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डिनर में वाइन लेने से क्या वाकई होता है नुकसान?

क्लेयर रोठ
१९ मार्च २०२२

यूं तो हम जानते हैं कि ज्यादा शराब पीना सेहत के लिए नुकसानदेह है, लेकिन सीमित या औसत सेवन के विज्ञान से जुड़ी विस्तृत जानकारी आनी बाकी है.

रेड वाइन
तस्वीर: Finn Winkler/dpa/picture alliance

अल्कोहल से जुड़ी शोध की दुनिया फिलहाल थोड़ा दुविधाग्रस्त नजर आती है, कम से कम एक पब्लिक मैसेज वाले स्टैंडप्वाइंट के लिहाज से.

मार्च में नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन, कुछ सबसे विश्वसनीय प्रमाण, इस बारे में मुहैया कराने की कोशिश करता प्रतीत होता है कि सीमित या कम शराब सेवन भी मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है.

ब्रिटिश बायोबैंक से 36 हजार से ज्यादा अधेड़ और बूढ़े लोगों के मस्तिष्क के स्कैन की जांच के उपरांत, शोधकर्ताओं ने पाया कि 50 साल की उम्र वाले जिन लोगों ने पिछले एक साल के दौरान, रोजाना 175 मिलीलीटर वाइन या आधा लीटर बीयर पी थी उनके मस्तिष्क, उस मात्रा की आधा शराब या बिल्कुल भी न पीने वाले अपने समकक्षों के मुकाबले, डेढ़ साल बूढ़े थे.

शोधकर्ताओं के कहने का मतलब ये था कि शराब पीने से बुढ़ापा जल्दी आता है.

शराब के संतुलित सेवन के सेहत पर असर को लेकर अब तक के सबसे बड़े अध्ययनों में से एक ये भी है. मॉडरेट या सीमित शराब सेवन से शोधकर्ताओं का आशय, हर सप्ताह 14 ड्रिंक्स से और हर सप्ताह एक से अधिक लेकिन सात से कम ड्रिंक से है. लेकिन बहुत सारे सवाल बने हुए हैं.

अल्कोहल के असर को लेकर फैली है कई गलत जानकारियांतस्वीर: David Jones/PA Wire/empics/picture alliance

मस्तिष्क के अध्ययन से मिली जानकारी

दिमाग के अध्ययन से मिले नतीजे पहली निगाह में यूं तो सीधे और स्पष्ट नजर आते हैं लेकिन थोड़ा और गहराई में उतरकर देखें तो पता चलता है कि कितना कुछ ऐसा है जो हम जानते ही नहीं.

लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में अल्कोहल और ड्रग एब्यूज सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की निदेशक पैट्रिशिया मोलिना कहती हैं कि ये अस्पष्ट था कि दो साल में मस्तिष्क के सिकुड़ने यानी उसके बुढ़ाने से अनुभूति और व्यवहार में क्या असर पड़ा था.

वो बताती हैं कि साक्ष्यों की बहुत सी धाराएं, मस्तिष्क के आकार में कमी और संज्ञानात्मक क्षति या दुर्बलता के बीच एक संबंध को दिखाती हैं. लेकिन वो ऐसे किसी निर्णायक अध्ययन से अनभिज्ञ हैं जो घटे हुए दिमागी आकार के विशेष प्रतिशतों और लोगों या उनके डॉक्टरों को ज्ञात चिकित्सकीय प्रस्फुटनों के बीच एक सीधा संबंध दिखाते हों.

मोलिना कहती हैं कि अध्ययन के डिजाइन से भी इन सवालों का जवाब पाना कठिन हुआ कि उसके नतीजे दूसरी गतिविधियों और बीमारियों से होने वाली दिमागी सिकुड़न के मामलों से तुलनात्मक तौर पर कैसे अलग हैं, जैसे कि शारीरिक तंदुरस्ती में कमी या हंटिंग्टन रोग के मामलों में देखा जाता है.

मोलिना कहती हैं कि, "जवाब पाने का सबसे करीबी तरीका, मेटा एनालिसिस का है." दूसरे शब्दों में किसी को इस बारे में उपलब्ध तमाम साहित्य को देखना होगा और परिणामों का विश्लेषण कुछ इस तरीके से करना होगा कि उसमें ऐसी तुलनाओं को भी जगह मिल सके.

थोड़ी सी शराब भी करेगी नुकसान

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मोलिना कहती हैं कि ऐसी तुलनाओं में मुश्किल आने की दूसरी वजह ये है कि विभिन्न गतिविधियां या बीमारियां विभिन्न जगहों पर विभिन्न किस्म की सिकुड़न पैदा करती हैं. पूरे दिन पसर कर बैठे रहने और सिर्फ प्रोसेस्ड खाद्य सामग्री का सेवन करने से भी, हंटिंग्टन रोग की अपेक्षा मस्तिष्क के एक अलग इलाके में सिकुड़न आ सकती हैं.

फिर मुर्गी और अंडे वाला द्वंद्व भी है. क्या ऐसा हो सकता है कि नियमित रूप से शराब पीने पर आमादा लोगों का मस्तिष्क, शराब न पीने वालों की तुलना में सामान्यतः छोटा ही होता है?

मोलिना कहती हैं, "ये एक दूर की संभावना है. इस सवाल का जवाब देने का एक ही तरीका है कि प्रारंभिक जीवन से मस्तिष्क की छवियां जमा की जाएं." उनके मुताबिक किशोरवय मस्तिष्क संज्ञानात्मक विकास अध्ययन के जरिए शोधकर्ता इस सवाल को देख रहे हैं. इस अध्ययन के तहत मस्तिष्क के आकार में समय के साथ आए बदलावों को परखा जाता है और साथ ही साथ शराब और ड्रग के सेवन का डाटा भी जमा किया जाता है.

शराब की हर घूंट शरीर पर कैसा असर डालती है

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लेकिन रेड वाइन तो च्छी होती है ना?

अधिक मात्रा में शराब पीना सेहत और दिमाग दोनों के लिए हानिकारक है- ये एक निर्णायक साक्ष्य है. लेकिन जब बात आती है सीमित मात्रा में शराब पीने की तो मामला थोड़ा पेचीदा सा हो जाता है. पिछले कुछ दशकों में प्रकाशित कई अध्ययनों में, और मस्तिष्क की स्टडी से ठीक एक दिन पहले आए अध्ययन में भी, पाया गया है कि सीमित मात्रा में शराब पीना वास्तव में सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है.

करीब 3,12,000 मौजूदा शराबियों के ब्रिटिश बायोबैंक से भी मिले डाटा का विश्लेषण करने से शोधकर्ताओं ने पाया कि औरतें हर रोज खाने के साथ पांच आउंस और पुरुष 10 आउंस वाइन के बराबर अल्कोहल का सेवन करें तो उनमें टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम हो जाता है. 

शराब की लत के बारे में विशेषज्ञ और येल यूनिवर्सिटी में मेडेसिन की प्रोफेसर जेनेटे टेट्राउल्ट का कहना है कि इस किस्म के शोध के शीर्षक से नजरें हटकर उसकी तह तक जाना जरूरी है.

खाने के साथ या खाने के बिना शराब, अलग अलग हैं नतीजेतस्वीर: Karl Allgaeuer/Zoonar/picture alliance

वो कहती हैं कि आखिरकार, इस अध्ययन में महज यही पाया गया कि अगर आप खाने के साथ शराब लेते हैं तो आपको टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना कम होगी. खाने के बिना शराब पीते हैं तो ऐसा नहीं होगा. तो ये इस बारे में तो नहीं ही है कि शराब आपके लिए अच्छी होती है.

वो कहती हैं, "अगर आप इन बारीकियों को नहीं समझेंगे तो आप जो भी राय बना बैठेंगे उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है."

ऐसे अध्ययनों के आलोचक ये भी कहते हैं कि वे महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक कारकों को भी मद्देनजर नहीं रखते हैं और रेड वाइन के फायदे गिनाने की आतुरता पूर्वाग्रह से ग्रसित है. क्योंकि ऊंची सामाजिक-आर्थिक हैसियत वाले लोग जो यूं पहले से सेहतमंद होते हैं, वे हर रोज, कम सेहतमंद लोगों की अपेक्षा एक गिलास वाइन लेते ही हैं.

सावधानी बरतना जरूरी है

न्यू यार्क टाइम्स में 2018 में प्रकाशित एक खोजी रिपोर्ट में पाया गया था कि शराब के सीमित सेवन के स्वास्थ्य पर असर को चिंहित करने के उद्देश्य से किए गए दस साल की लंबी अवधि वाले एक अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता शराब उद्योग के भारी दबाव में थे.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (एनआईएच) के एक अध्ययन को मिली 10 करोड़ डॉलर की धनराशि मुख्यतः शराब उद्योग के बड़े खिलाड़ियों की ओर से आई थी. इनमें आनह्युजर-बुश्च इनबेव कंपनी भी एक थी. इस अध्ययन के शीर्ष लेखक और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में मेडेसिन के प्रोफेसर ने अपने ईमेल्स और कॉंफ्रेंस कॉल्स में शराब उद्योग के अधिकारियों को ये भरोसा दिलाया था कि नतीजे उनके पक्ष में ही आएंगें.

कई देशों में बढ़ती शराब की खपततस्वीर: Caitlin Ochs/REUTERS

एनआईएच के जांचकर्ताओं को गड़बड़झाले की भनक लगी तो अध्ययन रोक दिया गया. हालांकि प्रकाशित कुछ भी नहीं हुआ, फिर भी ये एक सबक तो है ही कि एकदम खरे और भरोसेमंद से दिखने वाले नतीजों के प्रति सजगता बुरी नहीं.

तो मुझे कितना सावधान रहना चाहिए?

2018 के एक बड़े अध्ययन ने सीमित शराब सेवन की बहस का अंत करने की कोशिश की थी. उसमें कहा गया कि शराब किसी भी स्तर पर सेहत में सुधार नहीं करती है.

26 साल की अवधि में 195 देशों के डाटा का इस्तेमाल करते हुए अध्ययन ने शराबखोरी के वैश्विक बोझ का, अब तक का सबसे समग्र और व्यापक अनुमान पेश किया है. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने स्टडी के आकार में कुछ कमियों की ओर इशारा भी किया है- जैसे कि संख्या में अपने नतीजे ट्रैक करने के बजाय, शोधकर्ताओं ने सापेक्ष भाषा का इस्तेमाल करते हुए नतीजे निकाले हैं. जब उन्होंने विशुद्ध संख्या दी तो नुकसान का स्तर अपने तई समझने लायक था.

शराब से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या पैदा होने का जोखिम उन लोगों में 0.5 प्रतिशत अधिक था जिन्होंने हर रोज एक ड्रिंक ली थी. अंकीय आधार पर देखें तो अध्ययन ने पाया कि 15 से 95 साल की उम्र वाले एक लाख लोगों में से 914 लोगों में एक साल के दौरान स्वास्थ्य समस्या पैदा होगी, अगर उन्होंने शराब न पी हो. लेकिन अगर पी हो तो एक लाख में ये संख्या 918 लोगों की हो जाती है. सिर्फ चार लोगों की बढ़ोत्तरी.

आज हम शराब के सेवन के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, उसे देखते हुए, टेट्राउल्ट कहती हैं कि वो अपने मरीजों को शराब से पूरी तरह दूर हो जाने के लिए नहीं कहती थीं. वो कहती हैं कि वो उन मरीजों के साथ मस्तिष्क के अध्ययन का इस्तेमाल कर सकती हैं जिनमें संज्ञान या व्यवहार से जुड़े दिमागी हरकतों पर असर डालने वाली समस्या आ गई है और जिन्हें और परामर्श की जरूरत है.

वो कहती हैं, "लेकिन मैं आवश्यक रूप से इस डाटा का इस्तेमाल मरीजों के व्यवहारों में बदलाव लाने की कोशिश के लिए नहीं करूंगी जिनमें वाकई कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है और जो अपने संभावित खतरों के बारे में जानते हैं. मैं अपने सभी मरीजों को ये नहीं कहती हूं कि उन्हें खुद को शराब से अलग रखना होगा."

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