ध्रुवों पर अधिकतर महिलाओं के अनुभव खराब रहेः रिपोर्ट
विवेक कुमार
१३ जून २०२४
आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में काम करने वाली अधिकतर महिलाओं ने कहा है कि उनके अनुभव खराब रहे. लिंगभेद से लेकर जरूरी सुविधाओं की कमी तक उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा.
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आर्कटिक और अंटार्कटिक जैसे दुरूह क्षेत्रों में काम करना अपने आप में एक चुनौती है. इसके ऊपर महिलाओं को इसलिए अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे महिलाएं हैं. एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 79 फीसदी महिलाओं के अनुभव खराब रहे हैं.
विशेषज्ञों ने ध्रुवीय क्षेत्रों में काम कर चुकीं दुनियाभर की 300 से ज्यादा महिलाओं से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है. यह रिपोर्ट शोध पत्रिका पीएलओएस क्लाइमेट (PLOS) में प्रकाशित हुई है.
रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के सामने जो सबसे प्रमुख पांच दिक्कतें आईं, वे अन्य लोगों के साथ काम करने का माहौल, संवाद, लिंगभेद, आराम ना मिल पाना और मौसम से जुड़ी थीं.
आर्कटिक-अंटार्कटिक: दुनिया के दो छोरों में कितना अंतर
आर्कटिक और अंटार्कटिक, दुनिया के दो छोर हैं. पृथ्वी के दो सिरे. दोनों जगहों पर जहां तक देखो बर्फ ही बर्फ. सतही तौर पर दोनों एक से दिखते हैं, लेकिन इनमें काफी फर्क है. आर्कटिक और अंटार्कटिक में क्या अंतर है, देखिए.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
भूगोल की एक काल्पनिक लकीर
पृथ्वी के बीच एक काल्पनिक रेखा मानी जाती है इक्वेटर, यानी विषुवत रेखा. जीरो डिग्री अक्षांश की यह लकीर पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में बांटती है. अंग्रेजी में, नॉदर्न और सदर्न हेमिस्फीयर. यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव की आधी राह में है. आर्कटिक जहां उत्तरी गोलार्ध में है, वहीं अंटार्कटिक दक्षिणी गोलार्ध में है. तस्वीर में: अंटार्कटिक का माउंट एरेबस
तस्वीर: Danita Delimont/PantherMedia/Imago
एक समंदर है, दूसरा महादेश
बचपन में भूगोल के पाठ में आपने महादेशों और महासागरों के नाम याद किए होंगे. सात महादेशों में से एक है अंटार्कटिक और पांच महासागरों में से एक है आर्कटिक. अंटार्कटिक, सागर से घिरी जमीन है. वहीं आर्कटिक जमीन से घिरा सागर. यह दोनों इलाकों के बीच का सबसे बड़ा फर्क है.
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बर्फ में भी अंतर
आर्कटिक महासागर के ऊपर बर्फ की जो पतली परत है, वो लाखों साल पुरानी है. वैज्ञानिक इसे 'पेरीनियल आइस' कहते हैं. आर्कटिक की गहराई करीब 4,000 मीटर (चार किलोमीटर) है. उसकी अंदरूनी दुनिया को हम अब भी बहुत नहीं जानते. दूसरी तरफ अंटार्कटिक बर्फ की बहुत मोटी परत से ढका है. तस्वीर: अंटार्कटिक में गोता लगाती एक व्हेल
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पेंग्विन और पोलर बियर
पेंग्विन और ध्रुवीय भालू, इन दोनों को आप साथ नहीं देखेंगे. पेंग्विन केवल दक्षिणी गोलार्ध में पाए जाते हैं. सबसे ज्यादा पेंग्विन अंटार्कटिक में रहते हैं. इसके अलावा गलापगोस आइलैंड्स, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में भी इनकी कुदरती बसाहट है.
तस्वीर: Ueslei Marcelino/REUTERS
पोलर बियर का घर
पोलर बियर पृथ्वी के सुदूर उत्तरी हिस्से आर्कटिक में रहते हैं. देशों में बांटें तो इनकी बसाहट ग्रीनलैंड, नॉर्वे, रूस, अलास्का और कनाडा में है. पेंग्विन और पोलर बियर में एक समानता ये है कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण दोनों के घर और खुराक पर बड़ा जोखिम मंडरा रहा है.
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इंसानी रिहाइश
हजारों साल से आर्कटिक में इंसान रहते आए हैं. जैसे कि मूलनिवासी इनौइत्स और सामी. वहीं दक्षिणी ध्रुव से हमारी पहचान को बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता. 19वीं और 20वीं सदी में जिस तरह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों तक पहुंचने की होड़ लगी थी, वैसी ही महत्वाकांक्षा साउथ पोल के लिए भी थी. काफी कोशिशों के बाद दिसंबर 1911 में नॉर्वे के खोजी रोल्ड एमंडसन को दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने में कामयाबी मिली.
तस्वीर: LISI NIESNER/REUTERS
हरियाली
अंटार्कटिक का ज्यादातर हिस्सा स्थायी रूप से बर्फ से ढका रहता है. ऐसे में पौधों के उगने के लिए बहुत कम ही जगह है. यहां ज्यादातर लाइकेन्ज और मॉस के रूप में ही वनस्पति है. आर्कटिक अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा हरा-भरा है. यहां करीब 900 प्रजातियों की काई और 2,000 से भी ज्यादा प्रकार के वैस्क्यूलर प्लांट पाए जाते हैं. इनमें ज्यादातर फूल के पौधे हैं.
तस्वीर: picture alliance/Global Warming Images
मौसम का फर्क
आर्कटिक के लिए जून का महीना 'मिड समर' है, यानी आधी गर्मी बीत गई और आधी बची है. मार्च से सितंबर तक सूरज लगातार क्षितिज से ऊपर होता है और 21 जून के आसपास यह सबसे ऊंचे पॉइंट पर पहुंचता है. वहीं अंटार्कटिक में इसका उल्टा है. वहां 21 दिसंबर के आसपास मिड समर होता है, यानी सूरज क्षितिज में सबसे ऊपर पहुंचता है.
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शोध करने वालों में से एक रेबेका डंकन सिडनी की टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी (UTS) में पीएचडी कर रही हैं. इस शोध के बारे में लिखे एक लेख में डंकन कहती हैं कि उनकी टीम को इन समस्याओं के बारे में पहले से पता था लेकिन शोध के दौरान उन्हें अहसास हुआ कि इनका विस्तार कितना ज्यादा और गहरा है.
डंकन कहती हैं, "आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में होने वाले शोध विज्ञान के लिए बेहद अहम हैं... महिलाएं इनमें बहुत जरूरी भूमिका निभाती हैं. वे शोध सहायक से लेकर टीम लीडर तक अलग-अलग भूमिकाओं में काम करती हैं. लेकिन हमारे सर्वे से पता चला कि बहुत बड़े स्तर पर महिलाओं के अनुभव खराब रहे हैं.”
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सर्वे के नतीजों का आधार
रेबेका डंकन और उनकी टीम ने पिछले साल सितंबर से नवंबर के बीच 300 से ज्यादा उन महिलाओं से बातचीत की जिन्होंने ध्रुवीय क्षेत्रों में काम किया है. इन महिलाओं में 18 वर्ष से लेकर 70 वर्ष से भी अधिक की महिलाएं शामिल थीं जो अलग-अलग देशों और राष्ट्रीयता के अलावा अनुभव में भी अलग-अलग थीं.
सर्वे का निष्कर्ष है कि आर्कटिक और अंटार्कटिक में काम करते हुए 79 फीसदी महिलाओं के अनुभव खराब रहे. इन महिलाओं ने जो समस्याएं बताईं, वे टीम के बीच विवाद से लेकर शोषण के लिए जवाबदेही के ना होने से लिंगभेद तक फैली हुई थीं.
एक चौथाई महिलाओं ने कहा कि उन्होंने यौन शोषण, मनोवैज्ञानिक यातनाएं, हिंसा, नस्लवाद या समलैंगिक नफरत आदि झेला. 18 फीसदी से ज्यादा के अनुभव महिलाओं के साफ-सफाई से जुड़ी सुविधाओं की कमी के कारण खराब रहे जबकि इतनी ही महिलाओं ने यौन शोषण की शिकायत की.
36 फीसदी महिलाओं के अनुभव खराब होने की वजह मौसम था जबकि 28 फीसदी से ज्यादा महिलाओं ने कहा कि आराम का समय बहुत कम मिला. सिर्फ एक तिहाई महिलाओं ने कहा कि उन्हें समुचित निजता उपलब्ध हुई, जबकि 11 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं ने यौन या शारीरिक हिंसा का सामना किया.
यहां होता है 24 घंटे का दिन
क्या आप उस जगह का नाम बता सकते हैं जहां रात ही नहीं होती या फिर जहां 21 घंटे से भी ज्यादा लंबा दिन होता है? चलिए जानते हैं दुनिया में कहां और कब सबसे लंबे दिन होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/P. Pleul
लंबे दिन क्यों?
सबसे लंबे दिन कहां होते हैं, यह जानने से पहले समझते हैं कि ऐसा होता क्यों है. हर साल 20 से 22 जून के बीच सूरज की तरफ पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव का झुकाव सबसे ज्यादा होता है और इसकी वजह से उत्तरी गोलार्ध में दिन की अवधि बढ़ जाती है.
समर सॉल्स्टिस
इस दौरान सूरज आकाश में सबसे ऊंची स्थिति पर होता है. इस स्थिति को ग्रीष्मकालीन अयनांत यानी समर सॉल्स्टिस कहते हैं. दिसंबर में जब उत्तरी ध्रुव का झुकाव सूरज की तरफ सबसे कम होता है तो उसे विंटर सॉल्स्टिस कहते हैं और इस दौरान रातें सबसे लंबी होती हैं.
तस्वीर: Imago/Steinach
24 घंटे का दिन
रूस का शहर मुरमांस्क और फिनलैंड का रोवानिएमी दुनिया के ऐसे इलाके हैं जहां समर सॉल्स्टिस के दौरान रात ही नहीं होती. वहां आधी रात को भी सूरज चमकता रहता है. इसका मतलब है कि इस दौरान वहां पर 24 घंटे का दिन होता है.
तस्वीर: Privat
21 घंटे का दिन
आइसलैंड की राजधानी रेक्याविक में 21 जून को 21 घंटे से भी ज्यादा लंबा दिन होता है. इस दिन वहां सूरज सुबह 2.55 बजे उग जाता है और फिर रात में मध्य रात्रि के बाद ही छिपता है. रूस के केम, अलास्का के फेयरबैंक्स और ग्रीनलैंड के नुक में भी यही स्थिति होती है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/P. Pleul
20 घंटे का दिन
समर सॉल्स्टिस के दौरान जिन जगहों पर दिन 20 घंटे से भी ज्यादा लंबा होता है, उनमें नॉर्वे के ट्रोंडहाइम और कानाडा के इकालुई जैसे इलाकों के नाम दिए जा सकते हैं. वहीं फरोए आइलैंड के टोरशावन में 19 घंटे 45 मिनट और अलास्का के एंकोरैग में 19 घंटे 21 मिनट का दिन होता है.
तस्वीर: Bonifatiuswerk
18 घंटे का दिन
जिन इलाकों में 21 जून को दिन 18 घंटे से ज्यादा लंबा होता है, उनमें फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी, रूसी शहर सेंट पीटर्सबर्ग, नॉर्वे की राजधानी ओस्लो, एस्टोनिया की राजधानी टालिन, स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम समेत कई शहर शामिल हैं.
तस्वीर: Lauri Rotko / Helsingin kaupunki/Tapahtumayksikkö
17 घंटे का दिन
लात्विया की राजधानी रीगा, स्कॉटलैंड की राजधानी एडिनबरा, रूस की राजधानी मॉस्को, डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन, लिथुआनिया की राजधानी विलनियस और अलास्का के शहर सिटका और उनालास्का में समर सॉल्स्टिस के दौरान दिन की अवधि 17 घंटे से ज्यादा होती है.
तस्वीर: DW/Monaa
15-16 घंटे का दिन
जिन शहरों में 21 जून को 15 से 16 घंटे का दिन दर्ज होता है, उनमें इटली की राजधानी रोम, स्पेन की राजधानी मैड्रिड, कनाडा का शहर वैंकूवर, अमेरिकी शहर सिएटल और न्यूयॉर्क और चीन की राजधानी बीजिंग जैसे कई मशहूर शहर शामिल हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
13-14 घंटे का दिन
भारत की राजधानी दिल्ली में 21 जून को दिन लगभग 14 घंटे का होता है. इसके अलावा काठमांडू, ताइपेई, हांगकांग, शंघाई, टोक्यो, वाशिंगटन, लॉस एंजेलेस, तेहरान, बगदाद, रियाद, हवाना और होनेलूलु जैसे शहरों में भी 13 से 14 घंटे का दिन होता है.
तस्वीर: Fotolia/M. Ignatova
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शोध पत्र कहता है कि 83 फीसदी महिलाओं ने इस बात से सहमति जताई कि ‘उनके काम को समुचित सम्मान मिला' लेकिन 30 फीसदी महिलाओं ने कहा कि इस ‘समुचित सम्मान के लिए उन्हें अपने सहयोगियों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ी.'
रिपोर्ट के मुताबिक एक महिला ने कहा, "महिलाओं को अक्सर प्रयोगशालाओं में काम दिया जाता है जबकि पुरुष अक्सर बाहर जाते हैं और महिलाओं के लिए नमूने लेकर आते हैं, जिन्हें वे रात को बैठकर जांचती हैं.”
एक अन्य ने कहा कि "महिलाएं क्या कर सकती हैं, इसे लेकर अवधारणा में फर्क होता है, जैसे कि बड़ी मशीनों के इस्तेमाल को लेकर.”
महिला वैज्ञानिकों के लिए बदलाव की जरूरत
डंकन कहती हैं कि कामकाज का मौजूदा ढांचा पुरुषों के अनुरूप है जिसे बदलने जाने की जरूरत है. मसलन, शौचालयों की उचित सुविधा नहीं है जिसके कारण जब महिलाओं को इन सुविधाओं का इस्तेमाल करना होता है तो उन्हें बाहर जाना होता है और पूरे कपड़े (ध्रुव पर पहना जाने वाला बंद लिबास) उतारने पड़ते हैं.
आर्कटिक की बर्फ में जहाज चलते देखेंगे हम?
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रिपोर्ट में जिन बदलावों की सिफारिश की गई है उनमें महिलाओं को अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ज्यादा सशक्त बनाने की जरूरत पर खास जोर दिया गया है.
दुनिया में महिला वैज्ञानिकों की संख्या में कमी वैसे ही चिंता का विषय रहा है. डंकन कहती हैं कि इन हालात को बदलने के लिए कई तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है, जैसे कि एक आचार संहिता होनी चाहिए. वह कहती हैं, "हमने पाया है कि बहुत कम शोध अभियानों में एक स्पष्ट आचार संहिता या शोषण के खिलाफ शिकायत के लिए एक ढांचा उपलब्ध था. यह एक बेहद अहम तत्व है और इसे संस्थागत स्तर पर सुधारा जाना चाहिए ताकि महिलाएं बोलने में सुरक्षित महसूस कर सकें.”