महाराष्ट्र सरकार ने माना है कि राज्य में पिछले तीन सालों में कुपोषण से 6,852 बच्चों की मौत हो गई. इनमें से कम से कम 601 बच्चे ऐसे थे जिन्हें जन्म देते समय उनकी माएं नाबालिग थीं.
फाइल तस्वीरतस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
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ये आंकड़े राज्य सरकार द्वारा बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर बनाई गई एक रिपोर्ट में सामने आए हैं. अदालत ने मार्च में जिला कलेक्टरों और जिला मजिस्ट्रेटों को सर्वे कर राज्य में ऐसे इलाकों को चिन्हित करने का आदेश दिया था जहां आज भी बाल विवाह कराए जाते हैं.
2019 से लेकर 2022 तक राज्य के 16 आदिवासी जिलों में सर्वे कर इन आंकड़ों को इकट्ठा किया गया. सर्वे आंगनवाड़ी सेविकाओं और आशा सेविकाओं ने किए. रिपोर्ट में जो हकीकत सामने आई है वो दिखाती है कि बाल विवाह और कुपोषण जैसी समस्याएं आज भी भारत में विकराल रूप में मौजूद हैं.
राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि राज्य में बाल विवाह और कुपोषण के आंकड़ों का पता लगाने के लिए पहले कुपोषित बच्चों की जानकारी इकट्ठा की गई और फिर उनके माता पिता का पता लगाया गया. उद्देश्य यह पता लगाना था कि कितनी माएं नाबालिग यानी 18 साल से कम उम्र की थी.
भारत कुपोषण को जड़ से मिटा नहीं पा रहा हैतस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images
रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन सालों में कुल 1,33,863 आदिवासी परिवारों में 15,253 बाल विवाह हुए हैं. सर्वे में 1.36 लाख से भी ज्यादा बच्चे कुपोषित पाए गए, जिनमें से 14,000 से भी ज्यादा बच्चों की माएं नाबालिग थीं.
इन 1.36 लाख बच्चों में से कुल 26,059 बच्चे कुपोषण से बुरी तरह से प्रभावित पाए गए जिनमें से 3,000 की माएं नाबालिग थीं. नांदरबार जिले में कुपोषण की वजह से सबसे ज्यादा बच्चों की मौत हो गई (1,270). नाशिक में 1,050 बच्चे और पालघर में 810 बच्चे कुपोषण से मर गए.
राज्य सरकार ने यह भी बताया कि कई मामलों में सरकारी अधिकारी समय रहते हस्तक्षेप करने में सफल हुए, जिसके फलस्वरूप इन तीन सालों में 1,541 बाल विवाह रोके जा सके. लेकिन अदालत ने इतनी बड़ी संख्या में हो रहे बाल विवाह के मामलों पर गहरी चिंता जताई और आंकड़ों को 'दिमाग चकरा देने वाला' बताया.
बाल विवाह का कुपोषण से सीधा संबंध सामने आया हैतस्वीर: Noah Seelam/AFP/Getty Images
अदालत ने आदिवासियों को सलाह भी दी कि यहां लोगों के स्वास्थ्य का प्रश्न है और ऐसे में उन्हें अपनी प्रथाओं और परंपराओं को त्याग देना चाहिए. राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि वो ऐसे मामलों में बल का प्रयोग नहीं कर सकती है लेकिन बुजुर्ग आदिवासियों को समझा कर उनसे अपील कर सकती हो.
सरकार ने यह भी कहा कि इसमें उसे एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद की जरूरत होगी. अदालत मामले में आगे सुनवाई 20 जून को करेगी.
क्या है बाल विवाह की कीमत
कम उम्र में बच्चों की शादी की कुप्रथा के कारण बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास ही प्रभावित नहीं होता बल्कि इससे पूरे समाज और देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ता है. देखिए समाज को कितना महंगा पड़ता है बाल विवाह.
घट सकती है गरीबी
भारत जैसे विकासशील देशों को बाल विवाह के कारण सन 2030 तक कई खरब डॉलर का नुकसान उठाना होगा. विश्व बैंक के अनुसार, यह कुप्रथा गरीबी मिटाने के वैश्विक प्रयासों की राह में एक बहुत बड़ी रुकावट है. केवल इसे रोकने भर से राष्ट्रीय आय में औसतन एक फीसदी की बढ़ोत्तरी हो सकती है.
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हर 2 सेकंड में, 1 बालिका वधू
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के अनुसार, हर साल 1.5 करोड़ लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में हो रही है. यानि हर दो सेकंड में एक नाबालिग लड़की की शादी होती है. नाइजर में 77 फीसदी जबकि बांग्लादेश में 59 फीसदी है बाल विवाह का आंकड़ा.
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सुधरेगा लड़की का जीवन
बाल विवाह पर रोक से तेजी से हो रही जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने में मदद मिलेगी. इससे लड़कियों का स्कूल छूटने में कमी आयेगी और उनकी कमाई के स्तर में भी सुधार आ सकता है. बाल विवाह के कारण महिलाओं की आय औसतन 9 फीसदी कम हो जाती है.
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काफी नहीं है गिरावट
जागरुकता और सक्रिय प्रयासों के चलते विश्व भर में बाल विवाह की दर में कमी तो आयी है. लेकिन चूंकि जनसंख्या उससे भी ज्यादा तेज दर से बढ़ती जा रही है, इसलिए बाल वधुओं की संख्या भी बढ़ी है. जनसंख्या दर में कमी आने से देश के शिक्षा बजट में भी 5 फीसदी से अधिक की बचत होगी.
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बच्चों की पैदाइश
जिन महिलाओं की शादी जल्दी होती है उनके बच्चे भी जल्दी पैदा होने की संभावना रहती है. बांग्लादेश का उदाहरण लें, तो केवल बाल विवाह रोकने भर से देश की प्रजनन दर 18 फीसदी कम की जा सकती है.
कम जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध विकासशील और गरीब देशों की जीडीपी में बढ़ोत्तरी और समृद्धि से पाया गया है. अगर 2015 में बाल विवाह रुक गया होता, तो नेपाल जैसे देश को हर साल करीब एक अरब डॉलर की बचत होती.
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बाल मृत्युदर और विकास
कम उम्र की मांओं के बच्चों में कुपोषण के कारण जान जाने या विकास बाधित होने का खतरा कहीं ज्यादा होता है. 5 साल से कम उम्र में मरने वाले हर 100 में से तीन बच्चों की मांएं कम उम्र की होती हैं. अगर इस आयु वर्ग के बच्चों को बचाया जा सके तो 2030 तक पूरे विश्व को इससे सालाना 98 अरब डॉलर का फायदा होगा. (ऋतिका पाण्डेय)