अमीरी गरीबी में बढ़ रहा है अंतर
२० जनवरी २०१५तेल बेचकर अमीर बनने वाले शेख हों, स्टील प्लांट के मालिक या नवधनाढ्य, 2016 तक दुनिया की एक प्रतिशत आबादी के पास इतनी संपत्ति होगी जितनी बाकी 99 फीसदी के पास. अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई की ओर बुधवार को दावोस में शुरू हो रहे विश्व आर्थिक संगठन से पहले ब्रिटिश राहत संगठन ऑस्कफैम ने ध्यान दिलाया है. अंतर तेजी से बढ़ने का एक सबूत यह भी है कि 2014 में एक प्रतिशत आबादी के पास सिर्फ 48 प्रतिशत संपत्ति थी. ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है, "वैश्विक समृद्धि कुछ गिने चुने लोगों के हाथों में सिमटती जा रही है."
अमीरी गरीबी में यह अंतर कोई नया नहीं है. सालों से ऑक्सफैम और दूसरे मानवाधिकार संगठन आय के असमान बंटवारे और उसकी वजह से होने वाले खतरों की ओर ध्यान दिला रहे हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने 2013 के लिए आकलन किया था कि 92 खरबपतियों के पास उतना धन है जितना दुनिया की गरीब आधी आबादी के पास. और यह संख्या दुनिया की 7 अरब की आबादी में 3.5 अरब है. 2015 में सिर्फ 80 लोगों के पास उतना धन होगा जितना आधी गरीब आबादी के पास, हालांकि विश्व की आबादी लगातार बढ़ रही है.
इन सबसे धनी 80 लोगों की संपत्ति 2010 में 1,300 अरब डॉलर थी जो अब बढ़कर 1,900 अरब डॉलर हो गई है. क्षेत्रीय स्तर पर भी समृद्धि के बंटवारे में भारी विषमता है. फोर्ब्स की अरबपतियों की सूची में 1,645 नाम हैं. इनमें से एक तिहाई के पास या तो अमेरिकी नागरिकता है या वे अमेरिका में रहते हैं.
ऑक्सफैम की कार्यकारी निदेशक विनी बायनीमा का कहना है कि संपत्ति के बंटवारे में विषमता दुनिया भर में गरीबी के खिलाफ संघर्ष में बाधा डाल रही है. धरती पर रहने वाले 9 लोगों में एक के पास पर्याप्त खाने को नहीं है जबकि 1 अरब लोगों को 1.25 डॉलर से कम में गुजारा करना पड़ रहा है. गरीबी और अमीरी का अंतर धनी औद्योगिक देशों में भी बढ़ रहा है. यूरोप के वित्त विशेषज्ञ इस संकट के लिए जिम्मेदार लोगों को समस्या के समाधान में हिस्सेदार बनाने के लिए वित्तीय लेन देन पर कर लगाने की मांग कर रहे हैं.
ऑक्सफैम की शिकायत है कि फार्मेसी और स्वास्थ्य क्षेत्र में पैसा कमाने वाले धनी लोगों ने पिछले सालों में भारी कमाई की है जबकि दूसरी ओर दुनिया भर में स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की गति बहुत धीमी है. बायनीमा इस साल विश्व आर्थिक फोरम में सह अध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा है कि वह अपनी इस जिम्मेदारी का इस्तेमाल बड़ी कंपनियों द्वारा कर बचाने की उपायों के खिलाफ कड़े कदमों की मांग करने के लिए करेंगी.
एमजे/ओएसजे (डीपीए)