एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नॉर्गे ने 70 साल पहले पहली बार माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच कर हजारों पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा को जन्म दिया. लेकिन क्या क्या बदल गया है इन 70 सालों में और अब कैसे हैं हालात?
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आठ दिनों तक चल कर एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचना ही नेपाल में सबसे लोकप्रिय हाइकों में से है. हर साल हजारों लोग यह यात्रा पूरी करते हैं. 1953 में जब वह अंग्रेजी अभियान दल यहां से गुजरा था तो उस समय यहां जो छोटे छोटे गांव थे वो अब पर्यटन के केंद्र बन चुके हैं.
यहां होटल, चाय की दुकानें और पर्वतारोहण के सामान की दुकानें भी हैं, जिन्होंने स्थानीय लोगों को आजीविका के भी और अवसर दिए हैं. कई घरों में तो तीन पीढ़ियों को पर्वतारोहण की वजह से रोजगार मिला है, जो खेती या याक चराने से कहीं ज्यादा लाभदायक अवसर है.
शेरपाओं की जीवन शैली में सुधार
यह काम खतरनाक तो है, लेकिन करीब तीन महीनों तक चलने वाले चढ़ाई के मौसम में एक तजुर्बेकार गाइड 10,000 डॉलर तक कमा सकता है. यह देश में औसत सालाना आय से कई गुना ज्यादा है.
कई शेरपा और हिमालयी समुदाय के सदस्यों ने यहां रेस्तरां और गेस्टहाउस भी खोल दिए हैं. अनुभवी पहाड़ी गाइड फुरबा ताशी शेरपा का जन्म बेस कैंप से करीब 10 किलोमीटर दूर बसे गांव खुम्जुंग में हुआ था. वो इसी गांव में पीला-बढ़े भी.
वो अपने पिता और चाचाओं को काम के लिए पहाड़ों पर जाते देखते देखते बड़े हुए और जल्द ही वो उनके साथ अभियानों पर जाने लगे. वो खुद सेवानिवृत्त होने से पहले कुल 21 बार एवरेस्ट पर चढ़े.
ताशी शेरपा बताते हैं, "पहले सिर्फ कुछ ही अभियान जाया करते थे लेकिन अब तो हर साल इतने सारे होते हैं. इससे लोगों की आय बढ़ी है. इससे यहां लोगों को अपनी जीवन शैली में सुधार लाने में मदद मिली है. बहुत कुछ बदला है."
1920 के दशक में जब से सबसे पहली अंग्रेजी टीमों ने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने की कोशिश शुरू की, नेपाली पर्वतारोही उनके साथ रहे हैं. इनमें से अधिकांश शेरपा समूह से आते हैं.
धीरे धीरे "शेरपा" ऊंचे पर्वतों पर गाइड का दूसरा नाम ही बन गया और से शेरपा सामान, खाना, रस्सियों, सीढ़ियों आदि को लादे बड़े जोखिम उठाते हुए इस करोड़ों डॉलरों के उद्योग की रीढ़ बन गए.
पहाड़ों का तोहफा
आजकल विदेशी एजेंसियों के लिए काम करने की जगह स्थानीय अभियान दल अधिकांश ग्राहकों को नेपाल लाते हैं. और नेपाली पर्वतारोहियों की युवा पीढ़ी को धीरे धीरे मान्यता मिल रही है.
माउंट एवरेस्ट को फिर से नाप रहा है चीन
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मशहूर इतालवी पर्वतारोही राइनहोल्ड मेस्नर ने 2021 में एएफपी को एक साक्षात्कार में बताया था कि शेरपा पूरी तरह से इस तरक्की के हकदार थे. उन्होंने कहा था, "यह एक एवोल्यूशन है. और यह देश की भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है."
पर्यटन लेखक लीसा चोग्याल कहती हैं कि एवरेस्ट की पहली चढ़ाई ने एक गंतव्य के रूप में नेपाल की ब्रांडिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनके मुताबिक, "कोविड, कई भूकंप, इंसर्जेन्सी और दूसरे सभी झटकों के बीच पर्वतारोहण हमेशा बना रहा."
अकेले खुम्भू इलाके में हर साल 50,000 से ज्यादा ट्रेकर आते हैं. स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष मिंग्मा छिरी शेरपा कहते हैं, "यह पहाड़ों का दिया तोहफा है और इस इलाके को पर्यटन के लिए खोलने के लिए हमें पहली चढ़ाई का धन्यवाद देना चाहिए. उसकी वजह से यहां शिक्षा और आधुनिक सुविधाएं आईं."
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युवा शेरपाओं के पास विकल्प
जिस समुदाय के साथ उन्होंने काम किया उनकी मदद करने की लगन की वजह से हिलेरी ने खुम्जुंग में इस इलाके के पहले स्कूल का वित्त पोषण किया. कहा जाता है कि वो स्कूल के निर्माण में मदद करने के लिए लकड़ियां ढो कर यहां लाए थे.
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उसी स्कूल के पहले छात्रों में से हैं आंग सेरिंग शेरपा जो आज खुद एक अभियान कंपनी चलाते हैं. वो कहते हैं, "पर्वतारोहण की वजह से ही आज युवा शेरपाओं के पास उच्च शिक्षा है. इससे आर्थिक समृद्धि की एक लहर आई है."
नेपाल में 10 प्रतिशत से ज्यादा लोग पर्यटन में काम करते हैं और सरकार ने इस साल सिर्फ एवरेस्ट परमिट शुल्क में ही 50 लाख डॉलर से ज्यादा की कमाई की है. 30 साल के तेनजिंग चोग्याल शेरपा के दादा कांचा शेरपा 1953 वाले अभियान में शामिल थे.
तेनजिंग खुद एक ग्लेशियॉलॉजिस्ट हैं और उनका मानना है कि शिक्षा ने शेरपा युवाओं के लिए कई विकल्प खोल दिए. वो कहते हैं, "शेरपा अब डॉक्टर, इंजीनियर या व्यवसायी, जो चाहे वो बन सकते हैं. यह बहुत अच्छी बात है. और अगर पर्वतारोही बनना चाहें, तो वो भी बन सकते हैं."
सीके/एए (एएफपी)
सैलानियों की भीड़ के साथ बढ़ रहा है हिमालय में खतरा
अमेरिकी पर्वतारोही हिलेरी नेल्सन की मौत ने इस ओर ध्यान खींचा है कि हिमालय पर चढ़ाई गुजरे सालों में खतरनाक होती गई है. गाइड और एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा लोगों के यहां जाने को भी इसकी वजह बताते हैं.
अमेरिकी पर्वतारोही हिलेरी नेल्सन की मौत ने इस ओर ध्यान खींचा है कि हिमालय पर चढ़ाई गुजरे सालों में खतरनाक होती गई है. गाइड और एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा लोगों के यहां जाने को भी इसकी वजह बताते हैं.
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
हिलेरी नेल्सन की मौत
49 साल की नेल्सन मनासलू की 8,163 मीटर ऊंची चोटी के पास ही थीं कि फिसल गईं और उनकी जान चली गई. दुनिया की आठवीं सबसे ऊंची चोटी पर वो अपने पार्टनर के साथ स्की करते हुए नीचे आना चाहती थीं.
तस्वीर: Niranjan Shrestha/dpa/picture alliance
हिमालय की चोटियों के लिये मशहूर नेपाल
हिमालय की मशहूर चोटियों का घर नेपाल में है. 1950 से 2021 के बीच यहां कुल 1,042 लोगों की मौत हुई जिनमें से 405 तो इसी सदी में मरे. हिमालय की ज्यादातर चोटियों पर चढ़ाई का रास्ता नेपाल से हो कर जाता है. नेपाल के गाइड और पिट्ठुओं ने तो पर्वतों की चोटियों पर चढ़ाई के रिकॉर्ड बनाये हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/XinHua
जानलेवा हिमस्खलन
हिमालय के डाटाबेस के मुताबिक इनमें से एक तिहाई मौतों के पीछे हिमस्खलन जिम्मेदार था और एक तिहाई पर्वतारोही फिसल कर गिरने से मारे गये. इसके अलावा बहुत से लोगों की मौत माउंटेन सिकनेस और इसी तरह के दूसरी परेशानियों से हुई.
तस्वीर: Jogn Mcconnico/AP Photo/picture alliance
सबसे खतरनाक रास्ते
8,091 मीटर ऊंचा अन्नपूर्णा मासिफ इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक है. 1950 से अब तक 365 चढ़ाइयों में कुल 72 लोगों की मौत हुई है यानी हर पांच सफल अभियान के लिये एक आदमी ने जान गंवाई मौत. धौलागिरी और कंचनजंघा दोनों में मौत की दर 10 फीसदी है.
खड़ी ढाल वाले दर्रों और हिमस्खलनों ने पाकिस्तान के के2 को भी कुख्यात बना दिया है. 1947 से अब तक कम से कम 70 लोगों की मौत हुई है. सबसे ज्यादा मौत एवरेस्ट पर होती है लेकिन पर्वतारोहियों की ज्यादा संख्या के कारण मौत की दर 2.84 फीसदी है. 1950 से 2021 के बीच एवरेस्ट में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है.
तस्वीर: Pierre Carter/dpa/picture alliance
पिघलते ग्लेशियर
2019 की एक स्टडी में चेतावनी दी गई कि हिमालय के ग्लेशियर पिछली सदी की तुलना में दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं. इस साल एक स्टडी से पता ने चला कि एवरेस्ट की चोटी के पास मौजूद बर्फ 2000 साल पुरानी हैं. यानि ग्लेशियर को बनने में जितना समय लगा था उससे 80 गुना ज्यादा तेजी से यह पिघल रहा है.
तस्वीर: RTS
जलवायु परिवर्तन और मौत
जलवायु परिवर्तन और लोगों की मौत के संबंध के बारे में विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है लेकिन पर्वतारोहियों का कहना है कि हिम दरारें चौड़ी हो रही हैं, पहले जहां बर्फ होती थी वहां पानी बह रहा है और ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली झीलों की संख्या बढ़ रही है. इन सबके कारण खतरा बढ़ रहा है.
तस्वीर: Lakpa Sherpa/AFP/Getty Images
हिमस्खलनों का बढ़ता खतरा
ग्लेशियर अप्रत्याशित हो गये हैं जिससे हिमस्खलनों का खतरा बढ़ सकता है. 2014 में भारी संख्या में बर्फ और चट्टानों के सरकने से 16 नेपाली गाइडों की मौत हो गई. यह हादसा खुंभु आइसफॉल में हुआ और हिमालय में अब तक हुए सबसे बड़े हादसों में एक है.
तस्वीर: Christoph Mohr/picture alliance
बढ़ती भीड़ भी जिम्मेदार
विशेषज्ञों का कहना है कि मौत के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है कम अनुभवी और कम तैयारी के साथ यहां आ रहे पर्वतारोही सैलानी. रोमांच की चाहत में हर साल सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग नेपाल, पाकिस्तान और तिब्बत पहुंच रहे हैं. बढ़ती संख्या ने कंपनियों के बीच प्रतियोगिता बढ़ा दी है और इस चक्कर में सुरक्षा से समझौता हो रहा है.
तस्वीर: RTS
एवरेस्ट में ट्रैफिक जाम
नेपाल ने इस साल मनासलू की चोटी के लिए 404 और पाकिस्तान ने के2 के लिये 200 परमिट दिये ये दोनों संख्या सामान्य से दोगुनी हैं. 2019 में तो एवरेस्ट में ऐसी भीड़ पहुंची कि ट्रैफिक जाम लग गया और लोग जमाने वाली सर्दी में फंस गये. ऑक्सीजन का लेवल घटने से कई लोग रास्ते में ही बीमार हो गये. हर साल 11 में से कम से कम चार मौतों के लिये भीड़ जिम्मेदार होती है.
तस्वीर: Rizza Alee/AP/dpa/picture alliance
बचाव के उपाय
बहुत सी टूर कंपनियां ड्रोन का इस्तेमाल कर जोखिम का अंदाजा लगाती हैं, वो पर्वतारोहियों के वाइटल डाटा पर रियल टाइम में नजर रखती हैं और बहुत से पर्वतारोही तो जीपीएस ट्रैकर भी पहनते हैं. यात्रा का इंतजाम करने वालों ने ज्यादा ऑक्सीजन की व्यवस्था रखनी शुरू की है और मौसम समाचार की स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है. हालांकि इन सबके बावजूद खतरा बढ़ रहा है.