनी दुकानें चलाने वालों को देख कर उन्हें गुस्सा आता है. 2017 में भी उन्होंने एक भाषण दिया और उसमें भी गोरक्षा के नाम पर हिंसा की आलोचना की. लेकिन स्वयंभू गौ-रक्षकों पर उनकी अपील का कोई असर नहीं हुआ और ये घटनाएं इसी तरह चलती रहीं.
भारत में खानपान की आदतें केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि धर्म, जाति, क्षेत्र और आय पर आधारित एक जटिल समीकरण से जुड़ी हैं. देखिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कौन लोग गाय या भैंस का मांस खाते हैं.
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राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ के 2011-12 के आंकड़ें दिखाते हैं कि भारत में करीब 8 करोड़ लोग बीफ या भैंस का मीट खाता है.
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आंकड़ों के अनुसार बीफ यानि गौमांस और भैंस का मीट खाने वाले ये लोग सभी धर्मों और राज्यों में पाये जाते हैं. इन 8 करोड़ लोगों में करीब सवा करोड़ हिन्दू हैं.
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एनएसएसओ के आंकड़ों से हाल के सालों में मीट की खपत बढ़ने का पता चलता है. इस सर्वे में करीब एक लाख लोगों से आंकड़ें इकट्ठे किए गए. देखा गया कि हफ्ते और महीने की औसत अवधि में एक परिवार खाने की किन चीजों पर कितना खर्च करता है.
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विश्व में मांस की खपत का लेखाजोखा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की 2007 में जारी 177 देशों की सूची में भारत को अंतिम स्थान मिला. 43 किलो के विश्व औसत के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति सालाना मांस की खपत मात्र 3.2 किलो दर्ज हुई.
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एफएओ बताता है कि दुनिया भर में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ने, शहरीकरण और खानपान की आदतें बदलने के कारण मांस की खपत बढ़ी है. भारत में खपत विश्व औसत से काफी कम है लेकिन वह बीफ, भैंस के मांस और काराबीफ का सबसे बड़ा निर्यातक है.
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भारत में धर्म के आधार पर गाय या भैंस का मांस खाने वाला सबसे बड़ा समुदाय 6 करोड़ से अधिक मुसलमानों का है. संख्या के मामले में इसके बाद सबसे अधिक हिन्दू समुदाय आता है. जबकि प्रतिशत के अनुसार मुसलमानों के बाद ईसाई आते हैं.
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मुसलमानों के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) गाय या भैंसों का मीट खाने वाला सबसे बड़ा तबका है. हिन्दुओं में इसे खाने वाले 70 फीसदी से अधिक लोग एससी/एसटी, 21 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और करीब 7 फीसदी उच्च जातियों से आते हैं.