धरती पर मनुष्य की औसत आयु 71.4 वर्ष है. कुछ जगहों पर लोग ज्यादा जीते हैं, कुछ पर कम. लेकिन दुनिया में पांच जगह ऐसी हैं जहां के लोगों की आयु अचंभित करती है.
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94 साल की उम्र में सातोर नीनो लोपेज हर दिन चार किलोमीटर पैदल चलते हैं. सुबह जल्दी उठ कर वह जलावन के लिए लकड़ियां भी काट लेते हैं. कोस्टा रिका का निकोया प्रायद्वीप धरती की उन जगहों में से एक है जहां सबसे लंबी आयु जीने वाले लोग रहते हैं.
सातोर नीनो कोस्टा रिका के उन 1,010 लोगों में हैं जिनकी आयु 90 साल से ज्यादा है. ये लोग कहीं और से यहां नहीं आए हैं बल्कि हमेशा से यहीं रहे हैं. सातोर बताते हैं, "मेरी उम्र में मैं अच्छा महसूस करता हूं क्योंकि ईश्वर ने मुझे शांति से चलने की शक्ति दी है. मैं एक या चार किलोमीटर तक जाकर वापस लौट सकता हूं, कोई समस्या नहीं है.”
प्रकृति की गोद में
सातोर का घर प्रकृति की गोद में है. लकड़ी की इमारत में कंक्रीट कम मिट्टी और दूसरी चीजें ज्यादा हैं. चारों तरफ हरियाली है और चिड़ियों की चहक का संगीत भी. कोरोना के दौर में भी यहां न तो कोई बदहवासी थी ना कोई परेशानी नहीं.
100 साल के पार जिंदगी
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20वीं सदी के आखिर में डेमोग्राफर मिशेल पाउलन और फिजिशन जॉनी पेस ने नक्शे पर नीली स्याही से इटली के सारडीनिया को चिन्हित किया. उन्होंने देखा कि यहां की आबादी काफी लम्बा जीती है. 2005 में अमेरिका के डैन गोअर्टनर ने पता लगाया कि कैलिफॉर्निया के लोमा लिंडा, ग्रीस के इकेरिया, जापान के ओकिनावा और कोस्टा रिका के निकोया में भी यही खासियत है. इन्हीं जगहों को ब्लू जोन नाम दिया गया.
निकोया में लोग सुबह में चावल और बीन्स खाते हैं. बाद में थोड़े से मांस, फल और आवाकाडो की बारी आती है. यहां का खाना यही है.
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राज क्या है?
सातोर नीनो के पड़ोस में ही 91 साल की क्लेमेंटीना रहती हैं. उनके पति और ऑगस्टीन सौ साल के हैं. क्लेमेंटीना के 18 बच्चे हुए जिनमें से 12 जिंदा हैं. छोटे-छोटे कदमों से चलकर वह मुर्गियों को दाना डालती हैं, किचन में बर्तन धोती हैं और खाना पकाती हैं. इस उम्र में भी उनकी ऊर्जा कोस्टा रिका के 80 साल और बाकी दुनिया के 72 साल के इंसान जितनी है. आखिर इसका राज क्या है?
क्लेमेंटीना बताती हैं, "गांव में आप ज्यादा शांति से रहते हैं. शहरों की तरह नहीं जहां आपको बहुत सावधान रहना पड़ता है. गांव के लोग ज्यादा शांति से जीते हैं और आपके लिए उतना खतरा नहीं होता."
जीवन में लक्ष्यों को बनाए रखना उन्हें सेहतमंद बनाता है. इन लोगों की मदद के लिए एक सपोर्ट सिस्टम भी है. ये लोग मेहनत करते हैं, खुद से उगाया खाना खाते हैं और तनाव को दूर रखते हैं.
बदल रहा है जीवन
यहीं पर जोश विलेगास का भी घर है. अगले साल मई में वह 105 साल के होंगे और उनकी हसरत है इस मौके पर घोड़े की सवारी करना. हालांकि विलेगास मानते हैं कि उनके आसपास भी चीजें बदल रही हैं.
वह कहते हैं, "जीने का तरीका बदल गया है. अब वो पहले जैसा नहीं रहा. लोग पहले एक दूसरे से प्यार करते थे, मदद करते थे. ज्यादा भाईचारा था.”
जानकार बताते हैं कि ब्लू जोन आने वाले कुछ और सालों तक बढ़ते रहेंगे लेकिन ये 20-30 साल से ज्यादा नहीं टिक पाएंगे. धीरे-धीरे इन इलाकों के लोग भी अपने उगाएं खाने से दूर हो रहे हैं. मोटापा और शुगर जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं. आखिर ये इलाके दुनिया भर में हो रहे बदलावों से खुद को कब तक बचा पाएंगे!
रिपोर्टः निखिल रंजन
प्रकृति को छेड़ अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता इंसान
प्रकृति की मदद कर इंसान, मानव सभ्यता की कई गलतियां सुधार सकता है. वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो गया है कि इंसानी गलतियों का हम पर किस हद तक बुरा असर पड़ रहा है.
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स्वच्छ ऊर्जा यानी स्वच्छ हवा
वायु प्रदूषण हर साल करीब 42 लाख लोगों की जान लेता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह लंग कैंसर और दिल की कई बीमारियों के लिए जिम्मेदार है. वायु प्रदूषण के लिए जीवाश्म ईंधन से चलने वाली मशीनें और कचरा सबसे ज्यादा जिम्मेदार है. ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत इंसान और पृथ्वी की सेहत बेहतर कर सकते हैं.
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सीओटू और कुपोषण का रिश्ता
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने से सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग पर ही असर नहीं पड़ेगा बल्कि हमारा भोजन भी पौष्टिक होगा. पौधे जब ज्यादा सीओटू सोखते हैं तो वे प्रोटीन, जिंक और आयरन जैसे पोषक तत्व भी कम बनाते हैं. इन पौष्टिक तत्वों की कमी बच्चों की सेहत के लिए काफी नुकसानदेह है. अगर सीओटू का स्तर इसी तरह बढ़ता रहा तो हमारा भोजन कम पौष्टिक होता चला जाएगा.
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जैव विविधता का विघटन
पौधों और जीवों की कई प्रजातियां रिकॉर्ड तेजी से खत्म हो रही हैं. लेकिन ये प्रजातियां इंसान तक पहुंचने वाले इकोसिस्टम में अहम भूमिका निभाती हैं. हम तक पहुंचने वाला भोजन, पानी और प्राकृतिक दवाएं ऐसे ही इकोसिस्टमों से गुजरती हुई हम तक पहुंचती हैं. इन इकोसिस्टमों का बचाव इंसान के ही हित में हैं.
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साफ परिवहन यानी अच्छी सेहत
दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी शहरों में रहती है और ये संख्या बढ़ती जा रही है. शहरी आबादी ट्रैफिक से हो रहे वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण को झेल रही है. ट्रेनों और साइकिलों का ज्यादा इस्तेमाल करने के साथ साथ फुटपाथों की संख्या भी बढ़ानी होगी. ऐसा हुआ तो दुर्घटनाएं भी कम होंगी और लोग भी तंदुरुस्त रहेंगे.
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हरियाली की हिफाजत
पैदावार बढ़ाने के लिए जंगलों का सफाया करते करते आज मिट्टी की उर्वरता काफी गिर चुकी हैं. जंगलों से हो रही छेड़छाड़ के कारण ही नए नए वायरसों का खतरा बढ़ चुका है. कृषि और औद्योगिक पशुपालन में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशकों की वजह से मिट्टी, पानी और हवा दूषित हो रहे हैं. लिहाजा संरक्षित इलाकों का दायरा लगातार बढ़ाने की जरूरत है.
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मौसम का विनाशकारी रूप
ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मौसम दुश्वार होता जा रहा है. बीते दो दशकों में बेहद ताकतवर तूफानों, जंगलों की आग, बाढ़ और गंभीर सूखे के मामलों में रिकॉर्ड तेजी आई है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक मौसमी आपदाओं के कारण हर साल दुनिया भर में 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा रहे हैं. ज्यादातर मौतें विकासशील देशों में हो रही हैं. वैश्विक तापमान जितना बढ़ेगा, इन आपदाओं में उतनी ही वृद्धि होगी.
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हालात बेकाबू होने से पहले
पर्यावरण की दुर्दशा अगर यूं ही जारी रही तो इंसानी संघर्ष भी बढ़ेंगे. लाखों-करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ सकता है. इसका असर पूरी मानव सभ्यता पर पड़ेगा. इसीलिए जलवायु परिवर्तन से लड़ते हुए पर्यावरण को फिर से सेहतमंद बनाने में ही मानवता का हित छुपा है. (रिपोर्ट: जेनिफर कॉलिन्स/ओएसजे)