26 साल की युवा महिला बनी स्वीडन में पर्यावरण मंत्री
१९ अक्टूबर २०२२
26 साल की रोमीना पोरमोख्तारी को स्वीडन का नया पर्यावरण मंत्री नियुक्त किया गया है. देश में मंत्री बनने वालीं वह सबसे युवा व्यक्ति बन गई हैं.
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रोमीना पोरमोख्तारी स्वीडन की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनी हैं. प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टेरसन ने उन्हें अपने 23 सदस्यीय मंत्रिमंडल में शामिल किया है. ईरानी मूल की पोरमोख्तारी एक प्रवासी हैं और लिबरल पार्टी की सदस्य हैं. वह पार्टी की शाखा यंग लिबरल की अध्यक्ष हैं, हालांकि इस पद से वह अगले महीने इस्तीफा दे देंगी.
पोरमोख्तारी के पोर्टफोलियो में जलवायु और पर्यावरण अब तक शामिल नहीं रहा है लेकिन वह प्रधानमंत्री क्रिस्टेरसन की तीखी आलोचक रही हैं. एक ईरानी परिवार में जन्मीं पोरमोख्तारी स्टॉकहोम के सबर्ब में पली-बढ़ी हैं. उनसे पहले देश की सबसे युवा मंत्री होने का रिकॉर्ड 27 साल के मंत्री के नाम था.
दक्षिणपंथी नेता उल्फ क्रिस्टेरसन ने अपने मंत्रालय में 23 लोगों को नियुक्त किया है जिनमें 12 पुरुष और 11 महिलाएं हैं. स्वीडन की नई सरकार एक अल्पमत की सरकार है जिसे अति दक्षिणपंथी राजनीतिक ताकतों का समर्थन हासिल है. ऐसा पहली बार हुआ है कि देश के अति दक्षिणपंथी दल स्वीडन डेमोक्रैट को सत्ता में हिस्सेदारी मिली है. हालांकि वे सरकार में शामिल नहीं हुए हैं. क्रिस्श्चन डेमोक्रैट्स और लिबरल पार्टी भी सरकार में शामिल हैं.
स्वीडन डेमोक्रैट ने सरकार को समर्थन देने के बदले में अपराध और आप्रवासन के मुद्दे पर नीतियों में बदलाव की मांग की है. 11 सितंबर को देश में आम चुनाव हुए थे जिसमें स्वीडन डेमोक्रैट दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि सोशल डेमोक्रैट सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला.
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नारीवादी विदेश नीति का त्याग
नई सरकार ने सत्ता में आते ही देश की चर्चित ‘नारीवादी विदेश नीति' को छोड़ने की बात कही. 2014 में तत्कालीन वामपंथी सरकार ने यह नीति लागू की थी लेकिन मौजूदा सरकार का कहना है कि ऐसी पहचान बनने के नुकसान हो सकते हैं.
देश के अति दक्षिणपंथी दल स्वीडन डेमोक्रैट की मदद से बनी सरकार के नए विदेश मंत्री टोबियास बिलस्ट्रॉम ने यह ऐलान किया. ‘नारीवादी विदेश नीति' एक अवधारणा है जिसे स्वीडन के आधार पर कई देशों ने अपनाया है. पूर्व विदेश मंत्री मार्गट वॉलस्ट्रोम ने 2014 में यह नीति घोषित की थी, जिसका आधार यह था कि स्वीडन के विदेशों के साथ संबंधों महिलाओं को समानता एक मुख्य एजेंडा रहेगी. इस कारण कई देशों, खासकर मध्य पूर्व के साथ संबंधों पर असर भी पड़ा.
मंगलवार को यह नीति छोड़ने का ऐलान करते हुए बिलस्ट्रॉम ने कहा, "लैंगिक समानता स्वीडन का और इस सरकार का आधारभूत मूल्य है. लेकिन हम ‘नारीवादी विदेश नीति', इन शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे क्योंकि चीजों पर लगे लेबल अंदर की सामग्री को ढक सकते हैं.”
कोई बदलाव नहीं
बिलस्ट्रॉम ने स्पष्ट किया कि स्वीडन की विदेश नीति और इससे संबंधित दस्तावेजों में कोई विशेष बदलाव नहीं किए जाएंगे. इसमें देश की नाटो सदस्यता की अर्जी जैसा मौजूदा दौर का सबसे अहम दस्तावेज भी शामिल है.
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
तस्वीर: Lev Radin/Pacific Press/picture alliance
मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.
तस्वीर: Ercin Top/AA/picture alliance
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2015 में बिलस्ट्रॉम ने सऊदी अरब में महिलाओं की स्थिति पर तीखी टिप्पणियां की थीं, जिसके बाद दोनों देशों के संबंध इस कदर खराब हो गए थे कि सऊदी अरब ने स्टॉकहोम से अपना राजदूत तक वापस बुला लिया था. हालांकि उनकी ‘नारीवादी विदेश नीति' की सफलता आंकना मुश्किल है. 2021 में सरकार ने एक दस्तावेज प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया कि इस नीति ने मोल्डोवा और सोमालिया में महिलाओं की राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर नई नीतियां बनाने में मदद की.
दस्तावेज के मुताबिक इस नीति ने लगभग 20 देशों में नए कानून बनाने में सहयोग दिया, जो लैंगिक समानता और महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित थे.