कश्मीर में एक आतंकी संगठन की धमकी के बाद 'राइजिंग कश्मीर' अखबार के पांच पत्रकारों ने इस्तीफा दे दिया है. घाटी में पत्रकार पुलिस कार्रवाई का सामना तो कर ही रहे थे, अब आतंकी संगठन भी उन्हें निशाना बना रहे हैं.
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पांचों पत्रकार श्रीनगर से छपने वाले अंग्रेजी भाषा के अखबार 'राइजिंग कश्मीर' के लिए काम करते थे. इनमें से कुछ ने सोशल मीडिया पर अपने इस्तीफों के बारे में जानकारी दी है. इन सभी का नाम "द रेजिस्टेंस फ्रंट" (टीआरएफ) नाम के आतंकी संगठन द्वारा छापी गई एक सूची में था जिसमें संगठन ने इन्हें सुरक्षाबलों का मुखबिर बताया था.
टीआरएफ को पाकिस्तान से चलने वाले आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तय्यबा की ही एक शाखा माना जाता है. यह संगठन पिछले कुछ सालों में कई आतंकवादी हमलों में भी शामिल रहा है. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि इसने पत्रकारों को निशाना बनाना शुरू किया है.
धमकी भरे पोस्टर
पिछले हफ्ते शनिवार 12 नवंबर को एक ब्लॉग वेबसाइट पर टीआरएफ के हवाले से एक धमकी भरा पोस्टर डाला गया जिसमें कश्मीर के दो जाने माने अखबारों पर सरकार का मुखपत्र होने का आरोप लगाया गया. अगले दिन ऐसी एक नई सूची सामने आई जिसमें 12 पत्रकारों और अखबारों के मालिकों के नाम थे.
इस सूची में इन लोगों को "पुलिस, सेना और खुफिया एजेंसियों के एजेंट" बताया गया. सोमवार को एक और सूची जारी की गई जिसमें 12 और पत्रकारों के नाम थे. इनमें से कई पत्रकार मुख्य संपादक जैसे ऊंचे पदों पर काम करते हैं और मशहूर हैं. उन्हें पुलिस से सुरक्षा भी मिली हुई है.
लेकिन कई पत्रकार ऐसे भी हैं जो ना तो इतने ऊंचे पदों पर हैं और ना मशहूर हैं. कइयों ने ना कभी कश्मीर में मिलिटेंसी के बारे में लिखा, न सेना के बारे में और ना राजनीति के बारे में.
इंटरनेट बंद करने की आड़ में सरकारें क्या-क्या करती हैं?
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अपना नाम ना बताने की शर्त पर एक कश्मीरी पत्रकार ने डीडब्ल्यू को बताया कि मुमकिन है कि मुख्य सम्पादकों के अलावा अन्य पत्रकारों को भी निशाना बनाने के पीछे आतंकी संगठन का उद्देश्य इन अखबारों को पूरी तरह से अपंग कर देना हो.
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मीडिया का बुरा हाल
उन्होंने यह भी बताया कि कश्मीर में 2019 में की गई पूरी कार्रवाई के बाद से यहां के दो प्रमुख अखबार पूरी तरह से खुफिया एजेंसियों के नियंत्रणमें हैं.
इन अखबारों को बड़ी मात्रा में सरकारी विज्ञापन मिलते हैं, ये लगभग पूरी तरह से सरकार के पक्ष को छापते हैं और आलोचना के स्वरों को जगह नहीं देते हैं. इनके मालिकों और मुख्य सम्पादकों को भारी सुरक्षा भी मिली हुई है.
ये धमकियां इस बात का संकेत हैं कि टीआरएफ जैसे आतंकी संगठनों ने अब इन अखबारों और इनके लिए काम करने वालों को निशाना बनाना शुरू किया है. इससे कश्मीर के पत्रकारों की चुनौतियों की लंबी सूची में एक चुनौती और जुड़ गई है.
पत्रकार अभी तक पुलिस और अन्य सुरक्षाबलों के दबावका सामना कर रह थे, लेकिन अब उन्हें आतंकवादी संगठनों के निशाने पर होने का डर भी सताने लगा है. पत्रकार इसलिए भी डरे हुए हैं क्योंकि ये धमकियां हमेशा खाली साबित नहीं होती हैं.
जून 2018 में राइजिंग कश्मीर के संस्थापक संपादक की श्रीनगर में उनके दफ्तार के बाहर ही गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. जम्मू और कश्मीर पुलिस का कहना था कि हत्या के पीछे लश्कर-ए-तय्यबा का हाथ था.
कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.