ऐसा नहीं कि ऑस्टिन के पास आये यूरोपीय खरगोश ऑस्ट्रेलिया में इन जीवों की पहली आमद हों. 1788 में सिडनी आये ब्रिटिश जहाजों की खेप भी अपने साथ पांच खरगोश लाई थी. अगले 70 साल में ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी किनारे के पास बसे इलाकों में भी करीब 90 खरगोश लाए गए. वंशानुक्रम के आधार पर इनमें से ज्यादातर का ताल्लुक 1859 में ऑस्टिन को भेजे गए उन 24 खरगोशों से पाया गया है.
जलवायु परिवर्तन: पहाड़ों के लिए भी है खतरा
ग्लोबल वार्मिंग ने पहाड़ों की प्राकृतिक व्यवस्था को खत्म करना शुरू कर दिया है. इन परिवर्तनों का जल प्रवाह से लेकर कृषि, वन्य जीवन और पर्यटन तक हर चीज पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.
दुनिया के पहाड़ जहां बहुत सख्त हैं, वहीं बहुत नाजुक भी हैं. दूर के तराई क्षेत्रों पर भी उनका बहुत बड़ा प्रभाव है, लेकिन वे जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं. पहाड़ों में भी तापमान बढ़ रहा है और प्राकृतिक वातावरण बदल रहा है. नतीजतन जल प्रणालियों, जैव विविधता, प्राकृतिक आपदाओं, कृषि और पर्यटन के परिणामों के साथ बर्फ और ग्लेशियर गायब हो रहे हैं.
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पिघलती बर्फ
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज का कहना है कि अगर उत्सर्जन बेरोकटोक जारी रहा तो कम ऊंचाई वाले बर्फ के आवरण में 80 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. ग्लेशियर भी सिकुड़ रहे हैं. यूरोपीय आल्प्स में कार्बन डाइऑक्साइड के मौजूदा स्तर पर समान पिघलने की आशंका है. विश्व के पर्माफ्रॉस्ट का कम से कम एक चौथाई भाग ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में है.
बदलती आबोहवा का जल प्रणालियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन प्रभाव समय के साथ बदलते हैं. ग्लेशियरों से नदियों में पानी बहता था, लेकिन अब उनके पिघलने की गति तेज हो गई है. इससे नदी में पानी का बहाव भी बढ़ गया है. कई पर्वत श्रृंखलाओं में बर्फ पिघलने के कारण ग्लेशियरों का आकार छोटा हो गया है, जैसा कि पेरू के पहाड़ों के मामले में हुआ है.
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जैव विविधता: विकास का बदलता परिवेश
पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन ने पर्वतीय वन्यजीवों, पक्षियों और जड़ी-बूटियों के विकास के लिए प्राकृतिक वातावरण को भी बहुत बदल दिया है. वनों की कटाई ने तलहटी में वन आवरण को कम कर दिया है. नतीजतन, इन क्षेत्रों में वन्य जीवन बढ़ तो रहा है लेकिन वह इसकी कीमत चुका रहा है.
ग्लेशियरों के पिघलने और पहाड़ों के स्थायी रूप से जमे हुए क्षेत्रों से बर्फ के घटने से पहाड़ी दर्रे और रास्ते अस्थिर हो गए हैं. इससे हिमस्खलन, भूस्खलन और बाढ़ में वृद्धि हुई है. पश्चिमी अमेरिकी पहाड़ों में बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है. इसके अलावा, ग्लेशियरों के पिघलने से भारी धातुएं निकल रही हैं. यह पृथ्वी पर जीवन के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है.
दुनिया की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में निवास करती है. लेकिन बिगड़ते आर्थिक अवसरों और प्राकृतिक आपदाओं के उच्च जोखिम के साथ वहां जीवन और अधिक सीमांत होता जा रहा है. पहाड़ के परिदृश्य के सौंदर्य, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहलू भी प्रभावित होते हैं. उदाहरण के लिए नेपाल में स्वदेशी मनांगी समुदाय ग्लेशियरों के नुकसान को उनकी जातीय पहचान के लिए एक खतरे के रूप में देखता है.
पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ते तापमान ने अर्थव्यवस्था को बहुत ही नकारात्मक स्थिति में डाल दिया है. जलवायु परिवर्तन ने पर्वतीय पर्यटन और जल आपूर्ति को भी प्रभावित किया है. इसके अलावा कृषि को भी नुकसान हुआ है. पहाड़ के बुनियादी ढांचे जैसे रेलवे ट्रैक, बिजली के खंभे, पानी की पाइपलाइन और इमारतों पर भूस्खलन का खतरा है.
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शीतकालीन पर्यटन: बर्फ रहित स्की रिजॉर्ट
कम बर्फबारी के कारण पहाड़ों में हिमपात का आनंद जलवायु परिवर्तन ने भी प्रभावित किया है. स्कीइंग के लिए बर्फ कम होती जा रही है. पर्वतीय मनोरंजन क्षेत्रों में स्कीइंग के लिए कृत्रिम बर्फ का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है. बोलिविया को ही ले लीजिए, जहां पिछले 50 सालों में आधे ग्लेशियर पानी बन गए हैं.
जैसे-जैसे ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं आखिरकार नदियों और घाटियों में बहने वाले पानी की मात्रा कम होती जा रही है. स्थानीय किसानों को कम कृषि उपज का सामना करना पड़ रहा है. नेपाल में किसान सूखे खेतों की चुनौती से जूझ रहे हैं. उनके लिए आलू उगाना मुश्किल हो गया है. इसी तरह के कई अन्य हिल स्टेशन के किसानों ने गर्मियों की फसलों की खेती शुरू कर दी है. (रिपोर्ट: एलिस्टर वॉल्श)
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रिसर्च में सामने आई जानकारी
ये जानकारी 'प्रोसिडिंग्स ऑफ दी नैशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज' के एक हालिया शोध में सामने आई है. पता चला है कि ऑस्टिन को भेजे गए 24 खरगोशों में जंगली और पालतू दोनों तरह के खरगोश थे. मेलबर्न पहुंचने में जहाज को 80 दिन लगे. इन दौरान दोनों तरह के खरगोशों में इंटरब्रीडिंग हुई. इसके बाद ऑस्टिन के कंपाउंड में उनकी संख्या बेतहाशा बढ़ी. वो बाहर निकलने लगे. शोध के मुताबिक, वो 100 किलोमीटर प्रति वर्ष की दर से आगे फैलते गए. 50 साल के भीतर वो अपने कुदरती यूरोपीय रेंज से 13 गुना बड़े इलाके में फैल गए.
कई बार तो इन बाहरी प्रजातियों के चलते स्थानीय पौधों या जीवों का अस्तित्व खतरे में आ जाता है. इस तरह के बायोलॉजिकल इनवेजन पर्यावरण और आर्थिक तौर पर बेहद विनाशकारी साबित हो सकते हैं. जानकारों के मुताबिक, यूरोपीय खरगोशों की ऑस्ट्रेलिया में बेहिसाब जनसंख्या बायोलॉजिकल इनवेजन की सबसे विनाशकारी मिसालों में से एक है. इसे बाहर से लाए गए स्तनधारी जीवों का सबसे तेज रफ्तार से हुआ 'कोलोनाइजेशन' माना जाता है.