अमेरिका के रिसर्चरों ने अफ्रीकी टिक की एक प्रजाति की लंबी उम्र के बारे में खोज की है. यह जीव करीब 30 वर्षों तक जीवित रहता है. भोजन के बगैर भी यह जीव 8 साल तक जिंदा रह सकता है.
यह टिक सूखे मरुस्थलीय परिस्थियों में पलने के लिए मजबूर हुआ होगा जिसकी वजह से उसमें यह क्षमता आईतस्वीर: Ana F./Zoonar/picture alliance
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यह क्रूर और चालाकी भरा लगता है कि कैसे कुछ जीवों ने प्रकृति को चुनौती देते हुए खुद को जीवित रखने का असाधारण तरीका इजाद किया है. यहां तक कि उन्होंने कई वर्षों तक बिना भोजन के जीना सीखा. ये जीव सबसे छुप कर जीने में माहिर हैं. ये काफी डरावने भी होते हैं. इनमें से एक का नाम टिक है.
अमेरिका के शोधकर्ता जूलियन शेफर्ड को 1976 में बड़े अफ्रीकी टिक की विशेष प्रजाति उपहार में दी गई थी. उन्होंने 27 वर्षों तक अपनी प्रयोगशाला में इन टिकों पर अध्ययन किया.
इस दौरान शेफर्ड ने देखा कि कुछ मादा टिक करीब आठ वर्षों तक बिना कुछ खाए जिंदा रहीं. यही नहीं, सभी नर टिकों की मौत के चार वर्ष के बाद भी कुछ मादा टिक प्रजनन करने और बच्चों को जन्म देने में कामयाब रहीं. ये टिक अर्गस ब्रम्प्टी प्रजाति के थे, जो आमतौर पर अफ्रीका के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में पाए जाते हैं.
शेफर्ड ने जर्नल ऑफ मेडिकल एंटोमोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में लिखा है कि ये प्रजाति इतने लंबे समय तक जीवित रहते हैं जो अपने-आप में एक रिकॉर्ड है. बिना भोजन के किसी भी जीव का इतने लंबे समय तक जिंदा रहना विज्ञान की दुनिया का दुर्लभ मामला है.
टार्डीग्रेड बिना भोजन के 30 साल तक जिंदा रह सकता हैतस्वीर: Bob Goldstein & Vicki Madden, UNC Chapel Hill/AP Photo/picture alliance
धरती पर कुछ ही ऐसे अन्य जीव हैं जो ‘बिना कुछ खाए' कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं. इनमें एक है ओल्म, जो समुंदर में रहने वाला जलीय जीव है. मगरमच्छ भी ऐसा कर सकते हैं. विचित्र सा दिखने वाला 'वॉटर बीयर' यानी टार्डिग्रेड्स भी बिना भोजन के 30 वर्षों तक जीवित रह सकता है.
हालांकि, शेफर्ड को अपने टिक के साथ इस तरह का प्रयोग करने और उन पर अध्ययन करने का कोई इरादा नहीं था. यह पूरी तरह एक संयोग था. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "सच कहूं, तो उन टिक को लेकर मेरी कोई योजना नहीं थी. मैं टिक को लेकर बस अपने अनुभव को बढ़ाने के बारे में सोच रहा था. मुझे कोई आइडिया नहीं था कि वे इतने समय तक जिंदा रहेंगे.”
ए. ब्रम्प्टी बिना भोजन के इतने दिनों तक जीवित रह सकते हैं, इसका पता चलना महज एक संयोग था. शेफर्ड ने कहा कि उन्होंने टिक को भोजन देना इसलिए बंद कर दिया क्योंकि इसके लिए उन्हें खून की जरूरत थी. टिक भोजन के तौर पर किसी का खून चूसते हैं. टिक को भोजन उपलब्ध कराने के लिए उन्हें चूहों से बड़े जीव की जरूरत थी. इस वजह से नैतिक और उनके रखरखाव की समस्या आ खड़ी हुई.
उन्होंने आगे कहा, "मैंने उनके भोजन के तौर पर खरगोश का इंतजाम किया, लेकिन यह उतना मानवीय नहीं था जितना मैं चाहता था. मैंने कुछ टिक को खुद का खून चूसने का मौका दिया, लेकिन सिर्फ एक बार. इसके बाद, मैंने पाया कि मैं उन्हें उन चूहों को भोजन के तौर पर दे सकता हूं जिन्हें प्रयोगशाला में मरने के लिए छोड़ दिया गया था.”
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सॉफ्ट और हार्ड टिक
ए ब्रुम्प्टी को ‘सॉफ्ट टिक' के रूप में जाना जाता है. सॉफ्ट टिक, ‘हार्ड टिक' से अलग होते हैं. हार्ड टिक आमतौर पर अमेरिका और यूरोप में पाए जाते हैं. शेफर्ड कहते हैं कि इस बात की काफी कम संभावना है कि सॉफ्ट टिक अपने भोजन के तौर पर इंसानों का खून चूस सकते हैं.
हालांकि, ये टिक कई गंभीर बीमारियों को फैलाते हैं. जैसे, टिक बॉर्न रिलैप्सिंग फीवर (टीबीआरएफ). यह बीमारी अफ्रीका के साथ-साथ भूमध्य सागर और पश्चिमी उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में पायी जाती है. टीबीआरएफ जीवाणु से होने वाला संक्रमण है. इससे बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और बार-बार उबकाई की समस्या हो सकती है. साथ ही, शरीर पर लाल चकत्ते का निशान भी उभर सकता है.
अनोखे दुर्लभ जीव
हमारी धरती ऐसे अनोखे औऱ शानदार जीवों से भरी पड़ी है जो अब भी दुनिया के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं. हाल में पता लगे कुछ ऐसे ही जीवों को देखिए जो हमारी जानकारी की सीमाओं को लगातार बढ़ा रहे हैं.
तस्वीर: Imago/Science Photo Library
हुडविंकर सनफिश
अटपटी सी आकृति वाली 2 मीटर चौड़ी यह मछली कैलिफोर्निया के समुद्र तट पर फरवरी 2019 में बह कर आई थी जिसे देख स्थानीय लोग हैरान रह गए. बाद में पता चला कि यह दुर्लभ हुडविंकर सनफिश है जिसे 2017 तक आधिकारिक रूप से पहचाना नहीं जा सकता था. यह सिर्फ न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण गोलार्द्ध में ही पाई जाती है. बीते 130 सालों में यह पहली बार उत्तरी गोलार्द्ध में नजर आई.
तस्वीर: Reuters/T. Turner
हेडलेस चिकन सी मोन्स्टर
गहरे सागर में तैरने वाले सी क्यूकंबर को हेडलेस चिकन सी मोन्स्टर ही कहा जाता है. इसका असल नाम एनीपनियास्टेस एक्सीमिया है. इसकी 2018 में पूर्वी अंटार्कटिका में तस्वीर ली गई. इसके पहले मेक्सिको की खाड़ी में ही इसे कैमरे में कैद किया जा सकता था. ज्यादातर सी क्यूकंबर अपना समय सागर तल पर बिताते हैं लेकिन कुछ जीव अपने दिन सागर की लहरों पर गुजारते हैं और सिर्फ खाने के लिए तल में जाते हैं.
यह कोई आम मधुमक्खी नहीं है. इसे पिछली बार 38 साल पहले देखा गया था. 1.5 इंच की इस विशालकाय मक्खी को आखिरकार वैज्ञानिकों ने इंडोनेशिया के जंगलों में ढूंढ निकाला, यह ग्लोबल वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन की मोस्ट वांटेड 25 जीवों की सूची में भी है. इसके जबड़े भले ही डरावने दिख रहे हों लेकिन यह मक्खी भी बाकी मक्खियों की तरह मकरंद और पराग को ही पसंद करती है.
तस्वीर: Clay Bolt
जायंट स्क्विड
यह जीव वैज्ञानिकों को कई दशकों से लुभाता रहा है. 2004 में पहली बार जीवित जायंट स्क्विड की तस्वीर ली गई. ऊपर दिख रही तस्वीर पहले वीडियो फुटेज से निकाली गई है. यह वीडियो इसके प्राकृतिक आवास में 2013 में बनाई गई थी. हमें अब भी नहीं पता कि यह कितना बड़ा हो सकता है. इसका सबसे बड़ा आकार 13 मीटर दर्ज किया गया है.
तस्वीर: Reuters
सूअर जैसी नाक वाला चूहा
2015 में वैज्ञानिकों ने आधिकारिक रूप से इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में इस नए स्तनधारी जीव की खोज की पुष्टि की थी. सूअर जैसी नाक के कारण इसका नाम हॉग नोज्ड रैट रखा गया है हालांकि इस नाक की क्या उपयोगिता है अभी यह साफ नहीं है. इसके पास चमगादड़ जैसे दांत हैं हालांकि यह मुख्य रूप से केंचुए और झींगुरों के लार्वा को ही अपना आहार बनाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Museum Victoria
नियोपाल्पा डोनाल्डट्रंपी
इस छोटे से कीड़े को दक्षिणी कैलिफोर्निया में 2017 में खोजा गया. हालांकि इसके पोंछे जैसी नारंगी बालों ने इसे मीडिया में शोहरत दिलाई. इसके बाल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के हेयरस्टाइल से मेल खाते हैं. यही वजह है कि इसे यह नाम मिला. दुखद यह है कि इस कीड़े का आवास मेक्सिको के बाजा कैलिफोर्निया राज्य तक फैला है जिसे ट्रंप की प्रस्तावित दीवार बांटने वाली है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V.Nazari
सी टोड
इस अनोखे जीव को ढूंढने के लिए समुद्र तल से बढ़िया कोई जगह नहीं हो सकती. ऑस्ट्रेलिया के कोरल सी के बेहद गहरे इलाके में एक खोज के दौरान 2009 में इसकी तस्वीर खींची गई. समुद्र तल में विचरण करने वाली यह मछली आंगलरफिश परिवार की है. इसके मुंह के अगले हिस्से में हल्की रोशनी निकलती है जिनसे यह अपने शिकार को ढूंढ लेती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/MARUM Universität Bremen/LMU München
सियाफिला सुगिमोटोई
मुमकिन है कि यह कोई जीव ना हो लेकिन जापान में 2017 में इस अनोखे पौधे की खोज ने दुनिया भर के लोगों में दिलचस्पी पैदा की. यह उन दुर्लभ पौधों में है जिन्होंने प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को त्याग दिया है. पौधे इसके ही जरिए अपना भोजन बनाते हैं. यह पौधा अपने परपोषी फफुंद की जड़ से अपना पोषण लेता है जैसे कि मशरूम. जापान में इस पर काफी खोज की गई है और इस अप्रत्याशित खोज को बेहद खास बना दिया है.
तस्वीर: picture-alliance/ESF International Institute for Species Exploration/Takaomi Sugimoto
केव ड्वेलिंग बीटल
2018 में चीन के गुआंगशी प्रांत में खास तरह के झींगुर मिले हैं. इसके लंबे गठे शरीर में दुर्बल हाथ पैर और आंखों या पंखों का ना होना इसे उन जीवों की कतार में ला खड़ा करता है जो अंधेरे में अपना जीवन विकसित करते हैं. इन्हें कंवर्जेंट इवॉल्यूशन भी कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/Sunbin Huang/Mingyi Tian/ESF International Institute for Species Exploration/dpa
टार्टीग्रेड
अतिसूक्ष्म टार्टीग्रेड को विज्ञान जगत 1777 से ही जानता है लेकिन 2018 में जापान के पार्किंग लॉट में एक नया जीव मिला. एक रिसर्चर ने कंक्रीट पर उभरी काई को खींच कर अलग किया और उसे लैब में ले गए. व्यावहारिक रूप से इन्हें तोड़ा नहीं जा सकता और इसके साथ ही एक अलग जीव की खोज हुई जो अपने पूर्वजों से बिल्कुल अलग था.
तस्वीर: Imago/Science Photo Library
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शेफर्ड ने प्रकृति को चुनौती देने वाले अपने टिक को हाल ही में दक्षिण अफ्रीका भेजा है. उन्हें उम्मीद है कि वहां दूसरे रिसर्चर इन टिकों की देखभाल करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि नए रिसर्चरों को लगता है कि वर्षों पहले जो टिक उन्हें उपहार में दिए गए थे वे कई प्रजातियों के हो सकते हैं. नए रिसर्चर इन टिकों के आनुवांशिक संबंधों का पता लगाने और उनका विश्लेषण करने के लिए डीएनए तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं.
लेकिन क्या इन टिक पर हुए प्रयोग से इंसानों की उम्र बढ़ाने जैसी किसी जानकारी का खुलासा हुआ है? ऐसा लगता है कि इस सवाल का जवाब है, ‘नहीं'. शेफर्ड ने कहा, "मुझे जो बात सबसे ज्यादा रोमांचित करती है वह यह है कि किस तरह इन जीवों ने जिंदा रहने के असाधारण तरीके खोजे हैं.”