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9/11 को मरने वालों की पहचान के लिए संघर्ष

२६ अगस्त २०११

मैनहटन की एक प्रयोगशाला में वैज्ञानिक 9 सितंबर 2001 के आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों के अवशेषों को नाम देने की कोशिश में जुटे हैं. इन अवशेषों में से 40 फीसदी की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है.

तस्वीर: AP

फॉरेंसिक जीव विज्ञान विभाग के मेकथिल्ड प्रिंत्स कहते हैं, "यह एक कानूनी बाध्यता नहीं है क्योंकि हर मृत शख्स के पास मृत्यु प्रमाण पत्र है. यह एक नैतिक निर्णय है." 2001 के आतंकवादी हमलों में जो लोग धमाके, आग और ट्विन टावर के ध्वस्त होने में मारे गए, उनके नाम तो मालूम हैं. लेकिन भयानक त्रासदी के 10 साल बाद भी कई लोगों के अवशेष के टुकड़ों को लेकर वैज्ञानिक उन्हें पहचान देने की कोशिश में जुटे हैं. कई शव तो इतने बुरी तरह से जल गए थे कि उनकी पहचान भी मुश्किल है. वैज्ञानिकों ने सबसे ताजा मिलान 40 साल के एर्नेस्ट जेम्स नाम के शख्स का किया है. जेम्स वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले में मारे गए थे.

तस्वीर: AP

10 साल बाद भी पहचान नहीं

सेंटर पर हुए हमले में 2,753 लोगों की मौत हुई और पहचान किए गए लोगों में जेम्स 1,629वें शख्स हैं. शुरुआत में पारंपरिक तरीकों जैसे दांतों के रिकॉर्ड, फोटो और फिंगर प्रिंट की सहायता से मलबे से निकाले गए शव और अवशेषों की पहचान की गई. पहले तो आसानी से पहचान किए जाने वाले अवेशषों से वैज्ञानिक निपटे और उसके बाद कठिन कामों में वैज्ञानिकों को लगाया गया. उन लोगों की पहचान की शुरुआत की गई जिनके अवशेष बहुत कम या फिर नहीं के बराबर थे. इस काम में वैज्ञानिकों को बड़ी परेशानी उठानी पड़ी. प्रिंत्स कहते हैं, "हमने 21,817 अवशेष इकट्ठा किए. आप सोच सकते हैं कि कई लोगों के शव टुकड़े टुकड़े हो गए थे. और अब तक हम हजारों लोगों की पहचान नहीं कर पाए हैं. कुछ लोग तो जैसे गायब ही हो गए."

कठिन और थकाऊ काम

53 साल के प्रिंत्स जर्मनी के रहने वाले हैं लेकिन 1995 से अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में एक फॉरेंसिक वैज्ञानिक के तौर पर काम कर रहे हैं. कड़ी सुरक्षा और स्वच्छता के बीच प्रिंस और उनके सहयोगी हड्डी और शव के अवशेषों की जांच करते हैं. मृतकों के परिजनों की सहायता से इस लैब में डीएनए डेटा बैंक बनाया गया है और उसके बाद अवशेषों का मिलान इस डेटा बैंक से किया जाता है. शवों के टुकड़ों को पहले रोबॉट साफ करते हैं और फिर इनका डीएनए टेस्ट किया जाता है.

तस्वीर: AP

हालांकि बहुत से ऐसे मामले सामने आए हैं जब एक ही शख्स की दो बार पहचान हो जाती है. क्योंकि शव के कई टुकड़े हो गए थे और हर टुकड़े या फिर हड्डी की एक एक कर पहचान की जाती है, इसलिए एक शव की दो बार पहचान हो जाती है.

कई बार हड्डी के टुकड़े में मिले डीएनए का मिलान डेटा बैंक से नहीं हो पाता है. क्योंकि कई रिश्तेदारों ने अपने डीएनए सैंपल नहीं दिए या फिर हादसे वाली जगह के पास अवैध प्रवासी किसी कारण मौजूद होंगे. वैज्ञानिक कहते हैं कि टुकड़े से डीएनए का मिलान करने वाला काम बहुत थकाऊ और समय लेने वाला है. इस तरह की जांच की मदद से 2006 से अब तक तीन दर्जन से भी कम लोगों की पहचान हो पाई है.

रिपोर्ट: एएफपी /आमिर अंसारी

संपादन: वी कुमार

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