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"4.6° बढ़ जाएगा धरती का तापमान"

६ नवम्बर २०१३

जलवायु परिवर्तन करने वाली खतरनाक ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है. डब्ल्यूएमओ के मुताबिक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डायॉक्साइड का घनत्व 141 फीसदी बढ़ चुका है. इंसान लाचार पड़ता जा रहा है.

तस्वीर: picture-alliance/chromorange

संयुक्त राष्ट्र की विश्व मौसम एजेंसी डब्ल्यूएमओ के प्रमुख मिचेल जाररैड ने ग्रीनहाउस गैसों की रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, "सघनता एक बार फिर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रही है. आर्थिक मंदी और कुछ देशों के उत्सर्जन कम करने के बावजूद वैश्विक तस्वीर देखें तो हमारे वातावरण में साल दर साल कॉर्बन डायॉक्साइड की सघनता बढ़ते हुए रिकॉर्ड स्तर पर जा रही है. सीओटू का असर बुरा होता है."

तापमान में अंतर और ग्रीनहाउस गैसों की सघनता पता करने के लिए वैज्ञानिक मौजूदा स्थिति की तुलना 1750 से पहले के समय से करते हैं. 1750 को औद्योगिकरण की शुरुआत कहा जाता है. पश्चिमी देशों में इसके बाद ही कारखाने लगने शुरू हुए. औद्योगिकरण से पहले की तुलना में आज वातारवरण में 141 फीसदी ज्यादा सीओटू है. मीथेन की मात्रा 260 फीसदी और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा 120 फीसदी बढ़ी है. रिपोर्ट से साफ है कि मौजूदा हालात में ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ने से नहीं रोका जा सकता है.

तस्वीर: International Polar Foundation

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो इंसान लाचार होकर बार बार बड़े तूफान, लुप्त होते जीव, कम होता पानी, डूबती जमीन और पिघलती बर्फ देखेगा. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के समुद्र विज्ञानी पीटर वैडहैम्स कहते हैं, "इसका असर अगले 100 साल तक जलवायु पर दिखाई पड़ेगा. लंबे समय से जीवाश्म ईंधन के अथाह इस्तेमाल की कीमत हमें चुकानी होगी. हो सकता है कि हम ग्लोबल वॉर्मिंग को आपदा में बदलने से रोक पाने वाली सीमा के भी पार आ गए हैं." वैडहैम्स के मुताबिक अब अगर कार्बन डायॉक्साइड का उत्सर्जन कम भी किया जाए तो भी बात नहीं बनने वाली.

बीते 10 सालों को ही देखा जाए तो 2011 और 2012 में सीओटू की मात्रा औसत से ज्यादा तेजी से बढ़ी. आशंका है कि तेजी की ये रफ्तार 2015-16 तक जारी रहेगी. पश्चिमी यूरोप, जापान और अमेरिका के अलावा बाकी दुनिया अभी आर्थिक और औद्योगिक तौर पर पिछड़ी हुई है. एक के बाद एक देश उद्योगों के जरिए बराबरी की कोशिश कर रहे हैं. वहां तमाम परियोजनाएं चल रही हैं. विशेषज्ञों को लगता है कि आर्थिक तरक्की की इस दौड़ में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना बहुत मुश्किल है. आशंका है कि इस शताब्दी के अंत तक धरती का तापमान 4.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा.

ओएसजे/एजेए (एएफपी)

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