5700 साल पुराने च्युइंग गम से निकला इंसान का डीएनए
१८ दिसम्बर २०१९
डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने 5700 साल से ज्यादा पुराने एक भोजपत्र के पेड़ की राल के नमूने से इंसान का पूरा डीएनए तैयार करने में कामयाबी पाई है. इसकी मदद से वैज्ञानिक कई अहम जानकारियां निकालने में सफल रहे हैं.
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भोजपत्र के पेड़ की चिपचिपी राल का इस्तेमाल उस दौर में शायद च्युइंग गम जैसी किसी चीज के लिए होता था. पाषाण युग के इस नमूने की मदद से वैज्ञानिकों ने यह पता लगा लिया है कि उस मानव का लिंग क्या था और उसने आखिरी बार क्या खाया था. इसके साथ ही यह भी पता लगा लिया गया है कि उस इंसान के मुंह में किस तरह के कीटाणु मौजूद थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि वह एक महिला थी जिसके बाल काले, त्वचा काली और आंखें नीली थीं. जेनेटिक रूप से वह महिला यूरोप के शिकारी खानाबदोशों के बेहद करीब थी जो उस वक्त मध्य स्कैंडिनेविया में रहते थे.
कोपेनहेगेन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर हानेस श्रोएडर ने बताया, "पहली बार किसी प्राचीन मनुष्य का संपूर्ण जीनोम, इंसानी हड्डियों के बगैर ही निकालने में सफलता मिली है." इस बारे में नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में रिपोर्ट छपी है. श्रोएडर इस रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक हैं.
मिला 5,60,000 साल पुराना दांत
फ्रांस में पुरातत्व विज्ञान के दो छात्रों ने एक ऐसा इंसानी दांत खोज निकाला है जिसकी उम्र पांच लाख साठ हजार साल बताई जा रही है. यह फ्रांस में मिला अब तक का सबसे पुराना मानव अवशेष है.
तस्वीर: Fotolia/Andreas Wolf
खोजने वाले चेहरे
फ्रांस के दक्षिण पश्चिम इलाके में स्थित तूतावेल में पिछले पचास सालों से खुदाई का काम चल रहा है. यह यूरोप के सबसे अहम पुरातात्विक स्थलों में से एक है. इस जगह पर जीवाश्म विशेषज्ञों की निगरानी में करीब 40 वॉलंटियर काम कर रहे हैं. बीते सप्ताह इन में से दो वैलेंटीन लोएशर (बाएं) और कैमील जाकी ने यह दांत खोज निकाला.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Dainat
मिसिंग लिंक
जीवाश्मविज्ञानी टोनी शेवालिएर ने इसे एक बड़ी खोज बताते हुए कहा है कि इस दांत के जरिए "मिसिंग लिंक" का पता लगाया जा सकेगा. उन्होंने बताया कि स्पेन और जर्मनी में मिले मानव अवशेषों से इसकी तुलना की जाएगी. पिछले एक हफ्ते से दांत पर कई तरह के टेस्ट कर उसकी उम्र निर्धारित की गयी है. इसे होमो हाइडलबेरगेनसिस का दांत बताया जा रहा है.
तस्वीर: Denis Daina/Epcc-Cerp Tauvate
कैसे रहते थे
शेवालिएर बताते हैं, "हमारा मानना है कि इस इलाके में रहने वाले इंसानों ने ज्यादा समय गुफाओं में ही बिताया. वे बाहर जाते भी थे, तो दोबारा गुफा में लौट आते थे क्योंकि यह इलाका बहुत ठंडा हुआ करता था, यहां खुला मैदान था, कोई पेड़ नहीं थे, लंबे समय तक बर्फ भी रहती थी." तस्वीर में करीब तीन लाख साल पहले धरती पर रहने वाले निएंडरथाल का एक मॉडल.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
साढ़े चार लाख साल पुरानी
तूतावेल पुरातत्व के लिहाज से अहम जगह है क्योंकि यहां आदिमानव समेत कई पुराने जानवरों के भी अवशेष मिलते रहे हैं, जिसमें घोड़े, भैंस और बारहसिंगे शामिल हैं. 70 के दशक में यहां 4,50,000 साल पुरानी इंसानी खोपड़ी मिली, जिसे तूतावेल मैन का नाम दिया गया. तस्वीर में ब्रेमेन के म्यूजियम में रखी निएंडरथाल की खोपड़ी (बाएं).
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जगह जगह खुदाई
तूतावेल में चल रही खुदाई के प्रमुख क्रिस्टियान पेरेनू ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि उनकी टीम और भी मानव अवशेष ढूंढ निकालेगी. उन्होंने कहा, "हमारा काम है यह पता लगाना कि 5,60,000 साल पहले जीवन कैसा था." जर्मनी और इंग्लैंड में भी इस तरह की खुदाई चल रही है. तस्वीर में जर्मनी के पोट्सडम में खुदाई करती एवेलिन श्टेफेंस.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
क्या खाते थे
फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि यह दांत महिला का है या पुरुष का. लेकिन दांत के मैल की जांच कर पता लगाया जाएगा कि उस जमाने में इंसानों का आहार क्या था. तूतावेल में इससे पहले आदिमानव द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कई तरह के औजार भी मिले हैं. इससे उनके शिकार करने के तरीकों पर जानकारी मिल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kalaene
डायनासोर भी
इस तरह की खुदाई के दौरान केवल इंसानों के ही नहीं, डायनासोर जैसे विशालकाय जानवरों के भी जीवाश्म मिलते हैं, जैसा कि 2005 में अर्जेंटीना में हुआ. यह तस्वीर टायटैनोसोरस की है, जिसका आकार दस मीटर और वजन बारह टन आंका गया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Gonzalez Riga
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वैज्ञानिकों को यह नमूना दक्षिणी डेनमार्क के सिल्थोल्म में एक पुरातात्विक खुदाई के दौरान मिली. रिपोर्ट के लेखकों में शामिल तेहिस जेनसेन ने बताया, "सिल्थोल्म बिल्कुल अनोखा है. सब कुछ कीचड़ में लिपटा हुआ है. इसका मतलब है कि कार्बनिक अवशेषों का संरक्षण बहुत बढ़िया हुआ है."
रिसर्चरों ने कुछ जीवों और पौधों के डीएनए के अंश भी खोज निकाले हैं. इनमें हेजेल नट (एक तरह का मेवा) और बत्तख भी शामिल हैं. वैज्ञानिक पहले से ही यहां इंसानों के रहने की बात करते रहे हैं, इन खोजों से इस बात की पुष्टि हो गई है. हालांकि वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं जान सके हैं कि भोजपत्र की राल को उस वक्त लोग क्यों चबाते थे. क्या इसे गोंद बनाने के लिए ऐसा किया जाता था या फिर दातों को साफ करने के लिए या फिर यह बस एक तरह का च्युइंग गम भर था.