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इतिहासयूरोप

क्या अमेरिका यूरोप से मुंह मोड़ रहा है?

क्रिस्टॉफ हाजेलबाख
८ मई २०२५

ठीक 80 साल पहले यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति हुई थी. तब से अमेरिका ने हमेशा यूरोप की सुरक्षा सुनिश्चित की है. लेकिन अब डॉनल्ड ट्रंप इस सुनिश्चिता के वादे को सवालों के घेरे में डाल रहे हैं.

अगस्त 1945 में पॉट्सडाम कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने पहुंचे ब्रिटेन के चर्चिल, अमेरिका के ट्रूमन और सोवियत नेता स्टालिन
अगस्त 1945 में पॉट्सडाम कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने पहुंचे ब्रिटेन के चर्चिल, अमेरिका के ट्रूमन और सोवियत नेता स्टालिनतस्वीर: akg-images/picture alliance

8 मई 1945 को जर्मन वेयरमाख्ट ने आत्मसमर्पण कर दिया था. यह तारीख यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध के अंत को दर्शाती है, जो 1 सितंबर 1939 को जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण के साथ शुरू हुआ था. हालांकि, एशिया में यह युद्ध कुछ और महीनों तक जारी रहा, जब तक कि जापान ने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया. और इसके कुछ दिन पहले ही जर्मनी के नाजी तानाशाह, अडॉल्फ हिटलर ने बर्लिन के "फ्युरर बंकर" में आत्महत्या कर ली थी.

इस युद्ध की भयानकता ने अब तक हुए सभी युद्धों को पीछे छोड़ दिया था. दुनिया भर में लगभग 6 करोड़ लोग मारे गए, नाजियों ने 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, यूरोप का एक बड़ा हिस्सा तबाह हो गया और लाखों लोग विस्थापित हो गए.

1945 में नाजी जर्मनी के पतन के साथ यूरोप और दुनिया में एक नई द्विध्रुवीय व्यवस्था कायम हुई, जो लगभग 40 वर्षों तक बनी रही. युद्ध के दौरान पश्चिमी सहयोगी, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने सोवियत संघ के साथ मिलकर नाजियों को हरा दिया.

लेकिन युद्ध खत्म होने से पहले ही पश्चिमी देशों और सोवियत संघ के बीच तनाव शुरू हो गया था. एक ओर, पश्चिमी देश, लोकतंत्र का समर्थन कर रहे थे और वह हार चुके देशों के साथ आजाद और बराबरी का रिश्ता बनाना चाहते थे. जबकि दूसरी ओर, सोवियत संघ ने जिन देशों पर कब्जा किया था, वह उनमें कम्युनिस्ट शासन स्थापित करना चाह रहा था.

1947 में अमेरिका के राष्ट्रपति, हैरी ट्रूमैन ने "ट्रूमैन सिद्धांत" की घोषणा की. जिसमें अमेरिका ने यह वादा किया कि वह उन देशों की मदद करेगा जो सशस्त्र समूहों या बाहरी दबाव से आजादी पाना चाह रहे हैं.

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इसका उद्देश्य सोवियत संघ के विस्तार को रोकना था. जिस कारण यूरोप भी दो हिस्सों में बंट गया. यूरोप का पूर्वी हिस्सा सोवियत संघ के कब्जे में आ गया और पश्चिमी हिस्सा अमेरिका के साथ आ गया.

अमेरिका के सुरक्षा के वादे पर भरोसा

जर्मनी इस संघर्ष का केंद्र बन गया. देश के बीचों-बीच बर्लिन के अंदर से एक दीवार बन गई. वह शीत युद्ध का दौर था. परमाणु हथियारों से लैस दोनों गुट, अमेरिका के नेतृत्व के साथ नाटो और सोवियत संघ के वॉरसो संधि संगठन ने पूरा प्रयास किया कि परमाणु युद्ध तक बात ना पहुंचे. लेकिन तब तक दुनिया इसके बहुत करीब पहुंच गई थी.

जर्मनी का पश्चिमी हिस्सा, जो 1990 तक अलग रहा और जिसे फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी के नाम से जाना जाता था. उसे नाटो का हिस्सा बनने के बाद से अमेरिका की सुरक्षा मिल गई थी.

यह सिलसिला तब तक जारी रहा. जब तक 1989-90 में पूर्व और पश्चिम के टकराव का अंत, जर्मनी का एकीकरण और सोवियत संघ का पतन नहीं हो गया. कुछ वर्षो तक ऐसा महसूस होता रहा जैसे रूस समेत पूरा यूरोप, शांति और लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ रहा है. एक समय तक सोवियत संघ का हिस्सा रहे देश भी नाटो में शामिल हो गए.

दल-बदलू ट्रंप

फरवरी 2022 में रूस के यूक्रेन पर किए हमले के बाद यह धारणा पूरी तरह से बदल गई. पुराने वैश्विक नियम कि केवल शांतिपूर्ण तरीके से ही देश की सीमाएं बदली जा सकती हैं, केवल एक झूठ बन कर रह गए.

इसी बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने लगातार नाटो की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं. मार्च में उन्होंने कहा, "अगर यह (अन्य नाटो देश) पैसे नहीं देंगे, तो मैं भी उनका साथ नहीं दूंगा.” 

जर्मनी की येना यूनिवर्सिटी के इतिहास विशेषज्ञ नॉरबर्ट फ्राए ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम एक बड़े ऐतिहासिक बदलाव के मोड़ पर हैं. यह 20वीं सदी के बड़े राजनीतिक मौकों, खासकर 1945 और 1989-91 जैसा ही है.”

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उन्होंने आगे बताया, "द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका द्वारा बनाई गई ट्रांसअटलांटिक व्यवस्था, जिससे जर्मनी को पश्चिमी यूरोप के एकीकरण और पूर्व-पश्चिम तनाव के अंत के बाद पूर्वी यूरोप के साथ एकीकरण में मदद मिली थी. अब, यह व्यवस्था हमारी आंखों के सामने ही खत्म हो रही है.”

उनके सहयोगी, पॉट्सडाम के इतिहासकार, मानफ्रेड ग्योर्टमाकर ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि ट्रंप की राष्ट्रपति सत्ता ने यह महसूस करा दिया कि "यूरोपीय देशों ने अमेरिका के भरोसे रहकर अपनी आत्मरक्षा को कितना नजरअंदाज किया है.”

डॉनल्ड ट्रंप पहले अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं हैं, जिन्होंने यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा के लिए ज्यादा खर्च करने की सलाह दी है. 2016 में बराक ओबामा ने भी कहा था, "यूरोप कभी-कभी अपनी सुरक्षा को लेकर कुछ ज्यादा ही निश्चिंत हो जाता है.”

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लेकिन ट्रंप ने इस अनिश्चिता को अब काफी आगे बढ़ा दिया है. यूक्रेन-रूस युद्ध में वह कई बार रूस के पक्ष में ही नजर आ रहे हैं. अगर कभी शांति समझौता होता है, तो यूक्रेन को ना तो उसकी पूरी जमीन वापस मिलेगी और ना ही वह नाटो का सदस्य बन पाएगा. हालांकि, यह खबर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए फायदे की है.

पुतिन ने पिछले साल ही कह दिया था, "यूरो-अटलांटिक सुरक्षा का पूरा तंत्र हमारी आंखों के सामने चरमरा रहा है.”

फ्रीडरिष मैर्त्स वॉशिंगटन से 'आजादी' चाहते हैं

जर्मनी में कुछ लोगों को उम्मीद है कि ट्रंप शासन के बाद फिर से पुरानी ट्रांसअटलांटिक व्यवस्था लौट सकती है. लेकिन इस उम्मीद में कितनी सच्चाई है? इतिहासकार नॉरबर्ट फ्राए को इस पर कुछ खास भरोसा नहीं, "इस समय यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि ट्रंप का राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने के बाद क्या-क्या बचा रहेगा और यह कहना तो और भी मुश्किल है कि उस व्यवस्था को दोबारा खड़ा करना कितना संभव हो पाएगा.”

जर्मन सरकार के लिए उनकी सलाह है, "जब से कोनराड आडेनाउअर ने पश्चिम के साथ बिना किसी शर्त निष्ठा दिखाई थी, तब से जर्मनी यूरोप में मजबूती से जुड़ा था. अब जर्मनी को हर वह प्रयास करना चाहिए जिससे यूरोपीय संघ राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रूप से भी अमेरिका के बिना खुद को टिकाए रख सके.”

जर्मनी के नए चांसलर, फ्रीडरिष मैर्त्स भी इस सोच से सहमत हैं. संसदीय चुनावों के तुरंत बाद उन्होंने कहा था कि यूरोप को अमेरिका से स्वतंत्र होकर अपनी खुद की सुरक्षा नीति विकसित करनी होगी.

अपनी सुरक्षा अपने हाथ में लेना चाहता है यूरोप

लेकिन इतिहासकार, मनाफ्रेड ग्योर्टमाकर इस विचार के खिलाफ भी सावधान करते हैं, "अमेरिका से पूरी तरह स्वतंत्रता पाना केवल एक भ्रम है.” उनके अनुसार, यूरोप अपने दम पर नहीं चल पाएगा "क्योंकि परमाणु हथियारों की ताकत से जो सुरक्षा मिलती है, उसकी गारंटी हमेशा से अमेरिका ही देता रहा है. इसलिए सबसे सही यही होगा कि अमेरिका और यूरोप के बीच एक नई यथार्थवादी सोच के आधार पर फिर से करीबी सहयोग बनाया जाए.”

ग्योर्टमाकर ने उम्मीद जताई कि फ्रीडरिष मैर्त्स जल्द से जल्द वॉशिंगटन का दौरा कर सकते हैं और उससे "यह सहयोग, जो हमेशा से अच्छे से काम करता चला आ रहा है, वह आगे भी जारी रहेगा.”

तो अब सवाल यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के 80 साल बाद क्या एक मजबूत यूरोप अब अमेरिका की जगह ले सकेगा, जिस पर अब भरोसा नहीं किया जा सकता है? या फिर वॉशिंगटन के साथ फिर कोई नया गठबंधन बनेगा? जर्मनी की नई सरकार के लिए इस सवाल का जवाब खोजना जरूरी होगा.

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