1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

90 साल के प्रोफेसर दादाजी

१३ मई २०१३

जर्मनी में आम तौर पर 65 साल की उम्र में प्रोफेसर रिटायर हो जाते हैं. अगर कोई चाहे तो एक दो साल और पढ़ा सकता है, लेकिन अगर कोई 90 की उम्र में भी लेक्चर हॉल में खड़ा हो तो इसे शानदार जज्बे के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता.

तस्वीर: DW/B. von der Au

गुंथर बोएमे एकदम लक्ष्य पर ध्यान लगाए रहते हैं. यह बात उनका लेक्चर एक बार सुनने पर ही साफ हो जाती है. पीछे की ओर कंघी किए हुए व्यवस्थित सफेद बाल वाले बोएमे डेस्क पर टिकते हैं और पश्चिमी दर्शनशास्त्र के उद्भव पर धाराप्रवाह लेक्चर देते हैं. फ्रैंकफुर्ट के गोएथे यूनिवर्सिटी के 300 छात्र उन्हें पूरे ध्यान से सुनते हैं.

उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वह पिछली सदी से निकल आए हों. अक्सर वे आंखें बंद करके पुराने दार्शनिकों के बारे में बोलते हैं जैसे कि किसी पुरानी पहचान वाले व्यक्ति की जानकारी दे रहे हों. चाहे वह ग्रीक द्वीप के भूगोल पर किसी के विचार हों या फिर कांट के ईश्वर के अस्तित्व के सबूत की बात, वह इनमें से किसी भी विषय पर उतने ही अधिकार से भाषण देते हैं. इस दौरान वह गोएथे के फाउस्ट से एकाध पंक्ति सुनाने से भी परहेज नहीं करते या फिर बीच में चुटकुला सुना कर विद्यार्थियों को हंसाते भी हैं.

मानवता ही लक्ष्य

उन्हें सुनने वाले लोगों में अधिकतर लोग पेंशन वाली उम्र के आसपास के ही होते हैं. हर सेमिस्टर में दो बार वह जीवन के छठे दशक के लोगों के लिए लेक्चर रखते हैं. गोएथे यूनिवर्सिटी का यह लेक्चर सिर्फ पेंशनयाफ्ता लोगों के लिए होता है. 59 साल की उम्र में, साल 1982 में उन्होंने इस परंपरा की शुरुआत की. इस विशेष क्लास को यू3एल कहा जाता है. रिटायरमेंट बोएमे की सोच में कहीं दूर दूर तक नहीं है. "मेरे टीचर ने मुझे जीवन का गुर साथ में दिया था. आजीवन काम करने का वक्त है." और काम के अर्थ उनके लिए अपनी शिक्षा और ज्ञान को दूसरों के साथ बांटना है. यही उनकी प्रेरणा है.

यू3एल कोर्स बनाने वाले बोएमेतस्वीर: DW/B.Von der Au

हालांकि ऐसा नहीं था कि उनकी पढ़ाई शुरू से तय रही हो. गुंथर बोएमे 1923 में ड्रेसडेन में एक ऐसे घर में पैदा हुए जहां माता पिता की शिक्षा कुछ ज्यादा नहीं थी. लेकिन पिता ने गुंथर को ह्युमनिस्ट हाईस्कूल में भेजा. इसके बाद दूसरा विश्व युद्ध हुआ. 18 साल की उम्र में बोएमे युद्ध के मोर्चे पर थे. इसके बाद पांच साल वह इटली में युद्ध बंदी रहे. जब वह इस समय के बारे में बात करते हैं तो उनकी आवाज धीमी हो जाती है. इस दौर के बारे में बात करना उन्हें पसंद नहीं.

50 साल का करियर

युद्ध के बाद गुंथर बोएमे ने एरलांगन और म्यूनिख में दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान और शिक्षाशास्त्र की पढ़ाई की. रोजी रोटी के लिए उन्होंने शुरू में मनोवैज्ञानिक के तौर पर काम किया. लेकिन 1964 में वे फ्रैंकफुर्ट के गोएथे यूनिवर्सिटी में शिक्षा नीति विभाग में रिसर्च एसिस्टेंट के तौर पर काम शुरू किया. करीब आधी सदी पहले और तब से वे वहीं हैं.

पढ़ाई और शोधकार्य में सबसे ज्यादा उन्हें सहनशीलता और मानवता जैसे मानवीय मूल्यों ने प्रभावित किया. इन्हीं को उन्होंने अपना आदर्श माना और जीवन भर उस पर अमल किया. "मुझे ये अहम लगता है कि अपनी भाषा पर अधिकार हो, ऐतिहासिक जागरुकता हो और अपने नैतिक रवैये में विनम्रता हो." इसमें आज की शिक्षा प्रणाली की खुली आलोचना झलकती है क्योंकि इन मूल्यों की आज की यूनिवर्सिटी में कोई जगह नहीं.  

गुंथर बोएमे बाएं से दूसरेतस्वीर: U3L

बोलोन्या की आलोचना

यूनिवर्सिटी में अपने कोर्स के दौरान वह सामान्य यूनिवर्सिटी जीवन से दूर अपने आदर्श दूसरों को दे सकते हैं. "मेरे कोर्स में नौजवानों को आने की अनुमति है लेकिन वे इसका इस्तेमाल नहीं करते." यूनिवर्सिटी की कसी हुई पढ़ाई के कारण उन्हें अपने टाइमटेबल से बाहर झांकने का समय कम ही मिलता है. बोएमे आलोचना करते हैं कि बोलोन्या सुधारों के बाद लागू किए गए इस टाइट शिड्यूल के कारण छात्रों के व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता.

उनके लेक्चरों में नियमित रूप से आने वाले लोगों में ब्रिगिटे रेमी भी शामिल हैं. 67 साल की रेमी इस कोर्स में आती हैं, "क्योंकि वह मुझे सोचने का मुद्दा देते हैं, बुढ़ापे, मौत, अतीत पर". अवैतनिक काम करने वाले बोएमे को अभी काफी लंबा रास्ता तय करना है, तब तक जब तक जान है.

रिपोर्टः बियांका फॉन डेर आऊ/एएम

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें