अफ्रीकी महाद्वीप में बीते 20 वर्षों के दौरान युद्ध और संघर्षों के कारण 50 लाख बच्चों की जानें गई हैं.
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साल 1995 से 2015 के बीच हुए संघर्षों में मरने वाले इन अफ्रीकी बच्चों में करीब 30 लाख की उम्र 1 साल या उससे भी कम थी. यह बात एक नई स्टडी में सामने आई है. स्टडी के मुताबिक अफ्रीका में पिछले 20 वर्षों में हुए युद्धों में करीब 50 लाख अफ्रीकी बच्चे मारे गए हैं. यह शोध 'द लैंसेट मेडिकल' जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
अध्ययन के मुताबिक, बच्चों की मौत जिन बीमारियों से हुईं, उन्हें रोका जा सकता था. लेकिन युद्ध की वजह से बच्चों को पीने का साफ पानी और स्वास्थ्य की मूल सुविधाएं नहीं मिल सकीं. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता इरान बेनडेविड का कहना है, ''युद्ध का नतीजा घातक होता है, लेकिन इसके कई परोक्ष परिणाम भी सामने आते हैं. इनमें बीमारियां, कुपोषण, साफ पानी ना मिलना, साफ-सफाई की कमी और मां की देखभाल ना मिल पाना शामिल हैं.''
इस शोध में 34 अफ्रीकी देशों में पिछले 20 वर्षों में हुए 15,500 संकटों और संघर्षों की पड़ताल की गई. इस दौरान लड़ाइयों की वजह से हुई मौतों, बाल जन्म और मृत्यु दर के आंकड़े जुटाए गए. स्टडी बताती है कि लड़ाइयों का बाल मृत्यु दर पर सीधा असर पड़ता है. मारे कुल बच्चों में से 7 फीसदी की मौत की वजह लड़ाइयां रहीं.
युद्धस्थल या संघर्ष क्षेत्र के करीब 50 किलोमीटर के दायरे में पैदा होने वाले बच्चों पर शुरुआती सालों में ही मारे जाने का खतरा सबसे ज्यादा पाया गया. 100 किलोमीटर के दायरे में पैदा होने वाले बच्चे भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं कहे जा सकते. यही नहीं, संघर्ष के 8 साल बाद तक पैदा होने वाले बच्चों पर भी मौत का संकट मंडराता रहता है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि संघर्ष के दौरान अगर हिंसा बढ़ जाए तो नवजातों में मौत का जोखिम करीब 30 फीसदी तक बढ़ जाता था. पांच साल या उससे ज्यादा समय तक चलने वाले संघर्ष के इलाकों में शिशु मृत्यु दर करीब चार गुनी देखी गई.
बेनडेविड कहते हैं, ''संघर्ष की वजह से बच्चों में मौत का संकट बढ़ जाता है और यह संघर्ष खत्म होने के बाद भी चलता रहा है.'' शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि इस पड़ताल से बच्चों की मौत को रोकने के उपाय किए जाएंगे और संघर्ष वाले क्षेत्रों में दखल देकर बच्चों के स्वास्थ्य पर काम किया जाएगा.
वीसी/एके (रॉयटर्स, एएफपी)
बच्चों पर सबसे भारी पड़ता है युद्ध
बच्चों पर सबसे भारी पड़ता है युद्ध
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक यमन में कम से कम 1.4 करोड़ लोगों को खाने की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है और इसमें 3.7 लाख बच्चे बेहद मुश्किल हाल में है.
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भूख की मार
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि यमन में जंग के कारण पांच लाख बच्चों को खाने की कमी झेलनी पड़ रही है जबकि 3.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से भूखमरी के शिकार हैं.
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जान पर बनी
आहार का संकट झेल रहे बच्चों की उम्र पांच साल से भी कम है जबकि इनमें से दो तिहाई बच्चे ऐसे हैं जिन तक तुरंत मदद पहुंचाए जाने की जरूरत है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ये बच्चे इस कदर बीमार हो चुके हैं कि इनकी जान खतरे में आ गई है.
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हड्डियों का ढांचा
यमन में 2015 के मुकाबले 2016 में खाने की कमी झेल रहे बच्चों की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. ज्यादातर बच्चों का वजन उनकी कद काठी के हिसाब से कम है और इसीलिए वे हड्डियों का ढांचा नजर आते हैं.
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डेढ़ करोड़ प्रभावित
संयुक्त राष्ट्र के नए आंकड़ों के अनुसार यमन की आधी आबादी खाने का संकट झेल रही है और यह तादाद लगभग 1.4 करोड़ बनती है. इन प्रभावित लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव भी झेलना पड़ रहा है.
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बीमारियों का खतरा
जंग से जूझ रहे इस देश में हैजे जैसी बीमारियां भी फैल रही हैं. सिर्फ अदन शहर में हैजे के 190 मरीजों को अस्पताल लाया गया है.
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सूखे का गणित
यमन के कई इलाकों में सूखे का खतरा पैदा हो रहा है. सूखे का एलान तब किया जाता है जब किसी इलाके के तीस प्रतिशत परिवारों के सामने खाने का संकट हो और प्रति 10 हजार लोगों में हर दिन दो मौतें या प्रति 10 हजार बच्चों में हर दिन चार मौतें होने लगें.
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आयात पर निर्भरता
खाद्य सामग्री और दवाओं के लिए यमन ज्यादातर आयात पर निर्भर है, लेकिन देश में जारी लड़ाई की वजह से बाहर से जहाज ना के बराबर आ रहे हैं जिससे देश की अस्सी फीसदी आबादी को किसी न किसी रूप में जरूरी सामानों की कमी झेलनी पड़ रही है.
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یمن کا اقتصادی ڈھانچہ درہم برہم ہو چکا ہے۔ بینکاری کا شعبہ بھی سخت متاثر ہوا ہے۔ تجارتی حلقوں کے مطابق دو سو ملین ڈالر سے زیادہ رقم بینکوں میں پھنسی ہوئی ہے، جس کی وجہ سے درآمد کنندگان اَشیائے خوراک بالخصوص گندم اور آٹے کا نیا سٹاک منگوا نہیں پا رہے۔
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अर्थव्यवस्था ठप
यमन की आर्थिक व्यवस्था अस्त व्यस्त हो चुकी है. बैंकिंग प्रणाली पर भी बहुत असर हुआ है. जानकारों का कहना है कि 20 करोड़ डॉलर की रकम बैंकों में फंसी हुई है जिसके चलते अनाज और आटे का नया स्टॉक मंगाने में भी दिक्कतें आ रही हैं.