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कनाडा के एक जिहादी की अजीबोगरीब कहानी

३१ अक्टूबर २०१६

पश्चिमी देशों में पैदा हुए नौजवानों के आतंकी संगठनों में जाने की खबरें तो बहुत आम हैं लेकिन कनाडा में पैदा हुआ मुबीन शेख एक धर्मपरायण जिहादी होने के बावजूद खुफिया एजेंट बन गया.

Mubin Shaikh
तस्वीर: privat

उग्रपंथी जिहादी से इंटेलिजेंस एजेंट बनने वाले मुबीन शेख की कहानी अलग अलग वजूदों से जूझने की कहानी है. 41 वर्षीय शेख का बचपन कनाडा के आम बच्चों की तरह ही बीता. वह टोरंटो के बहुधार्मिक स्कूल में गया, लेकिन उसे एक मदरसे का सख्त अनुशासन भी सहना पड़ा जहां उसने कुरान की पढ़ाई की. छुटपन में वह सेना का कैडेट था और पार्टियां उसे पसंद थीं. और उसके बाद उसका मुसलमान के रूप में पुनर्जन्म हुआ. धार्मिकता आगे चलकर चरमपंथ में बदल गई.

शुरू से ही मुबीन शेख को टोरंटो के नॉर्थ यॉर्क मोहल्ले के  अपने आप्रवासी समर्थक सरकारी स्कूल और मदरसे का अंतर दिखाई देता था. एक ओर बच्चों की जरूरतों का ध्यान रखने वाला स्कूल था तो दूसरी ओर मदरसा जहां वह रात में कुरान सीखता था. उसे याद है कि बच्चों को छड़ियों और थप्पड़ों की मदद से अनुशासित रखा जाता था. स्कूल पास करने के बाद उसकी पसंद सेना और पार्टियां थीं. एक बार उसके चाचा ने पार्टी करते देख लिया और कहा, "तुमने परिवार का सर नीचा किया है." चाचा ने दूसरे रिश्तेदारों को भी ये बात बता दी. 

धर्म का सहारा

अब मुबीन इस समस्या से कैसे निबटता? "मुझे धर्म का सहारा मिला." उसे पता था कि दूसरे लड़के थे जिन्होंने अपने सम्मान को पाकिस्तान और भारत की चार महीने के धार्मिक यात्रा के साथ धोया था. मुबीन भी पाकिस्तान के ऐसे ट्रिप के लिए तैयार हो गया. एक दिन पाकिस्तान में रहने के दौरान उसने दाढ़ी वाले लोगों को देखा जिनके हाथों में हथियार थे. ये 1995 की बात है, वे तालिबान के शुरुआती सदस्य थे. सैनिक ट्रेनिंग पा चुके शेख को धर्म और बंदूक की ताकत का ये मेल पसंद आया. वह बताता है कि वह पूरी तरह मोहित हो गया.

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वापस टोरंटो में वह अफगानिस्तान में तालिबान की कामयाबी पर खुश होता, दूसरे मुसलमानों के साथ समय गुजारता जो काफिरों को सजा देने की बात करते और अपनी दाढ़ी और पहनावे से सम्मानित महसूस करता. वह बताता है, "लोग मुझे संदेह और डर से देखने लगे थे. मुझे ये अच्छा लगता था." दस लोगों का उनका गुट लोगों को धमकाने लगा था और उन्हें मारने की धमकी भी देने लगा था. इस गुट के तीन लोग लड़ने के लिए पाकिस्तान और यमन गए और फिर कभी लौटकर नहीं आए. और फिर 9/11 आया. शुरुआत में इसे जीत समझने के बावजूद इसने उसकी सोच पर चोट की. एक दोस्त ने कहा कि तुम गैर सैनिकों के मारे जाने को कैसे सही ठहराओगे. वह बताता है, "एक अजीब सी चुप्पी थी और उन कुछ सेकंडों में मैंने महसूस किया कि ये सही नहीं था."

जागरूकता

वैश्विक जिहादी लक्ष्यों में शेख का भरोसा कम होने लगा था. इस बीच उसे प्यार हो गया था और उसने शादी कर ली थी. युवाओं के यौन दमन को भी वह चरमपंथ की ओर जाने की वजहों में गिनता है.  9/11 के बाद वह धार्मिक सवालों के नए जवाब ढूंढने लगा था और मध्य पूर्व जाना चाहता था. एक घर का ऑफर मिलने पर वह अपने परिवार के साथ सीरिया गया जहां डेढ़ साल तक एक धार्मिक गुरु के साथ रहा. उसने बताया, "वे कुरान की उन शूराओं को पढ़ते जिन्हें हम जिहादी के रूप में इस्तेमाल करते थे और एक के बाद एक उसकी व्याख्या को ध्वस्त करते जिसे मैं मानता था."

दो साल सीरिया में रहने के बाद मुबीन शेख को कनाडा की याद सताने लगी. वह महसूस करने लगा था कि मुसलमान के रूप में कनाडा रहने की सबसे अच्छी जगह है. लेकिन आने के एक हफ्ते बाद ये भरोसा टूटने लगा. उसने सुना कि मदरसे का उसका पुराना साथी मोमिन ख्वाजा आतंकवाद के आरोपों में पकड़ा गया है. शेख कहता है, "वह मेरे बगल में बैठता था और हम साथ खेला करते थे." शेख ने उसके बाद कनाडा की खुफिया सेवा को फोन कर पूछा कि ऐसा कैसे हुआ. खुफिया सेवा को शेख की कहानी दिलचस्प लगी और उन्होंने कहा, "तुम सचमुच हमारी मदद कर सकते हो."

खुफिया एजेंट

शेख की भर्ती खुफिया एजेंसी सीएसआईएस में एजेंट के रूप में हो गई. उसका काम था सूचनाओं की तसदीक करना. पुराने परिचितों में किसी को पता नहीं था कि उसने जिहाद का समर्थन बंद कर दिया है. शेख बताता है, "जब उन्होंने देखा कि मैं सीरिया गया था, तो उन्होंने समझा कि मैं सक्रियता बढ़ा रहा हूं." मुबीन शेख ने दो साल तक खुफिया एजेंट के रूप में काम किया. यह काम सात महीने के एक मिशन के साथ खत्म हुआ जिसमें उसे उस गुट में शामिल होना पड़ा जो टोरंटो के कई इलाकों में बम उड़ाने और ओटावा में संसद भवन पर धावा बोलने की योजना बना रहा था.

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2006 में टोरंटो 18 के नाम से जाने गए इस गुट को पकड़ने के लिए जिस सबूत की जरूरत थी वह 3 टन अमोनियम नाइट्रेट और एक बम डिटोनेटर के रूप में मिला. चार साल के मुकदमे का शेख के स्वास्थ्य पर भी असर हुआ. स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने उस पर बिकने का आरोप लगाया, उसे दवाएं लेनी पड़ीं. उसने धर्म की भी मदद ली. वह कहता है, "मैं मक्का गया. खुदा से मुझे बचाने को कहा. मैंने सोचा कि मैं सब कुछ ठीक कर रहा हूं, फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?" उसे वापसी का रास्ता मिला, "जब आप घाटी की गहराई में होते हो तभी पहाड़ की ऊंचाई का पता चलता है." शेख की गवाही के चलते टोरंटो 18 के 11 सदस्य को सजा मिली.

अब मुबीन शेख की पहचान का मुख्य हिस्सा अकादमिक गतिविधियां हैं. उसने मुकदमे के दौरान पुलिस इंटेलिजेंस और काउंटर टेररिज्म में मास्टर की डिग्री ली. अब वह लिवरपुल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहा है. और उन दोस्तों के विपरीत जो विदेशों में वह युद्ध लड़ने गए जिसे वे जायज समझते थे, उनकी पहचान एक इंसान की है जो उन चीजों के बारे में सोचता है जिसने उसकी जान बचा दी.

फिलिप फाइन/एमजे

 

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