94वें जन्मदिन पर तीन हजार फीट से छलांग
विश्व की आबादी में 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की तादाद 2050 तक बढ़कर 15.6 फीसदी हो जाएगी. संयुक्त राष्ट्र के ताजा आकलन के अनुसार यह दोगुनी वृद्धि है. क्या है इसकी वजह और क्या है हमारे लिए इसके मायने?
बूढ़ी होती दुनिया
विश्व की आबादी में 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की तादाद 2050 तक बढ़कर 15.6 फीसदी हो जाएगी. संयुक्त राष्ट्र के ताजा आकलन के अनुसार यह दोगुनी वृद्धि है. क्या है इसकी वजह और क्या है हमारे लिए इसके मायने?
कमजोर पेंशन योजना
विकासशील देशों में आम तौर पर पेंशन और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था की भी कमी है. लेकिन कभी काफी ऊंची रहे जन्म दर का नतीजा यह होगा कि कुछ सालों में वहां बहुत ज्यादा बुजुर्ग लोग होंगे. बुजुर्ग लोगों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए नई संरचनाएं बनाने की जरूरत होगी.
बढ़ती उम्र
दुनिया भर में लोगों की उम्र बढ़ रही है. 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या 2010 में 7.7 प्रतिशत थी. यह 2050 में दोगुनी होकर 15.6 प्रतिशत हो जाएगी. इसकी वजह जन्मदर में कमी और जीवनदर में वृद्धि है. खासकर विकासशील देशों में उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ेगी.
पेंशनर प्रेमी
सौ साल पहले लोगों का 75 साल का होना अपवाद हुआ करता था. इस उम्र के लोगों को वयोवृद्ध समझा जाता था. आजकल इस उम्र के पेंशनर अधिकतर स्वस्थ होते हैं और जिंदगी का पूरा लुत्फ उठाते हैं. जर्मनी में 30 साल पहले के मुकाबले सौ की उम्र के पांचगुने ज्यादा लोग हैं.
लंबी चुस्ती
शारीरिक रूप से चुस्त दुरुस्त बुजुर्ग लोगों की बढ़ती संख्या की वजह बढ़ रही संपन्नता और बेहतर चिकित्सीय देखभाल भी है. विकसित देशों का यह रुझान अब विकासशील देशों में भी दिखने लगा है. चार दशक बाद बूढ़े लोगों का बहुत बड़ा हिस्सा इन्हीं देशों में रह रहा होगा.
बच्चों की घटती चाह
आने वाले सालों में कम बच्चे पैदा होने की रुझान बनी रहेगी. युवा दम्पत्ति ज्यादा बच्चे नहीं चाहते. इसकी मुख्य वजह यह है कि महिलाएं आजकल आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर ज्यादा महत्व देती हैं और उनके लिए बच्चे और पेशे के बीच तालमेल बिठाना अभी भी बहुत मुश्किल है.
पढ़ना चाहती हैं लड़कियां
महिलाओं में कम बच्चे की चाहत की एक और वजह यह है कि वे अपने बच्चों के लिए अच्छा भविष्य चाहती हैं. खासकर गरीब देशों में महिलाएं अपनी बेटियों पर छोटे भाई बहनों की देखभाल का बोझ डालने के बदले उन्हें स्कूल भेजना चाहती हैं, ताकि उनकी जिंदगी बेहतर हो सके.
देखभाल ही काफी नहीं
जर्मनी जैसे समृद्ध देशों में भी बुजुर्गों की अच्छी देखभाल ही काफी नहीं है. हालांकि बड़ी संख्या में ओल्ड होम हैं लेकिन वे अत्यंत महंगे हैं. पेंशन लगातार गिर रही है और पेंशनयाफ्ता लोगों में गरीबी बढ़ रही है. इसकी वजह से ओल्ड होम का खर्च जुटाना आसान नहीं रह गया है.
गरीबी का खतरा
गरीब देशों में तो खासकर वृद्ध महिलाओं को अक्सर जीवनयापन के लिए भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ता है. बहुत से लोग ताउम्र सिर्फ मजदूरी करते हैं और बुढ़ापे के लिए कुछ भी बचा नहीं पाते हैं. बुढ़ापे में कठिन परिश्रम करना भी उनके लिए संभव नहीं होता.
बुजुर्गों का विद्रोह
दुनिया भर में बुजुर्ग लोग सम्मानजनक जिंदगी के लिए समुचित पेंशन की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. मसलन निकारागुआ में वे हर महीने 90 डॉलर के पेंशन की मांग कर रहे हैं. भारत में तो औसत मासिक आय ही फिलहाल करीब 100 डॉलर है.
बुढ़ापे में करियर
संयुक्त राष्ट्र बूढ़े लोगों के लिए रोजगार के अवसरों की मांग कर रहा है. आबादी के साथ पेंशन की धारणा बदल रही है.