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एवरेस्ट की चढ़ाई के 70 साल: क्या बदला इन सालों में

२९ मई २०२३

एडमंड हिलेरी और शेरपा तेनजिंग नॉर्गे ने 70 साल पहले पहली बार माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच कर हजारों पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा को जन्म दिया. लेकिन क्या क्या बदल गया है इन 70 सालों में और अब कैसे हैं हालात?

माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्टतस्वीर: Radek Kucharski/Zoonar/picture alliance

आठ दिनों तक चल कर एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचना ही नेपाल में सबसे लोकप्रिय हाइकों में से है. हर साल हजारों लोग यह यात्रा पूरी करते हैं. 1953 में जब वह अंग्रेजी अभियान दल यहां से गुजरा था तो उस समय यहां जो छोटे छोटे गांव थे वो अब पर्यटन के केंद्र बन चुके हैं.

यहां होटल, चाय की दुकानें और पर्वतारोहण के सामान की दुकानें भी हैं, जिन्होंने स्थानीय लोगों को आजीविका के भी और अवसर दिए हैं. कई घरों में तो तीन पीढ़ियों को पर्वतारोहण की वजह से रोजगार मिला है, जो खेती या याक चराने से कहीं ज्यादा लाभदायक अवसर है.

शेरपाओं की जीवन शैली में सुधार

यह काम खतरनाक तो है, लेकिन करीब तीन महीनों तक चलने वाले चढ़ाई के मौसम में एक तजुर्बेकार गाइड 10,000 डॉलर तक कमा सकता है. यह देश में औसत सालाना आय से कई गुना ज्यादा है.

एवरेस्ट के कैंप फोर पर पर्वतारोहियों का सामान ढोने वालेतस्वीर: Phurba Tenjing Sherpa/epa/picture alliance/dpa

कई शेरपा और हिमालयी समुदाय के सदस्यों ने यहां रेस्तरां और गेस्टहाउस भी खोल दिए हैं. अनुभवी पहाड़ी गाइड फुरबा ताशी शेरपा का जन्म बेस कैंप से करीब 10 किलोमीटर दूर बसे गांव खुम्जुंग में हुआ था. वो इसी गांव में पीला-बढ़े भी.

वो अपने पिता और चाचाओं को काम के लिए पहाड़ों पर जाते देखते देखते बड़े हुए और जल्द ही वो उनके साथ अभियानों पर जाने लगे. वो खुद सेवानिवृत्त होने से पहले कुल 21 बार एवरेस्ट पर चढ़े.

ताशी शेरपा बताते हैं, "पहले सिर्फ कुछ ही अभियान जाया करते थे लेकिन अब तो हर साल इतने सारे होते हैं. इससे लोगों की आय बढ़ी है. इससे यहां लोगों को अपनी जीवन शैली में सुधार लाने में मदद मिली है. बहुत कुछ बदला है."

1920 के दशक में जब से सबसे पहली अंग्रेजी टीमों ने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने की कोशिश शुरू की, नेपाली पर्वतारोही उनके साथ रहे हैं. इनमें से अधिकांश शेरपा समूह से आते हैं.

धीरे धीरे "शेरपा" ऊंचे पर्वतों पर गाइड का दूसरा नाम ही बन गया और से शेरपा सामान, खाना, रस्सियों, सीढ़ियों आदि को लादे बड़े जोखिम उठाते हुए इस करोड़ों डॉलरों के उद्योग की रीढ़ बन गए.

पहाड़ों का तोहफा

आजकल विदेशी एजेंसियों के लिए काम करने की जगह स्थानीय अभियान दल अधिकांश ग्राहकों को नेपाल लाते हैं. और नेपाली पर्वतारोहियों की युवा पीढ़ी को धीरे धीरे मान्यता मिल रही है.

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मशहूर इतालवी पर्वतारोही राइनहोल्ड मेस्नर ने 2021 में एएफपी को एक साक्षात्कार में बताया था कि शेरपा पूरी तरह से इस तरक्की के हकदार थे. उन्होंने कहा था, "यह एक एवोल्यूशन है. और यह देश की भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है."

पर्यटन लेखक लीसा चोग्याल कहती हैं कि एवरेस्ट की पहली चढ़ाई ने एक गंतव्य के रूप में नेपाल की ब्रांडिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनके मुताबिक, "कोविड, कई भूकंप, इंसर्जेन्सी और दूसरे सभी झटकों के बीच पर्वतारोहण हमेशा बना रहा."

अकेले खुम्भू इलाके में हर साल 50,000 से ज्यादा ट्रेकर आते हैं. स्थानीय नगरपालिका के अध्यक्ष मिंग्मा छिरी शेरपा कहते हैं, "यह पहाड़ों का दिया तोहफा है और इस इलाके को पर्यटन के लिए खोलने के लिए हमें पहली चढ़ाई का धन्यवाद देना चाहिए. उसकी वजह से यहां शिक्षा और आधुनिक सुविधाएं आईं."

युवा शेरपाओं के पास विकल्प

जिस समुदाय के साथ उन्होंने काम किया उनकी मदद करने की लगन की वजह से हिलेरी ने खुम्जुंग में इस इलाके के पहले स्कूल का वित्त पोषण किया. कहा जाता है कि वो स्कूल के निर्माण में मदद करने के लिए लकड़ियां ढो कर यहां लाए थे.

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उसी स्कूल के पहले छात्रों में से हैं आंग सेरिंग शेरपा जो आज खुद एक अभियान कंपनी चलाते हैं. वो कहते हैं, "पर्वतारोहण की वजह से ही आज युवा शेरपाओं के पास उच्च शिक्षा है. इससे आर्थिक समृद्धि की एक लहर आई है."

नेपाल में 10 प्रतिशत से ज्यादा लोग पर्यटन में काम करते हैं और सरकार ने इस साल सिर्फ एवरेस्ट परमिट शुल्क में ही 50 लाख डॉलर से ज्यादा की कमाई की है. 30 साल के तेनजिंग चोग्याल शेरपा के दादा कांचा शेरपा 1953 वाले अभियान में शामिल थे.

तेनजिंग खुद एक ग्लेशियॉलॉजिस्ट हैं और उनका मानना है कि शिक्षा ने शेरपा युवाओं के लिए कई विकल्प खोल दिए. वो कहते हैं, "शेरपा अब डॉक्टर, इंजीनियर या व्यवसायी, जो चाहे वो बन सकते हैं. यह बहुत अच्छी बात है. और अगर पर्वतारोही बनना चाहें, तो वो भी बन सकते हैं."

सीके/एए (एएफपी)

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